धननन्द का शासन था, आमजन पर अत्याचार बढ़ता जा रहा था, सरकारी मशीनरी का कोई भी बंदा किसी भी आम इंसान के साथ बदसलूकी कर लेता था, यहां तक कि राज्य के आचार्यों तक को इज्जत मिलनी बंद हो गई। जो आचार्य भिक्षा से जीवन यापन करते थे, वे मगध की उन्नति केवल इसलिए करना चाहते थे, क्योंकि मगध राज्य में उन्हें सम्मान मिलता था। इसी सम्मान के भरोसे वे राज्य की नई पौध को अपने गुरुकुलों में पढ़ा लिखाकर तैयार करते ताकि वे बेहतर नागरिक बनें।
लेकिन धननन्द की उपेक्षा और शासकीय दुराचार ने आचार्यों को व्यथित कर दिया, एक तो शासन में उनकी सुनवाई होनी बंद हो गई, दूसरे अत्याचार। आचार्यों ने मगध छोड़ने का निश्चय किया। मगध साम्राज्य का महामंत्री भी कोई आचार्य ही होता था, महामंत्री को चिंता हुई कि अगर आचार्य इस प्रकार मगध छोड़कर जाने लगे तो राज्य की व्यवस्था चौपट हो जाएगी।
राज्य को ब्रेन डैथ से बचाने के लिए महामंत्री ने घर घर जाकर आचार्यों को समझाना शुरू किया, लेकिन कोई आचार्य टिकने को तैयार नहीं था। आचार्यों के आचरण से शिक्षा प्राप्त कर चुकी जनता का बड़ा भाग भी रुष्ट होने लगा था। महामंत्री के लिए पहली प्राथमिकता थी कि आचार्यों को रोका जाए। आखिरकार वे आचार्यों के पलायन को रोकने में कामयाब रहे।
आज आदर्श लिबरल साहित्यकार सम्मान लौटा रहे हैं। ये कौन लोग हैं, इन लोगों ने किसे शिक्षित किया है, इन लोगों ने अगर पुस्तकें लिखी हैं तो उससे किसका भला हुआ है, इन्होंने समाज को क्या शिक्षा दी है, सम्मान क्यों मिला, आमजन का इनसे जुड़ाव क्यों नहीं है?
इन सवालों पर गौर किया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि सत्ता की चाटुकारिता कर जब पुरस्कार हासिल किए गए थे, तब भी लोगों के मन में इन साहित्यकारों के प्रति वितृष्णा ही पैदा हुई थी, वही घृणा अब मुखर होकर लौट रही है। जब साहित्यकार पुरस्कार लौटा रहे हैं, तो राजनीतिक गलियारों और बिकी हुई मेनस्ट्रीम मीडिया में तो नूरा कुश्ती वाली बहसें हो रही हैं, लेकिन जनता जो पहले इन्हें सम्मान दिए जाने से कुढ़ रही थी, अब इन्हें मखौल का विषय बना चुकी है।
मुन्नवर राणा शेरो शायरी करते हैं और उनके लाखों मुरीद हैं। उनके शेरों में शिक्षा और समाज की भलाई की बात के बजाय वाह वाह की गूंज अधिक सुनाई देती है। इस कायदे से वे अच्छे एंटरटेनर हो सकते हैं, लेकिन अगर वे यह समझने की भूल कर रहे हैं कि वे मगध के आचार्य हैं तो भूल जाइए। आप लिखित इतिहास को मूर्ख बना सकते हैं, एक बारगी जनता की भावनाओं का क्षणिक दोहन कर सकते हैं, लेकिन दीर्धकालीन प्रभाव यह आना था, कि आपके सम्मान लौटाने के साथ ही खिल्ली उड़ने का दौर शुरू हो चुका है।
हम भी समझते हैं “तुम्हारी भी कुछ मजबूरियां रही होगी, यूं ही कोई…”
Illustration : pawel kuczynski