मैंने 16 अगस्त 2022 को ओला ई बाइक खरीदी। मॉडल है ओला एस वन प्रो। दो सालों में ओला के साथ और बाद में बहुत सारी इलेक्ट्रिक बाइक्स आ रही हैं। ओला एसवन प्रो खरीदने के करीब दो महीने के बाद से पचासों मित्रों, रिश्तेदारों, जानकारों और कुछ अपरिचितों तक को ओला एसवन प्रो खरीदने की सलाह दे चुका हूं।
डिस्क्लेमर : अपनी पोस्ट जारी रखूं, उससे पहले स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि ओला एसवन प्रो का यह रिव्यू अपने मन से लिख रहा हूं, न तो कंपनी इसके लिए मुझे एक फूटी कौड़ी दे रही है और न ही उसकी अपेक्षा कर रहा हूं। वास्तव में मैं चाहता हूं कि चाहे ओला हो या किसी दूसरी कंपनी की इलेक्ट्रिक बाइक हो, पूरे भारत में केवल ईवी ही चलनी चाहिए। पैट्रोल और पैट्रोल में मिले घातक रसायन घनी आबादी वाले देश के लिए बहुत घातक हैं।
ओला एस वन प्रो के साथ मेरा अनुभव
जब मैंने ओला एसवन प्रो बुक की, तब यह मेरे लिए जुआ ही था। पहले कई ई बाइक्स आकर फेल हो चुकी थी। मैंने सोचा साल दो साल चल भी गई तो किसी तरह पैसा वसूल हो जाएगा, वरना स्वस्थ वातावरण के लिए इतना तो दांव लगाया ही जा सकता है, लेकिन वास्तव में यह सौदा बहुत ही लाभदायक साबित हुआ।
सकारात्मक अनुभव
तेज हैडलाइट
इसमें एलईडी हैडलाइट है। एक हमेशा जलती रहती है। संभवत: आरटीओ नियमों के कारण। और दूसरी डिपर आन करने पर होती है, वह बहुत तेज लाइट है, रात के अंधेरे में अगर ओला चला रहे हैं, तो सामने से आ रही पल्सर और इन्फीड भी एक बार चकाचौंध होती है। इसमें होला लैंप भी है, यह एक सर्कुलर लाइट है जो हैडलाइट के चारों ओर है। इसका कोई खास उपयोग नहीं है, केवल शो बाजी ही दिखाई देती है।
स्पीकर
जब मैंने फीचर में पढ़ा कि इसमें स्पीकर भी है, तो मैंने सोचा कि चलती गाड़ी में स्पीकर से गाने सुनना अजीब लगेगा। पहले कुछ दिन वास्तव में अजीब भी लगा। अब इतने समय से ओला चलाते चलाते यह अनुमान होने लगा है कि कब स्पीकर पर गाने चलाने हैं और कब नहीं चलाने। लंबी राइड पर जाता हूं तो तय तौर पर सुंदरकाण्ड से लेकर पुराने गाने तक चलाता हूं। लंबी राइड पर भी 40 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड से कम स्पीड रहती है और मस्त गाने महसूस होते हैं। स्पीकर वास्तव में बहुत शानदार है, पीछे बैठे को कैसा लगता है, नहीं कह सकता, लेकिन गाड़ी चला रहे बंदे को पूरी फील आती है। शहरी क्षेत्र में अधिकांशत: देर रात को कहीं से लौटते समय धीमी आवाज में गाने चलाकर रखता हूं। बिल्कुल पुराने जमाने के विविध भारती जैसी फील आती रहती है।
बूट स्पेस
