स्थान :- बुराडी घाट, शुक्रताल के समीप
तारीख – 10-01-1760
एक घायल मराठा खड़ा था तोप के बारूद से जिसका शरीर बुरी तरह क्षतविक्षत था। उसके चारो तरफ मुसलमान सेना घेरे थी और दो मुसलमान सरदार बिलकुल सामने खड़े थे। वो मुसलमान सरदार जिसके हाथ मे भाला था उसने मराठा के कंधे के घाव को कोंचा भाले से। आह भरते मराठे से बंदूक पकड़े मुसलमान सरदार ने कहा
“क्यों पाटिल! और लड़ोगे हमसे ?”
जबाव मे उस घायल सैनिक ने जो कहा वो इतिहास बन गया
उसने जवाब दिया “हां जरूर बचेंगे तो और और भी लड़ेगें “
सुन कर गुस्से से झुंझलाते मुसलमान सरदार ने बंदूक से उस मराठा का सीना खौला दिया। ये मराठा सैनिक था उत्तर मे मराठा साम्राज्य के उस समय के सबसे शूरवीर सेनानायको मे से एक दत्ताजी शिंदे (सिंधिया), और मारने वाला मुसलमान था रूहेलों का मुखिया पानीपत का गद्दार नजीब खान।
यही वाक्य बाद मे महादजी द्वारा अपनी रणनीती बना दिया गया और इस पर ही विशाल हिन्दवी साम्राज्य मध्यभारत मे आकार पाया। मराठा सरदार राणो जी शिंदे के चार लड़के थे। जयप्पाराव, दत्ताजी राव, महाद जी और जानकोजी।
जयप्पा राव की मृत्यु धोखे से हुये हमले मे राजपुताने मे हुई। दत्ताजी बुराड़ी घाट पर वीरगति पाए। जानकोजी पानीपत मे वीरगति पाए। केवल महादजी बा ही पानीपत की लड़ाई मे बचे थे, वो भी बुरी तरह घायल होकर। उनको अर्धमृत हालत मे वहां से बचाने वाला व्यक्ति था भिश्ती राणे खां। जो अपने एक बैल के सहारे महादजी बा को पानीपत से निकाल कर सुरक्षित ले आया था।
महादजी शिंदे पानीपत मे बहुत बहादुरी से लड़े थे। उनके पांव मे जो घाव हुआ उसका असर जीवन भर रहा उन पर। उस लड़ाई से महादजी ने बहुत सीखा। फौज की व्यवस्था रखना , नये तरीके , तोपखाने की व्यवस्थायें और कई कमियो को भी। पानीपत की लड़ाई से टूटे महादजी को सूचना मिली की शिंदे कुल कि सरंजामी जब्त करली गई है पुणे दरबार द्वारा। वो अकेले ही लड़ते रहे और धीरे धीरे अपने बल पर सेना बनाकर अपना क्षेत्र वापस लेते रहे। पेशवा माधवराव के पदासीन होने पर ही उनको सुकून आ पाया
शिंदे कुल के सारे अधिकार , भूमी , सम्पति वापस मिले उन्हें। उसके बाद भी चुप नही बैठे। मराठो का पतन देख कर जो छोटे मोटे राजे सरदार सिर उठा रहे थे उनको नष्ट किया और मध्यभारत मे अपना एक निष्ठ वर्चस्व स्थापित किया। मजे की बात जिन मल्हारराव होल्कर ने अपने गोद लिये पुत्र नजीबखान की वजह से पानीपत मे केवल आधेमन से लड़ना स्वीकार किया उनको भी उनकी वृद्धावस्था मे केवल महादजी ने सहयोग किया
उनकी उत्तराधिकारी प्रातः स्मरणीय माता अहिल्या बाई होल्कर को उत्तराधिकारी स्वीकारने के लिये पुणे दरबार मे खुलकर पक्ष लिया। माता अहिल्या को महादजी बा ने अपने लिखे एक भजनो के संग्रह को भेंट किया। और जब तक जीवीत रहे बड़े भाई के समान माता के प्रति रहे। इलाहाबाद मे मुगल बादशाल शाहआलम को अंग्रेजो से छुड़ाकर दिल्ली वापस लाए। और मराठों के हाथ में उत्तर भारत के समस्त अधिकार ले कर पुणे दरबार की शान बढ़ोतरी की।
