आज एक सामान्‍य घर बनता है, तो उसमें लगने वाली ईंटें, सीमेंट, चूना, विभिन्‍न प्रकार के पत्‍थर, लकड़ी, आयरन, कॉपर वायर, प्‍लास्टिक या लकड़ी के स्विच, पैट्रोलियम ऑयल, इलेक्ट्रिक और इलेक्‍ट्रॉनिक उपकरण, सिंथेटिक कैमिकल आदि इतना सामान लगता है कि अगर एक एक सामान को जुटाने के लिए प्रकृति के साथ किए गए खिलवाड़ की सूची बनाई जाए तो तीस या चालीस लाख में बना घर वास्‍तव में प्रकृति को कई करोड़ रुपए का झटका दे चुका होता है।

केवल यही नहीं यह नुकसान केवल तात्‍कालिक नहीं है, बल्कि दीर्घकालीन नुकसान है। जहां से मिट्टी उठाई गई वहां परमानेंट गड्ढा पड़ जाता है, जहां से लोहा निकाला गया, वहां खुदाई के अवशेष रहेंगे, जहां से पत्‍थर निकाला गया, वहां स्‍थाई तौर पर डेंट दिखेगा, जहां से तांबा निकाला गया, वहां परमानेंट गड्ढा बन जाएगा, जहां से ऑयल निकाला गया, वहां जमीन पर भले बहुत अधिक न दिखाइ दे, लेकिन वातावरण पूरी तरह नष्‍ट हो गया।

एक घर बनाने में जितना परिवर्तन हुआ है, वह परिवर्तन अगले पांच सात सौ सालों तक मोटे तौर पर बना रहेगा। अब ऐसा बना हुआ घर करीब साठ सत्‍तर साल खड़ा रहता है, उसके बाद उसे ढहाकर दूसरा घर बनाया जाता है। इस घर का जो मलबा निकलेगा, उसे किसी डंपिंग यार्ड में फेंक दिया जाएगा, जहां पर वह कचरे का ढेर बनाएगा।

इसके साथ ही घर में रहने वाले 70 सालों के दौरान प्‍लास्टिक से लेकर लकड़ी और मैटल के हर प्रकार के सामान और रसायनों का भरपूर उपयोग करेंगे। उस घर से निकला वेस्‍ट मैटेरियल भी उस स्‍थान पर या उसके आस पास कचरा फैलाएगा।

इस प्रकार मानव अपने जीवन को जीते हुए, उसे सुविधाजनक और आरामदायक बनाते हुए प्रकृति पर जो दबाव बनाता है, उसे एक टर्म दिया गया है “कार्बन फुटप्रिंट”

प्राथमिक तौर पर मानव द्वारा उत्‍सर्जित कार्बन डाइ ऑक्‍साइड के रूप में इसे लिया गया था, लेकिन वृहद् रूप में देखा जाए तो मानव द्वारा प्रकृति के उपभोग या कहें दोहन के परिणाम के रूप में देख सकते हैं। इंसान जितना अधिक सुविधाओं और संसाधनों के साथ जिएगा, उसका कार्बन फुटप्रिंट उतना ही तगड़ा होगा।

अब सवाल…

  • क्‍या अधिक बड़ा, गहरा और काला कार्बन फुटप्रिंट बेहतर है?
  • क्‍या उपभोक्‍तावाद कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ाता है?
  • क्‍या पूर्व की जीवनशैली में कार्बन फुटप्रिंट छोटा था?
  • क्‍या फुटप्रिंट को छोटा करने या हल्‍का करने के लिए इंसान जीना बंद कर दे?
  • क्‍या सांस कम लेने से फुटप्रिंट छोटा होगा?
  • क्‍या कार्बन फुटप्रिंट प्रगति के साथ जुड़ी आवश्‍यक बुराई है?
  • ब्राह्मण जीवनशैली या कहें मिनिमलिस्टिक लाइफ स्‍टाइल क्‍या है?
  • और आखिरी सवाल… “ये मेगा स्‍ट्रक्‍चर हमारे पुरखों ने बिना मेगा कार्बन फुटप्रिंट के कैसे बना दिए”

हम केवल उपलब्‍ध ज्ञान के मिसिंग लिंक से ही नहीं जूझ रहे, हम जीवन जीने के सूत्रों को भी खो चुके हैं।