उदारवाद या कहें सेक्युलर फाइबर का मकड़जाल पिछली एक सदी से एक प्रयास बहुत मेहनत के साथ करता रहा है, वह है हमारी तिथियों की अनदेखी करने का। यह एक ओपन सीक्रेट है कि दुनिया का सबसे घटिया कलेण्डर ग्रिगोरियन कलेण्डर है, हालांकि इस्लामिक कलेण्डर खुद को ग्रिगोरियन से घटिया साबित करने में अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं रखता, फिर भी चंद्रमा की आड़ लेकर कम से कम वह प्रकृति के कुछ करीब तो आता है, लेकिन ग्रिगोरियन कलेण्डर पूरी तरह से दिनों को गिनने वाला आंकड़ा भर है, वह भी गलत गिनता है तो हर बार उसे करेक्शन मोड में जाना पड़ता है। पिछली कई शताब्दियों से लगातार खुद को सुधारते रहने के प्रयासों के बावजूद आज ग्रिगोरियन कलेण्डर आप हाथ में लेकर बैठ जाइए, अब आपको न तो तारीख पता है और न ही वार, ऐसे में आप कलेण्डर देखकर क्या हासिल करेंगे? जी आपने सही समझा “बाबाजी का ठुल्लू”
यानी महान पश्चिमी सभ्यता ने एक ऐसा कलेण्डर बनाया है, जो केवल इतना काम करता है कि अगर एक बंदा कहे आज पांच तारीख है तो दूसरा अपने कलेंडर में पांच तारीख पर लाल निशान लगाकर कहेगा हां ठीक है आज पांच तारीख है और वार बुधवार है। बस इससे अधिक कुछ नहीं।
अब भारतीयों को मूर्ख बनाने के लिए बार बार इस कलेण्डर को साइंटिफिक और पता नहीं क्या क्या उपमाएं लगाकर फॉलो करने के लिए बाध्य किया जाता है। परिणाम यह हो रहा है कि चंद्र और सूर्य को साक्षी मानकर बनाए गए हमारे “साइंटिफिक” (माफ कीजिएगा आपको मूर्ख बनाए रखने के लिए हर बात के साथ साइंटिफिक लिखना बहुत जरूरी है, यह मेरी नहीं आपकी शिक्षा की समस्या है) कलेण्डर को दरकिनार कर दिया गया। यही नहीं सिर्फ यह साबित करने के लिए कि हमारे देश में एक जैसा तिथि सिस्टम नहीं है, विक्रम संवत् के साथ शक, कुशाण, हूण, चर्चिल, मार्टिन लूथर किंग, ओडोंबा हिडेसी और अब लेटेस्ट में युधिष्ठर शक संवत् परोसा जा रहा है। वह भी जनश्रुतियों के आधार पर।
क्या कहा जनश्रुति????!!!! एक स्थापित सिस्टम को चैलेंज करने के लिए जनश्रुति???!!!! गणित के दो जमा दो बराबर चार के बजाय पांच बताने के लिए जनश्रुति… कितना मखौल करोगे कुर्सियों पर बैठे मूर्खों, जब कुछ आता जाता नहीं है तो कुर्सी छोड़कर सड़क पर नंगा नाचना क्यों नहीं शुरू कर देते। अच्छे पैसे मिलेंगे और आजकल नंगों को इज्जत भी बहुत मिलती है। अपने कपड़े उतारो, अपना गिरवी रखे जमीर को बेच खाओ और नंगेपन के साथ आंसू बहाओ, देखना देश का बुद्धिजीवी वाह वाह कर उठेगा।
पिछले तीन पीढि़यों को मैंने सर्दी गर्मी के साथ चंद्रमा की कलाओं के साथ तिथियों की गणना करते देखा है, मैं पंडितों की नहीं, घरेलू स्त्रियों की बात कर रहा हूं, जिन्हें आधुनिक सिस्टम ने सबसे निचले पायदान पर रखा है और किताबत संप्रदायों ने पसली से उगा हुआ माना है। सनातन में स्त्रियों को देवी और मां का दर्जा संभवत: इसी कारण दिया गया कि वे पूरे तंत्र को अपनी गोद में संभालकर रखती हैं। विक्रम संवत् के तिथि सिस्टम को भी उन्होंने संभाल रखा है। इसी कारण हमारे त्योहार विक्रम संवत् से ही चल रहे हैं, अगर मूर्ख बजरबट्टुओं का बस चलता तो अब तक हम अक्टूबर की किसी फिक्स इस्वी तारीख को दीपावली मना रहे होते और अगस्त के पहले रविवार को एक साथ पितरों का पूजन करवा चुके होते, 5 मार्च को होली होती और 13 जनवरी को लोहड़ी।
जब बात हमारे त्योहारों की आती है, तब बात ऐसे अवसरों की आती है, जब स्त्रियों के हाथ में कमान होती है और परंपराओं के रूप में सनातन ज्ञान अपना डंका बजा रहा होता है। लेकिन जब यही बात ऑफीशियल मामलों की हो तो पुरुष् अपने स्तर पर अपनी मूर्खताएं करते हैं। जैसे महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि 19 जनवरी को मनाना।
महाराणा प्रताप का जन्म भारत के अंग्रेजों के गुलाम बनने से पहले हुआ और विक्रम संवत् 1653 के एक शुभ दिन माघ शुक्ल एकादशी को महाराणा ने प्रयाण किया। तब तक भी भारतीय मनीषा में मूर्खता का समावेश नहीं हुआ था। एक दिन किसी वज्रभोंट ने कहा कि 1653 विक्रम संवत् के दिन माघ शुक्ल को 29 जनवरी थी, सो महाराणा प्रताप का प्रयाण उसी दिन मनाया जाए, लो साहब हमने पश्चिमी तंत्र की नकल करना सीखा और मूर्खता के पूरे वेग के साथ सीखा और अपनी तिथियों को छोड़ 29 जनवरी को सही मान लिया। खैर, मूर्खता की परास यहां भी खत्म नहीं हुई, इसके बाद किसी पुस्तक में गलती से 29 के बजाय 19 जनवरी लिख दिया गया, सो लेकर 19 की ढपली पीटने लगे। कोई पूछ ही नहीं रहा कि आज माघ शुक्ल एकादशी कब है, 1653 में यह 29 जनवरी को थी और इस साल यह 5 फरवरी को पड़ेगी, लेकिन नहीं, हमें लकीर पीटनी है और इसके लिए अंग्रेजी कलेण्डर के पीछे मूर्खों की तरह दौड़ रहे कुछ वज्रभोंट 19 जनवरी की तारीख दे गए हैं, हम तो उसी दिन को पुण्यतिथि मानेंगे…
अगर आप सनातनी हैं तो आपके लिए महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि 5 फरवरी के दिन माघ शुक्ल एकादशी के दिन है
अगर आप थोड़े मूर्ख हैं तो 29 जनवरी को मना सकते हैं
अगर आपकी अक्ल पर पूरी तरह पत्थर ही पड़ गए हैं तो 19 जनवरी को फॉलो कीजिए।