इट्स अ वंडरफुल लाइफ (1946) It’s A wonderful Life 1946 : जिंदगी का प्रवाह ऐसा है कि कभी हम जीवन को धक्का देते हैं और कभी हमें जीवन का धक्का लगता है, कुल मिलाकर गाड़ी चलती रहती है। हार्मोन बैंलेंस बन रहा होता है, कभी ऑक्सीटोसिन का प्रवाह आता है तो कभी डोपामिन के दौर भी होते हैं।
तितलियां खिलखिलाती हुई दिखाई देती हैं, भंवरे गुनगुनाते हैं, धूप भी अंगड़ाई लेती है और रातों की ठण्डक भी गुदगुदाती है। इसी दौर में कोई भी सुर्ख लाल ड्रेस पहने कन्या दिखाई दे तो बस वही अपनी वाली भी लगने लगती है। धुन सवार रहती है, किसी को घूमने की, किसी को एडवेंचर की, किसी को कुछ खास बना देने की…
इसी दौर में अचानक किसी के पास अचानक जिम्मेदारियां आ जाती हैं। अनचाही, अनदेखी, अनसोची… युवा कंधे मजबूती से जिम्मेदारियों को संभालते हैं और पिछली पीढ़ी ने जो संघर्ष किया है, उसे आगे ले जाने में मजबूत मस्तूल साबित होते हैं। उन सालों के सपने कहीं कोने में इंतजार कर रहे होते हैं कि बस इतना काम और निपटा लिया जाए फिर सपने पूरे करने निकल पड़ेंगे। इस झोंक में अपने कुछ कीमती सपने दायित्वों की भेंट भी चढ़ जाते हैं।
समय बीतता है और एक ही चक्र में घूमते घूमते निराश होने लगते हैं, सपने कदम दर कदम दूर होते चले जाते हैं, नई जिम्मेदारियां बढ़ती हैं और पुरानी जस की तस बनी रहती है, जीवन की नौका बोझिल लगने लगती है। कोई 30 क्राइसिस में टूटता है कोई 40 फ्रस्टेशन में हर किसी का अपना टिप्पिंग प्वाइंट होता है। टूटना लाजिमी है, जो प्रयास करेगा वह टूटेगा भी, अगर कोई नहीं टूट रहा है तो हो सकता है वह बदमाश हो, उसने कहीं जिम्मेदारियों में चूक रखी है और “मरने दे” वाली नीति अपनाई है, जो पूरी शिद्दत से लगा है, वह टूटेगा ही। टूटना नीयति है। विरले ही होते होंगे जिन्हें अपनी शर्तों पर अपने सपने जीने का मौका मिल पाता है। मुझे तो आजतक कोई मिला नहीं।
ऐसे ही किसी निराशा वाले दिन सार्थक जीवन किसी पंखे की रस्सी या किसी इमारत के ऊपरी कोने या किसी जल स्रोत के मुहाने पर पहुंचता है… ईहलीला समाप्त ही होने वाली है कि एक टर्निंग प्वाइंट आता है, सिर्फ एक सवाल…
“अगर मैं इस दुनिया में नहीं होता तो क्या होता?”
इस सवाल के जवाब में केवल अहंकार नहीं है, केवल जो दिया है उसका अहोभाव नहीं है, बल्कि बदले में क्या क्या मिल गया, क्या क्या बदल दिया, कितनी जिंदगियां बेहतर हुई, कितने लोग प्रसन्न हुए, सबकुछ शामिल है।
वो पड़ोस की लड़की जो रोज सुबह नहा धोकर तैयार होकर मंदिर के बहाने निकलती और कनखियों से देखती हुई जाती थी, उसे कौन देखता, पान की दुकान पर कौन गप्पे मारता, पैट्रोल पंप वाला लड़का किसे कहता कि आज 20 के बजाय 50 का भरवा रहा है टंकी को बदहजमी हो जाएगी। किसे दिखाने के लिए कुछ सफल होते, किसे दिखाने के लिए रूठते… जिन लोगों को जिंदगी भर चाहा है, अगर वे ही पहचानने से इनकार कर दे तो ?