नोटबंदी का तडि़त चालक

Lightning conductor of 2016 Indian banknote demonetization

नोटबंदी का तडि़त चालक Lightning-conductor of 2016 Indian banknote demonetization

सामान्‍य तौर पर हमारा इस डिवाइस से वास्‍ता नहीं पड़ता है, अगर किसी बड़ी बिल्डिंग में इसे इंस्‍टॉल भी किया जाता है तो भी बिल्डिंग में रहने वालों को कभी अहसास नहीं होता है कि छत पर तडि़त चालक लगा हुआ है। यह बहुत उपयोगी टूल है, रोजाना आसमान से बिजलियां नहीं गिरती और तो और पूरी दुनिया में बिजली गिरने से मरने वालों की संख्‍या भी एक लाख में एक बार है। यानी एक लाख बार बिजली जमीन को छूती है तो एक इंसान उसकी चपेट में आता है। फिर भी सुरक्षा के मद्देनजर तडि़त चालक लगाया जाता है।

राजनीति में तडि़त चालक का उपयोग सैकण्‍डरी में पढ़ा था, कांग्रेस के रूप में। ए ओ ह्यूम ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ बढ़ रहे जनता के गुस्‍से को थामने के लिए कांग्रेस का गठन किया, ताकि जनता को भ्रम रहे कि सरकार इस संगठन के माध्‍यम से उनकी बात सुन रही है, और जनता का गुस्‍सा डायवर्ट हो जाए। जो लोग अधिक वोकल थे, उन्‍हें भी अपनी भड़ास निकालने के लिए मौका मिल गया था, इस कोण से यही कांग्रेस सेफ्टी वॉल्‍व भी थी।

अब दूसरी बार इसी प्रकार के तडि़त चालक का उपयोग मैंने नोटबंदी के दौरान देखा है। नोटबंदी का सबसे ज्‍यादा प्रभाव उन लोगों पर पड़ने वाला था, जो या तो भ्रष्‍ट थे अथवा अपनी सामानान्‍तर इकॉनोमिक व्‍यवस्‍था चला रहे थे, जिन्‍होंने अपने लिए नोटों की इतनी व्‍यवस्‍था कर रखी थी कि सरकार और बैंक सिस्‍टम पर उनकी निर्भरता खत्‍म हो चुकी थी।

अब जिन नोटों के आधार पर इन लोगों ने अपने निजी सिस्‍टम तैयार किए थे, उसी सिस्‍टम का आधार छीन लेना कोई सहज बात नहीं थी। पहला काम ही यही होता कि देश में आराजकता का माहौल बन जाता। जो लोग नुकसान में आ रहे थे, वे लोग सीधे तौर पर सरकारी तंत्र पर हमला कर देते। इस हमले को रोकने के लिए यह जरूरी था कि जो अधिक डैमेज हो रहे हैं, उनके लिए कुछ रास्‍ते खुल छोड़ दिए जाएं, चूंकि हमला अंतत: बैंक पर ही होना था, सरकार ने खुद ही बैंक का पिछला दरवाजा खुला छोड़ दिया। बस इतनी सावधानी रखी कि जो पैसा निकल रहा है, उस पर पूरी नजर रखी जाए।

मोदीजी ने फैसले की घोषणा करके हड़बड़ी पैदा की, लेकिन फैसला लेने में कोई हड़बड़ी नहीं की गई थी। सरकार को तैयारी के लिए समय चाहिए होता है, क्‍योंकि सवा करोड़ लोगों में जहां एक करोड़ से अधिक करोड़पति लोग हों, वे समय आने पर कुछ भी कर गुजरने का माद्दा रखते हैं।

इन कुछ भी कर गुजरने वालों ने भी आखिर बैंक पर ही हमला किया, चाहे बैंक मैनेजर से अपने संबंधों से चलते या बैंक की स्‍थानीय शाखा पर अपने प्रभुत्‍व के चलते, बैंक से सीधे नोट उठवा लिए, जनता बाहर इंतजार करती रही। मोदी सरकार को तब फेल घोषित किया जा सकता था, जबकि बाद में पकड़ने की कार्रवाई नहीं होती, लेकिन जिस त्‍वरा के साथ कार्रवाई हुई, उससे लगता है सरकार भ्रष्‍टों के इस कदम का इंतजार ही कर रही थी।

सरकार की घोषणा से पैदा हुए झटके को सरकार को ही झेलना था, यहां बैंकों ने सरकार ने लिए तडि़त चालक का काम किया और भ्रष्‍टों को मौका दिया और जो लोग 8 नवम्‍बर के बाद अगले एक महीने में पूरे देश में अराजक माहौल बना सकते थे, उन्‍हें नोट बदलने में उलझा दिया। अब जब शुरूआती माहौल शांत हो रहा है, तब शुरूआती गड़बडि़यों पर नकेल कसने की कार्रवाई शुरू हो चुकी है।