डिक्की को आजकल बूट स्पेस कहा जाता है। ओला में मशीन नहीं है, तो स्पेस खूब है, इस स्पेस का उपयोग डिक्की बनाने में किया गया है। यह स्पेस 32 लीटर है। ऐसा समझिए कि दो हैलमेट रखने के बाद दूध की थैलियां भी सटा सकते हैं। बहुत स्पेस है। मैंने कुछ दूसरी ई बाइक्स में डिक्की में एलईडी लाइट लगी देखी है, लेकिन ओला में नहीं है, जबकि आसानी से लगाई जा सकती थी। इतनी बड़ी डिक्की है, कई बार कुछ ऊट पटांग सामान भरा पड़ा रहता है। रात के समय अगर कुछ सामान खोजना है तो मोबाइल की टॉर्च का इस्तेमाल करना पड़ता है। अंदर लाइट अब भी लगाई जा सकती है, ओला को इस पर विचार करना चाहिए।
बैटरी
ओला की बैटरी 90 हजार की बताई जाती है। जब ओला खरीदी तो मुझे बताया गया कि 3 साल की वारंटी साथ में आती है, अगर बढ़वानी है तो 7 हजार रुपए अतिरिक्त दो, मैंने दे दिए। ओला ने कहा 5 साल तक बैटरी की जिम्मेदारी उनकी। अभी दो साल हो चुके हैं, जब खरीदी थी, तब एक बार फुल चार्ज के बाद ओला की रेंज नॉर्मल में 135 किलोमीटर और इको मोड में 170 किलोमीटर थी। दो साल बाद आज भी वही रेंज है। अब तक 28 हजार किलोमीटर चला चुका हूं। केवल मैंने नहीं चलाई है, भाई और बेटा भी चलाते हैं। तीनों ने मिलकर 28 हजार किलोमीटर पूरे किए हैं। अभी अगर फुल रेंज मिल रही है, एक साल और मिल जाए तो बाइक पूरी तरह फ्री हो जाएगी। उसके बाद बैटरी डंप भी होती है तो दो साल हाथ में है।
ड्राइव मोड
इस वाहन में चार ड्राइव मोड हैं। नॉर्मल ड्राइव मोड में वाहन की अधिकतम गति सीमा 80 किलोमीटर प्रतिघंटा रहती है और अधिकतम 135 किलोमीटर चल सकता है। वास्तव में शहर में वाहन चलाते समय उतार चढ़ाव और ब्रेक आते ही हैं। इससे वाहन की परास 110 किलोमीटर के आस पास आ जाती है। यह भी शहर के लिए शानदार रेंज है। लंबी दूरी पर जाने के लिए इको मोड का उपयोग किया जा सकता है। इको मोड में रेंज 170 किलोमीटर बताई गई है। अब नए मॉडल में शायद रेंज बढ़ाकर 195 किलोमीटर कर दी गई है। यह रेंज आदर्श स्थिति में है। वास्तव में प्रति पांच किलोमीटर पर एक किलोमीटर की झीजत होती ही है। इससे रेंज कम हो जाती है। इसके अलावा दो मोड और हैं। स्पोर्ट्स मोड में गाड़ी 100 किलोमीटर तक का दावा किया जाता है, और अधिकतम गति सीमा भी 100 किलोमीटर प्रति घंटा बताई जाती है। हाइपर मोड में 89 किलोमीटर की परास और अधिकतम गति सीमा 116 किलोमीटर प्रति घंटा बताई जाती है। व्यवहारिक दृष्टिकोण से इन दोनों मोड को लगातार उपयोग नहीं किया जा सकता। मैंने एक बार हाइपर मोड में कुछ मिनट ओला चलाई है और अधिकतम रफ्तार 95 किलोमीटर प्रति घंटा तक ले गया। इस स्पीड में भी बाइक में न तो वाइब्रेशन आया और आवाज। सामान्य तौर पर नॉर्मल मोड में ही चला सकते हैं।
क्रूज मोड
मैं बीकानेर में अपने घर से 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पूनरासर बालाजी मंदिर सप्ताह में एक बार जाया करता हूं। अब नॉर्मल मोड में ओला की परास 135 किलोमीटर है तो सिद्धांतत: तो मैं एक बार चार्ज करके जाकर आ सकता हूं, लेकिन सड़क पर चलाते समय तेज धीमा और आगे पीछे होना स्वाभाविक है। इससे हर 5 किलोमीटर में एक किलोमीटर की झीजत करीब 20 किलोमीटर का डेंट डाल देती है। परिणाम यह होता है कि मैं नॉर्मल