नेरेटिव बिल्डिंग और ट्विटर फेसबुक

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संचार क्रांति के साथ एक आवश्‍यक बुराई ने हमें तुरंत ही जकड़ लिया, शुरू में यह ब्‍लॉगिंग का स्‍ट्रीट फूड था, लेकिन बाद में इसने खुद को माइक्रोब्‍लॉगिंग के बजाय स्‍वतंत्र सोशल मीडिया के रूप में बदल लिया। नया विचार है, उद्यमी लोगों ने इसे तुरंत स्‍वीकार किया और समय के साथ विचारों की थाह लेने और देने वाला प्रमुख माध्‍यम बन गया।

एक ओर नेशनल मीडिया के रूप में समाचारपत्र और टीवी चैनल अपनी साख और पकड़ खो रहे हैं, दूसरी तरफ सोशल मीडिया की पकड़ गांव ढाणी तक बहुत ही तेजी से बढ़ी है। एक अनुमान के अनुसार 2035 में आखिरी समाचार प्रिंट होगा, मैं खुद सोचता हूं 2030 से पहले ही यह हो जाएगा। नियो बैंकिंग की तरह नियो जर्नलिज्‍म भी शीघ्र अपना आकार पूरा कर लेगी। इस बीच सोशल मीडिया वह जरिया है जो मीडिया की उस कमी को पूरा कर रहा है जिसे नेरेटिव बिल्डिंग कहा जाता है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि 2014 और 2019 में मोदीजी के बाद एक छोटी मोटी आईटी सेल थी, लेकिन इसे बहुत बढ़ा चढ़ाकर बताया जाता है। 2014 में तो देश के कोने कोने से बहुत प्रतिभाशाली लोगों ने बिना पैसे, बिना योजना और बिना एप्रिशिएशन के नेरेटिव बिल्डिंग में मोदीजी का साथ दिया और इस नए जमाने के मीडिया के जरिए सहज रूप से पुराने नेरेटिव को उखाड़ फेंका और बिल्‍कुल नई कहानी लिखनी शुरू कर दी।

सत्‍ता का साथ और सत्‍ता पर नियंत्रण बहुत ही नाजुक गतिविधि होती है, इसके ऊपर बैठे लोग इन चीजों को अनदेखा नहीं कर सकते थे, उनके पास आम जन का सहयोग तो नहीं था, लेकिन अब भी वे नेरेटिव बिल्डिंग अपनी धनआश्रित टीमों के जरिए कर सकते थे, वही किया गया।

पहले यह प्रचार किया गया कि मोदीजी ने सोशल मीडिया के सहारे अपनी सत्‍ता खड़ी की है, बाद में उसी सोशल मीडिया पर सिलसिलेवार नियंत्रण करना शुरू कर दिया। ट्विटर तो अपनी प्रकृति के कारण अपने शुरूआती दौर में ही उन लोगों की गिरफ्त में आ चुका था, कालांतर में फेसबुक और व्‍हाट्सअप पर भी ऐसे ही प्रयोग शुरू हो गए।

हम फेसबुक और ट्विटर पर जो पैसा देकर पोस्‍ट की रीच बढ़ाने के विज्ञापन देखते हैं, यह केवल चारा है, वास्‍तव में ट्विटर और फेसबुक बड़े स्‍तर पर डील करता है तो वह करोड़ों रुपए की होती है, और उससे बहुत सलीके से पेश किया जाता है। केवल राजनीति ही नहीं, सांप्रदायिक क्षेत्र में भी ट्विटर अपनी च्‍वाइस का खुलकर इस्‍तेमाल करता है। भारत में अगर किसी बाबा को प्रमुखता मिलती है तो वह केवल जग्‍गी वासुदेव है, क्‍योंकि वह पैसा भी फेंकता है और बैलेंस भी बनाता है। उसी तरह आम दिनों में फैक्‍ट चैक और चुनावों में सूचनाओं का प्रवाह भी यह दोनों प्‍लेटफार्म नियंत्रित करते हैं।

पहला तो यह काम बिना पैसे नहीं हो सकता, अगर दो पार्टी बराबर मात्रा में पैसा लेकर खड़ी हो तो प्‍लेटफार्म खुद निर्णय करता है कि किसे तरजीह देनी है और किसे हाशिए पर धकेलना है। यहीं पर क्‍लैश शुरू होता है।

जनता ने जिस पार्टी को सत्‍ता पर बैठाया है, उसकी न केवल जिम्‍मेदारी है, बल्कि सर्वाइवल स्‍ट्रैटर्जी भी होनी चाहिए कि वह ऐसी च्‍वाइस पर नियंत्रण करे। पूर्व में समाचार पत्र और मेनस्‍ट्रीम मीडिया ने अपने लक्ष्‍य यह कहकर पूरे किए हैं कि वह जनता की आवाज है। इसका सबसे भोंडा प्रदर्शन गोस्‍वामी यह कहकर करता है “इंडिया वांट्स टू नो” अब सोशल म‍िडिया कंपनी के पास एक दूसरा नारा है “फ्रीडम ऑफ स्‍पीच”

इस फ्रीडम ऑफ स्‍पीच का बैंड बजाया अवनीश सिंह, राजीव मिश्राजी और उनकी ट्विटर टेकओवर टीम ने। तकनीकी बैंकग्राउंट वाले और इस माध्‍यम की औकात को ठीक ठीक समझने वाले अवनीश और वामपंथी नेरेटिव की धज्जियां उड़ाने वाले लंदन के चिकित्‍सक राजीव मिश्राजी ने कुछ मुठ्ठीभर लोगों के साथ ट्विटर पर हमला किया और नेरेटिव को बदलकर रख दिया। रोजाना जो ट्रेंड धनआश्रित नेरेटिव बिल्‍डर स्‍थापित करते थे, उसके ठीक विरुद्ध और उससे बड़ा नेरेटिव इस टीम ने खेल खेल में खड़ा करना शुरू कर दिया। अब सत्‍ता नियंत्रण के केन्‍द्र में बैठने वाले लोगों को दस्‍त लगने शुरू हुए। इस मुहीम को पोल खोल और खुलासे के रूप में दिखाने का प्रयास किया गया। एक ओपन सीक्रेट को स्‍कूप बताने की कोशिश हुई, लेकिन बैकग्राउंड में ऐसा कुछ था नहीं। धीरे धीरे ट्विटर टेकओवर का काम कम हो गया, उससे जुड़े लोगों की रुचि भी घट गई, लेकिन कुछ ही दिनों में इन लोगों ने बता दिया कि ट्विटर पर जो ट्रेंड दिखाई देता है वह जनता की आवाज नहीं, बल्कि धनआश्रित समूहों की सियार ध्‍वनि है।

यहीं से सोशल मीडिया पर नियंत्रण का रास्‍ता खुला। आज ट्विटर ने अपनी इम्‍युनिटी खोई है और उसके एमडी को जो थाने में आकर हाजिरी लगाने का फरमान जारी हुआ है, उसके बीच राष्‍ट्रवादी खेमे के कुछ लोगों के सामान्‍य से प्रयास का परिणाम है। आने वाले दिनों में अभिव्‍यक्ति की आजादी का स्‍यापा पंचम सुर में सुनाई देना शुरू होगा, लेकिन फैक्‍ट चैकर और रीच नियंत्रण में लगी कंपनियों को पता होना चाहिए कि अगर भारत में कोई यह दोनों काम करेगा तो चुनी गई सरकार करेगी, कोई विदेशी भूमि से चलने वाली दो टके की टेक कंपनी नहीं…