एक दिन मौसम बहुत अच्छा हो रखा था, महादेव और माता पार्वती घूमने निकले। घूमते घूमते हरियाणा के जंगलों की ओर चले गए, वहां देखा कि बाकी सब जगह तो कुछ न कुछ उगा हुआ है, एक जगह गीली मिट्टी का मोटा सा लौंदा पड़ा है। मां पार्वती लहराते हुए नीचे उतरीं और गीले लौंदे से एक मूरत बना दी। त्रिकालदर्शी देखे और मुस्कुराए, बोले प्रिय तुमने तो ऐसा बुत बनाया है जो देखने में ऐसा लग रहा है मानो तुरंत बोलने ही लगेगा।
इस पर मां पार्वती ने लजाते हुए भोले शंकर से कहा, आप चाहें तो इसमें जान फूंक सकते हैं, भोले मुस्कुराए, लेकिन बोले कुछ नहीं, न कुछ किया। इस पर गौरा तुनक गईं, बोली जब तक आप इसमें प्राण नहीं फूकेंगे, मैं आपसे बात नहीं करूंगी। अब भंग की तरंग और बढि़या मौसम का आनन्द नन्दीश्वर खराब नहीं करना चाहते थे, सो त्रियाहठ से आगे झुक गए और बुत में प्राण फूंक दिए।
लेकिन यह क्या, उस बुत का मुंह सिला हुआ ही रह गया। वह देख सकता था, सुन सकता था, लेकिन बोल नहीं सकता था। अब जगद्जननी वास्तव में रुष्ट होने लगी, बोली यह क्या, आपने मुंह क्यों बंद रख दिया। भोले भण्डारी ने कहा बहुत कुछ बातें ऐसी हैं कि ढकी रहे तो ही ठीक है, लेकिन जोगेश्वरी मानी नहीं, बोली कुछ भी हो, आपको इसका मुंह खोलना ही पड़ेगा।
इतनी देर की चिक चिक से भोले बाबा उकता गए, अपना त्रिशूल सीधा किया और सीधे बुत के मुंह में घुसाकर फाड़ दिया, मुंह खुलते हुए बुत कर्कश वाणी में चिल्लाया…
“मुझे पता है, सब मिले हुए हैं”
न प्रणाम न जीवन देने का आभार… ऐसे कृपण इंसान को देख मां पार्वती ने आदिपुरुष से पूछा कि ऐसा क्यों हुआ। इस पर भगवान शिव ने राज खोला कि जो मिट्टी का लौंदा गीला हो रखा था, वहां गधे ने पेशाब किया था। अब तेरा बनाया यह बुत कलियुग में इतना ताण्डव करेगा कि बड़े से बड़ा लुच्चा भी इसे देख खुद को साधु मानने लगेगा।
इति महापुरुषाय: जन्म कथा अस्ति