मोड में इतनी दूर नहीं जा सकता था, सो मैं इको मोड में जाता और उसी स्पीड में वापस आता। इससे आने जाने का समय चार घंटे लग जाता। एक दिन प्रयोग के तौर पर मैंने क्रूज मोड उपयोग किया। इसे केवल नॉर्मल मोड में ही उपयोग कर सकते हैं। आश्चर्यजनक रूप से क्रूज मोड ने 50 से 55 के बीच की स्पीड में वाहन को स्थिर रूप से चलाया और बैटरी इतनी बचाई कि मैं बिना दोबारा चार्ज पर लगाए घर से मंदिर और मंदिर से घर तक लौट आया। 20 किलोमीटर से अधिक दूरी की यात्रा में क्रूजर मोड वरदान है।
हैंड्स फ्री कॉलिंग
शुरूआत में यह सुविधा नहीं थी, लेकिन ओएस 4 अपडेट के बाद अगर ओला ब्लू टूथ से जुड़ी हो तो बाइक पर ही हैंड्सफ्री कॉलिंग रिसीव और रिजेक्ट की जा सकती है। यह बहुत ही अच्छा फीचर है। लंबी यात्रा में आप कहीं हाइवे पर किनारे किनारे धीमे धीमे चल रहे हों तो चलती गाड़ी पर ही आसानी से बात कर सकते हैं। मैं तो कई बार कर चुका हूं। ठीक ठाक ही अनुभव है।
नकारात्मक अनुभव
सीट चौडी और लैंथ कम
आगे बैठने वाला फिर भी आराम से बैठ जाता है, लेकिन पीछे बैठने वाले के लिए चौड़ी सीट बहुत असहज कर देने वाली सिद्ध होती है। सीट की लैंथ भी कम है, ऐसे में पीछे बैठा बंदा आगे वाले बंदे से लगभग चिपककर ही बैठ पाता है।
साइड फुटरेस्ट
कंपनी ने शुरू में साइड फुटरेस्ट दिया ही नहीं। करीब एक साल बाद फुटरेस्ट आया, लेकिन यह भी चेपे की तरह ही है। थोड़ा आगे की ओर होने के कारण महिलाओं को एक तरफ पैर करके बैठने में वह कंफर्ट नहीं मिल पाता जो पुरानी स्कूटी में मिला करता था।
सेंटर स्टैण्ड
सेंटर स्टैण्ड तो करीब डेढ़ साल बाद दिया और वह इतना घटिया है कि लगवाने के बाद हर स्पीड ब्रेकर से बिना नागा टकराता रहा। सप्ताह भर रखने के बाद हमने पूरा प्रयास करके उसे वापस उतराया। कायदे का सेंटर स्टैंड देने की जरूरत है।
हैडलाइट कवर
हैडलाइट कवर को प्लास्टिक के इंटरलॉकिंग से जोड़ा गया है, जबकि वहां रबर के इंटरलॉकिंग होने चाहिए थे। यह प्लास्टिक के इंटरलॉक किसी भी धक्के से टूट जाते हैं। अंदर करीब छह इंटरलॉक है, एक के भी टूटने के साथ ही हैडलाइट फटे बांस की तरह आवाज करने लगती है। सर्विस सेंटर जाओ तो एक या दो बार तो वे उसे फेविक्विट से चिपका देते हैं, बाद में हाथ खड़े कर देते हैं कि नया लगाओ। नया कवर 1700 रुपए का है। दो साल में तीन बार बदलवा चुका हूं। अभी पिछले तीन चार महीने से टूटा नहीं है, लेकिन जैसे ही कोई एक लॉक टूटेगा और हैडलाइट फिर फटे बांस सी आवाज करने लगेगी।
अनुपयोगी थीम
सात इंच के टैब में चार प्रकार के थीम दिए गए हैं। यह आवाज को बंद चालू भी कर सकते हैं। स्क्रीन का डिस्प्ले भी बदल देते हैं। चारों की थीम औसत दर्जे की है। इस पर अभी और काम करने की जरूरत है। स्क्रीन पर समय दिखता है, लेकिन तारीख नहीं दिखती। यह दिखनी चाहिए। मैप के जरिए जब ओला पूरा डाटा सूंत ही रहा है तो राइड हिस्ट्री राइडर को भी देनी चाहिए, भले ही मोबाइल एप पर ही दे दे।
