वर्ष 2014 में एक बहुत खूबसूरत फिल्‍म आई थी “I ORIGIN” फिल्‍म की शुरूआत अमरीका की एक हाईटेक लैब में होती है। एक रिसर्च साइंटिस्‍ट आंखों पर शोध कर रहा होता है। वह चूहों पर प्रयोग कर कलर ब्‍लाइंड चूहों में प्रत्‍यारोपण से रंगों की पहचान की कोशिश कर रहा होता है। उन्‍हीं दिनों उसके पास एक नई स्‍टूडेंट काम करने आती है। वह कहती है कि आंख या कहें दृश्‍य की शुरूआत कहां होती है। इस पर रिसर्च स्‍कॉलर उसे बताता है कि यह जीन उत्‍परिवर्तन से आता है, जो कि याद्रच्छिक है, यानी प्रकृति ने रेंडम सलेक्‍शन से एक जीव में दृश्‍य को जानने के सेंसेज आ गए।

नई स्‍टूडेंट विचार लाती है कि दृश्‍य की उत्‍पत्ति कहां होती है, इसकी जानकारी नहीं होती। आपसी सहमति से उन सभी जीवों की खोज शुरू होती है, जहां जीन में वह प्रोटीन शामिल होता जो दृश्‍य के लिए उत्‍तरदायी होता है।

हालांकि फिल्‍म के शुरूआती में कुछ इंटीमेट सीन में रिसर्च स्‍कॉलर को एक कन्‍या मिलती है, जो ट्रांस वर्ड में यकीन रखती है और सनातन मान्‍यता के करीब है, भारतीय सनातन मान्‍यता के। कन्‍या और साइंटिस्‍ट के बीच इस दुनिया और दूसरी दुनिया या कहें ईश्‍वर और एथीज्‍म को लगातार बहसें होती हैं। कन्‍या के प्रेम में पड़ा वैज्ञानिक और कन्‍या के विश्‍वास लगातार इन्‍हीं बहसों में उलझे होते हैं। वह एक दिन लैब में रिसर्च स्‍कॉलर के साथ पहुंचती है, उसी दिन वैज्ञानिक की स्‍टूडेंट ने जीन के उस प्रोटीन की खोज कर ली होती है, जो दृश्‍य के लिए उत्‍तरदायी है।

कन्‍या उस वैज्ञानिक से पूछती है कि क्‍या केचुएं में उसी प्रोटीन को पहुंचा देने (Mutation) के बाद क्‍या केंचुआ भी देखने लगेगा। वैज्ञानिक कहता है – हां देखने लगेगा। कन्‍या पूछती है – वर्तमान में आंख नहीं होने पर वह क्‍या महसूस करता है?

तो वैज्ञानिक बताता है कि केचुएं में केवल दो सेंसेज हैं, गंध और स्‍पर्श के प्रति।

यानी केचुएं बिना प्रकाश की अनुभूति के जिंदा के रहते हैं। यानी वे कल्‍पना भी नहीं कर सकते कि रोशनी जैसी कोई चीज होती है। लेकिन इंसानों के लिए रोशनी एक सामान्‍य बात है। ठीक केचुएं के ऊपर मुंह किए हम उसे देखते हैं, लेकिन केंचुएं को इसका भान नहीं होता। केचुएं को इसकी कोई जानकारी नहीं होगी, जब तक कि केचुएं तक हमारी गंध न पहुंचे अथवा हम उन्‍हें स्‍पर्श न करें। लेकिन अगर जीन म्‍युटेशन कराया जाए तो वे भी रोशनी को महसूस करना शुरू कर देंगे।

ठीक इसी प्रकार अगर कुछ इंसानों में यह खूबी हो कि वे अपनी पांच इंद्रियों के इतर कुछ अधिक महसूस करने लगें, जिसे आत्मिक अथवा अधिभौतिक कुछ भी नाम दें, तो संभवत: वे आम दुनिया के इतर जो कुछ स्पिरिट वर्ड में चल रहा है, उसे भी जान पाएंगे, जो बिना इंसानों की जानकारी के उनके चारों ओर घट रही है।

ठीक उस प्रकार जिस प्रकार केचुएं को रोशनी की जानकारी नहीं है, आम इंसानों को उस दूसरी दुनिया की भी जानकारी नहीं हो सकती। उसकी कल्‍पना से भी बाहर की बात है।

इंसानों में ऐसे लोग म्‍युटेंट भी हो सकते हैं। जरूरी नहीं कि वे एक्‍स मैन सीरीज वाले अतींद्रिय शक्तियों वाले म्‍युटेंट ही हों, अतींद्रिय मानसिक क्षमता सामान्‍य इंसान की समझ से परे होना कोई अटपटी बात नहीं।