महादजी बा ने उज्जैन और मथुरा वृंदावन जो अफगान और रूहेलों के हमलों में नष्ट प्रायः हो गए थे, उसके फिर से निर्मित करने में पूरी सहायता दी। मथुरा मे यमुना किनारे एक बहुत बड़ा पशुओ का चिकित्साल़य बनवाया। और जिन रूहेलो ने पानीपत मे गद्दारी करी थी उनकी राजधानी नजीबाबाद को घेर कर रूहेलो की साढ़े तीन पीढ़ी कटवा दी। माने तीन पीढि़यों की गरदन कटवा दी चौथी के हाथ पांव कटवा कर लूला लगड़ा करवा दिया। रूहेलों को कुत्तों की तरह खदेड़ खदेड़ कर मारा। जिन रूहेलों ने पानीपत मे मराठा सैन्य को मारा और बाद मे अफगानो के साथ मिलकर मथुरा वृंदावन को लूटा उनके लिये यही सजा बेहतरीन थी।
बाद मे महादजी बा के गुरू ढोली बुआ ने आकर उनको इस काम से निवृत कराया। लाहौर और अटक से लूट कर अफगानो की संपत्तियो को वापस हिन्दुस्तान लाए। जिसमे सबसे प्रसिद्ध चीज से सोमनाथ के मंदिर से गजनी द्वारा लूटे गये चांदी मे जड़े पन्ने की प्लेटो से बने द्वार। जो वर्तमान मे उज्जैन के गोपाल मंदिर मे गर्भगृह में लगे हैं। उस समय मध्य क्षेत्र जो मुसलमानों के हाथ की लौंडिया बना हुआ था उसको स्वतंत्र कर तत्कालीन हिन्दु जन को जो सुकून पहुंचाया उनने वो अनन्य था। पानीपत की लड़ाई के बाद केवल तीन योद्धा ऐसे थे जो अगर अकाल मृत्यु ना पाते तो भारत मे अंगरेज काबिज नहीं होते।
प्रथम थे महादजी बा
दूसरे थे पेशवा माधवराव
तीसरे थे जसवंत राव होल्कर
पर तीनो असमय मृत्यु पाये क्रमशः जहर देने , क्षय रोग और मानस सन्निपात से तीनो देह छोड़े। प्रसंग यो उठा की वर्तमान राजनीती के कारण कई लोग शिंदे कुल को गाली दे रहे हैं की वो गद्दारो का खानदान रहा। हमारे एक मित्र ने तो जोश जोश मे महादजी शिंदे पर ही सारे दोष रख दिये यथा पानीपत की हार , होल्कर उत्तराधिकार, महारानी लक्ष्मीबाई नेवालकर की मृत्यु। उस भोले भगत को ये पता नहीं था कि महादजी शिंदे और महारानी लक्ष्मीबाई के समय मे साठ साल का अंतर रहा। लक्ष्मीबाई के समय ग्वालियर मे महादजी का पोता आली जाह जयाजीराव शिंदे पदासीन थे।
पर आजकल के फेबु वीरो को इन ऐतिहासिक बातों से कोई मतलब नही फेबु और वाट्सएप यूनिवर्सिटी से समेट कर कुछ तो भी लिखना है और मूर्खो को उस पर वाह वाह करनी है। केवल जयाजीराव ने लक्ष्मीबाई का साथ नही दिया इससे पूरा शिंदे कुल गद्दार हो गया। जिस कुल में राणोजी, दत्त जी, जयप्पा जी, महाद जी, स्वर्गिय माधोराव शिंदे द्वितीय सरीखे प्रजा वत्सल और धर्म धुरंधर नरेश हुये वो क्या सिर्फ इसलिए गद्दार हो जाएगा कि उनकी लड़की जो अब धौलपुर की महारानी है और राजस्थान की मुख्यमंत्री वो गलत निर्णय ले रही है।