एक थी फ़रखंंदा, कुरान और इस्लाम पर स्नातक स्तर की शिक्षा पूर्ण करने के बाद आगे पढ़ने का प्रयास कर रही थी कि, एक दिन किसी ने अफवाह उड़ा दी कि फ़रखंंदा ने कुरान जला दी है। फ़रखंंदा ने कहा उसने नहीं जलाई। लेकिन दीन के पक्के लोग बहुत भावुक हो गए। उन्होंने फ़रखंंदा को घर से खींचकर बाहर निकाला और तब तक मारते रहे, जब तक उसके प्राण पखेरू नहीं उड़ गए। उसके बाद उसकी लाश को एक कार के जरिए घसीटा गया। बाद में उस लाश को सूखी पड़ी बरसाती नदी में फेंक दिया और आग लगा दी। चूंकि फ़रखंंदा खून में लिथड़ी हुई थी, सो आग ठीक प्रकार लगी नहीं तो लोगों ने अपने मफलर उस पर फेंककर आग को तेज किया।
इस पूरे घटनाक्रम में अफगान पुलिस मौके पर थी, थोड़ा बहुत लोगों को रोकने का प्रयास किया और बाद में पूरा घटनाक्रम मूक दर्शक बने देखती रही। जब फ़रखंंदा की लाश को आग लगा दी गई, उसके ठीक बाद पुलिस और अन्य सशस्त्र बल मौके पर पहुंचे और भावुक दीनी लोगों को आग से दूर किया। वे लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दे रहे थे।
इस घटना के दो दिन बाद हज कमेटी और दीनी संगठनों ने तहकीकात में पाया कि फ़रखंंदा ने कुरान नहीं जलाई थी।
ऐसा घटनाक्रम कभी भी भारत में भी होने की आशंका बहुत अधिक है, क्योंकि ईशनिंदा का आरोप लगाकर किसी एक या एक समूह की हत्या कर देना बहुत आसान है। हर दीनी को इसके लिए ट्रेंड किया गया है। फर्क केवल पुलिस या सशस्त्र बल को आदेश देने वालों का है। अफगानिस्तान में दीनी लोग हैं और भारत में संविधान के अनुसार चलने वाले।
जब मैं और आप वोट देते हैं तो वास्तव में इन्हीं आदेश देने वालों का चुनाव करते हैं। पिछले दस सालों में ऐसी घटनाएं भारत के किसी कोने में नहीं हुई, इसका कारण यही था कि हमने सही जगह वोट किया। अब अगर तालिबानी शरिया कानून और भीड़ का बीहड़ न्याय लाना है, तो ही किसी और को वोट दे सकते हैं, अन्यथा हमारे पास पहला और आखिरी विकल्प आज भी मोदीजी ही हैं।
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अभी कुछ ही दिन पहले मैंने लिखा था कि मुस्लिम के लिए किसी की मॉब लिंचिंग करना बहुत आसान है, तब मेरे दिमाग में रवीना टंडन जैसी सेलिब्रिटी नहीं थी, अब मुस्लिमों ने प्रदर्शित किया है कि आम इंसान की कोई औकात नहीं है, वे चाहें तो प्रद्मश्री को भी किसी भी समय लिंच कर सकते हैं।