काशी में एक बहुत बड़े सेठ थे। आस-पास के लोग जानते थे कि यह व्यक्ति भगवान विष्णु का भक्त है, लेकिन धनवान होने के साथ साथ वह एक कंजूस भी थे। अपनी भक्ति में, भगवान विष्णु की पूजा के लिए पैसे और सामग्री खर्च नहीं करने का एक समाधान खोजने के लिए, वह एक साधू के पास गए।

साधू के समक्ष उन्होनें पूजा करने के लिए कुछ भी खर्च न करने की इच्छा प्रकट की और समाधान मांगा। साधू ने ने उन्हे उत्तर दिया कि, हां, एक उपाय है। कोई अपने इष्ट की पूजा अपने मन के भीतर, मन के माध्यम से कर सकता है, बस यह कल्पना करने की आवश्यकता है कि वह भगवान की पूजा कर रहा है।

साधू ने उन्हे निर्देश दिया कि, उन्हें एक जगह पर बैठने की जरूरत है, अपनी आँखें बंद करके, यह सोचना और कल्पना करना है कि उन्होने भगवान को एक स्वर्ण सिंहासन पर बैठने के लिए आमंत्रित किया है जो सभी आवश्यक सामग्रियों के साथ व्यवस्थित किया गया है जैसे कि, फूल, खाद्य पदार्थ इत्यादि इत्यादि। जवाब में कंजूस भक्त ने कहा – नहीं, यह संभव नहीं है। कल्पना में भी, मुझे इतना धन खर्च करना स्वीकार्य नहीं है।

अनुरोध पर, साधू व्यक्ति ने सुझाव दिया और कहा कि इस स्थिति में कल्पना कीजिए – आप भगवान को एक गिलास में थोड़ा गाय का दूध और मिठाई दे रहे हैं। लेकिन आपको मीठे का भोग लगाने के लिए एक काल्पनिक चम्मच और मीठा चाहिए होगा। भक्त जी उनके इस प्रस्ताव पर सहमत हुए।

भक्त जी घर आए और साधु द्वारा निर्देशित विधि से भगवान का पूजन शुरू कर दिया। उन्होने जो कुछ भी किया वह मानसिक पूजन था, ऐसा कुछ दिनो तक चला। एक दिन, अपनी कल्पना में, वह चम्मच नहीं खोज सके। हालाँकि, उन्होंने गाय के दूध के गिलास में अंदाजे से मीठा डाला। उन्होंने महसूस किया कि मीठा आवश्यक मात्रा से अधिक पड़ गया है। स्वभाव से दुखी, उन्होंने ग्लास मे से अतिरिक्त मीठा बाहर निकालने का फैसला किया। जिस पल, उन्होंने अतिरिक्त मीठा बाहर निकालने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया। उन्होंने महसूस किया की किसी ने उनके हाथों को पकड़ लिया है। उनका सारा शरीर रोमांचित हो गया। उन्होनें रोमांच के मारे आँखे खोली तो क्या देखा सामने शंख चक्र गदा लिये भगवान उनके हाथ को पकड़े खड़े हैं और कह रहे हैं “अरे महाराज इसमे तो कंजूसी ना करो, थोड़ा अधिक मीठा ही तो है, यह तो खा लेने दो” भगवान के दर्शन से उन्हे महसूस हुआ कि क्या गलत हो गया है। भगवान और भगवान की प्राप्ति के सामने धन कुछ भी नहीं है यह भावना मन मे समेटे वह अपने घर से बाहर निकल गए और कभी वापस नहीं लौटे।

लाहिड़ी महाशय के शिष्य हुए और बिन्दु माधव मंदिर मे सेवा देते हुए शरीर त्यागा। काशी के संतो मे बनिया बाबा नाम से विख्यात हुए।

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