मारवाड़ में, ख़ासकर पुष्टिकर पुष्करणा समाज के, किसी भी धार्मिक आयोजन में अपने आराध्य देवी देवताओं या संत महात्माओं या गुरुजनों को लगाने वाले भोग नैवैध्य की प्रसादी या महाप्रसादी में गेहूँ के आटे, चीनी और दूध का एक विशेष विधि से तैयार पारम्परिक हलवा बनाया जाता है, जिसे “सोळीयो” या ‘होळीयो’ के नाम से जाना जाता है.
कृपया ध्यान रखें ये कोई सामान्य हलवा नही होता है, इसीलिए इसको बनाने के तरीक़े को सही से अपनाएँ.
दरअसल, एक किलो लाल गेंहू के मोटे पिसे आटे को दो किलो शुद्ध देशी घी में मध्यम आंच पर अच्छी तरह सेककर उसमें धीरे धीरे सोलह किलो फुल क्रीम दूध को क्रमशः मिलाते हुवे पकाया जाता है, और दूध के आटे के कण कण में पूरी तरह रम जाने/ पक जाने के बाद घी छोड़ने पर अंत में डेढ़ किलो चीनी और बीस ग्राम साबुत कालीमिर्च डालकर थोड़ा और पकाकर इस बहुत ही स्वादिष्ट “सोळीये” को तैयार किया जाता है.
इस विशेष हलवे को तैयार करने में बहुत ही मेहनत और धीरज का काम होता है, इसलिए कुछ पारम्परिक कारीगर ही इस होळीये को सही ढंग से बना पाते हैं…
पारम्परिक स्वाद के जानकार तो इसके दीवाने होते है.
चूंकि, सोलह किलो ख़ालिस फुल क्रीम दूध, चीनी और शुद्ध देशी घी से बिना पानी के पका ये सोळीया काफ़ी गरिष्ठ होता है, इसलिये मधुमेह और कमजोर पाचन वाले स्वविवेक से ही इसकी मात्रा का सेवन करें…
इस सोळीये के साथ बेसन की हींग और गर्ममसालों से भरपूर लंबी बूंदी (नर्म पकोड़ा), चावल व गट्टे का पुलाव (तेहरी) का बेजोड़ मिलन रहता है…
यदि आपने भी इस पारम्परिक “होळीयो” , “पकोड़ा” और “तेहरी”के स्वाद का आनंद लिया है तो अपने अनुभव जरूर बतायें..
आप बताई गई सामग्री को कम मात्रा में इसी अनुपात में लेकर सोलियो बनाकर भी इसके ज़ायके का आनंद ले सकते हैं.
लेखक S B Mutha मूलत: जोधपुर राजस्थान के हैं और
Electrical, Energy and Automation Consultant and service provider हैंं।