खर्च/बचत
खरीदने में हुआ खर्च
खर्च तीन स्तर पर हुआ। पहले 499 रुपए में बुक की। फिर एकमुश्त एक लाख 51 हजार रुपए लिए। फिर 7 हजार रुपए वारंटी एक्सटेंशन के लिए और आखिर में ढाई हजार रुपए चार्जिंग साकेट के लिए। इसमें से सालभर बाद 15 हजार रुपए यह कहकर लौटा दिए कि चार्जर के गलती से दो बार जोड़ दिए थे। मोटे तौर पर मैंने शुरूआत में 1 लाख 61 हजार रुपए जमा कराए और 15 हजार रुपए लौटकर आए। वारंटी एक्सटेंशन के साथ पहला खर्च 1 लाख 46 हजार का हुआ। इसके बाद एक हजार रुपए का सेंटर स्टेण्ड और दो हजार रुपए का साइड फुटरेस्ट खरीदा।
रिपेयर में हुआ खर्च
गाड़ी दो बार भिड़ी। उसका सारा खर्च इंश्योरेंस कंपनी ने दिया, इसलिए उसे जोड़ने की जरूरत नहीं। इसके अलावा तीन बार मैं हैडलाइट कवर बदलवा चुका हूं, उसका खर्च 5100 रुपए रहा। छह बार ब्रेक शू बदलवाए हैं, उसका करीब 4500 रुपए रहा है।
धुलाई का खर्च
हर महीने में एक बार धुलाई करवाता हूं। उसके 70 रुपए लगते हैं। दो साल में 20 बार धुलाई होगी। उसका खर्च अधिकतम 1400 रुपए जोड़ सकते हैं।
बिजली का खर्च
मैंने ठीक ठीक गणना तो नहीं की है, लेकिन मोटे तौर पर एक बार शून्य से सौ प्रतिशत चार्ज करने में 2 यूनिट का खर्च आता है। हम रोजाना चार्ज पर लगाते हैं। एक से डेढ़ यूनिट का खर्च आता है। रोजाना का 12 रुपए का खर्च भी मानें तो महीने का 360 और 24 महीनों का 8640 रुपए खर्च जोड़ सकते हैं।
लंबी अवधि में बचत
हालांकि ओला खुद कार्बन इमिशन आदि भी जोड़ता है, लेकिन उसके पैसे नहीं मिल रहे, तो बचत में भी शामिल नहीं कर सकते। मेरे पास पहले दो वाहन थे। पल्सर अभी भी है, लेकिन चलती बहुत कम है। दूसरी स्कूटी होंडा की थी। दोनों में मिलाकर करीब छह हजार रुपए प्रतिमाह पैट्रोल खर्च था। एक साल में 72 हजार और दो साल में एक लाख 44 हजार रुपए का खर्च था, वह खर्च घटकर 8640 रुपए बिजली के खर्च और करीब पांच सौ रुपए प्रतिमाह पल्सर में पैट्रोल के खर्च पर सीमित हो गए हैं। यानी केवल पैट्रोल के स्तर पर हमने एक लाख 24 हजार रुपए के करीब बचा लिए हैं। इसी गणना को दूसरे तरीके से करें तो एक बाइक सभी प्रकार के खर्च मिलाकर 4 रुपए प्रति किलोमीटर पर चलती है और हमने अब तक 28 हजार किलोमीटर ओला चलाई है, तो भी लगभग इतनी ही बचत बैठती है। छह महीने और चलने के बाद ओला फ्री हो जाएगी। उसके बाद जितनी चलेगी, लगभग मुफ्त में चलेगी।
मेरी सलाह : अगर आपके पास टू व्हीलर है और महीने का ढाई से तीन हजार रुपए का पैट्रोल खर्च हो रहा है, तो उस टू व्हीलर को तुरंत बेचकर लोन पर ओला ले लीजिए। बीस या तीस हजार रुपए के डाउन पेमेंट के बाद लगभग ढाई तीन हजार की ही महीने की किश्त बनेगी। गाड़ी फ्री में चलेगी। और यह सलाह किसी भी दूसरी ईबाइक पर भी उसी प्रकार लागू होती है। अगर बढि़या ई बाइक है तो लंबी अवधि में वह निश्चित तौर पर फायदे का सौदा साबित होगा।