औसत होना हमें डराता है The Fallacy Of Being Special
पापा बेटे-बेटी से कहते हैं : तुम दुनिया के सबसे अच्छे सन-डॉटर हो। वाइफ़ हस्बैंड से यही कहती है, हस्बैंड वाइफ़ से। व्यक्ति देश की जय बोलते समय यही संवाद नारा बनाकर बोलता है। इकाई से भीड़ की ओर बढ़ते जाइए, यह ‘यू आर द बेस्ट’ अथवा ‘यू आर द चोज़ेन वन’ का शोर बढ़ता जाएगा।
शिक्षा भी इसी नीति का अनुसरण करती है कि हर बच्चा प्रतिभा का भाण्डार है। हर बच्चा कुछ कर सकता है, वह कुछ विशिष्टताएँ समेटे है। हर आदमी-औरत में एक सुपरहीरो है, फ़िल्में हमें विश्वास दिलाती हैं। वे नायक का अनुसरण-अनुकरण करने को नहीं कहतीं, वे नायक हो जाने के लिए उत्प्रेरित करती हैं।
विशिष्टता छद्म ही सही, लेकिन विश्वास का संचार करती है। आशा के उजाले में लोग जीवन जीना आसान समझते हैं। इसलिए तुम सबसे अच्छे भाई हो, बहन हो, पति हो, पत्नी हो, माँ हो, बाप हो — का पब्लिक डिस्प्ले ऑफ़ एफ़ेक्शन लोग खुलकर करते हैं। यह अभिव्यक्ति है यह दिखाने की कि मैं कितना / कितनी ख़ुश हूँ, आप मेरे फ़ोटोग्राफ़ों में देख सकते हैं। मैं आनन्द के सागर में गोते लगा रही / रहा हूँ। यिप्पी !
लेकिन फ़ोटोग्राफ़ों में आपका मन नहीं दिखता, मन की असुरक्षा नहीं दिखती। ‘आ जाओ ऑन द बीच, यार फ़ोटो मेरी खींच’ — में वह पानी नहीं नज़र आता, जो गला चोक कर रहा है और जिसके कारण कोई मुस्कुराते हुए खाँस भी नहीं पा रहा। से चीज़!
आप माने-न माने, अँधेरा आपके चारों ओर पहले से बढ़ा है। आपकी छाया पहले से अधिक घनेरी हुई है, बस वह आपके पीछे चलती है। सामने रंग-रंग की लाइटें हैं, आपकी आँखों को उन्हें देखते हुए जीवन बिता डालना है। पीछे मत देखिएगा, नहीं तो फिर आगे बढ़ा न जाएगा, न प्रकाश को देखा जाएगा। दुनिया के साउण्ड-लाइट-शो को वह कोई आदमी नहीं देख सकता, जिसने अपनी शैडो का भुतहा शो देख लिया हो।
हम सदियों धर्म के तले जीवन जीते आये हैं। उसने हमें विशिष्टता की अनुभूति कराये रखी। ‘बड़े भाग मानुस तन पावा’ — हमें रोमांचित करता रहा। जातियाँ-कुल-नस्ल हमें ऊँच-नीच के बोध से ग्रस्त करते रहे। फिर अचानक कुछ लोग औसत की बात करने लगे। ये मरदूद वैज्ञानिक कहलाते थे।
इन्होंने कहा कि तुम ख़ास नहीं हो, औसत हो। तुम्हारा परिवार औसत है, तुम्हारा मोहल्ला औसत है, तुम्हारे लोग औसत हैं। तुम्हारा देश औसत है, तुम्हारा ग्रह औसत है। तुम्हारा सूर्य भी औसत है, तुम्हारी आकाशगंगा भी। अपने आप को सिर्फ़ इसलिए विशिष्ट न मानो कि तुम-सा कोई तुम्हें मिला नहीं।
लेकिन ये बातें हुए-बीते भी ज़माना हुआ। अब लोग सामान्यता को इस रूप में मान चुके हैं। पर फिर उन्हें कुछ नये लोग पिछले कई सालों से बता रहे हैं कि तुम विशिष्ट हो, सबसे विशिष्ट। हर आदमी जो आपकी विशिष्टता आपको सुना रहा है, साथ में जोड़ दे रहा है — “आइ ऐम सो सो प्राउड ऑफ़ यू !”
मैं आपसे गौरान्वित महसूस कर रहा हूँ, इसलिए आप बने रहिए। टूटिएगा नहीं, दरकिएगा भी नहीं। मैं हूँ न ! आपको सम्भालूँगा, आपको बचा लूँगा। आपको बताता रहूँगा कि आप सबसे स्पेशल हैं।
मैं इस लेख में निर्णयवादी नहीं हो रहा, यह लेख सनक के कारण नहीं लिखा जा रहा। यह लेख अपने ही साये को साउण्ड-लाइट-शो का किरदार बनाने की कोशिश है। कि आगे आओ, कब तक पीछे से लोगों को डराते रहोगे भाई ! लेकिन समस्या यह है हर आदमी अपने साये के साथ शो में अकेला, नितान्त अकेला होता जा रहा है। माई लाइफ़, माई रूल्ज़ के मन्त्र के साथ माई शैडो का प्रच्छन्न फ़्रेज़ संलग्न है।
मैं इस बात को हमेशा मानता हूँ कि विज्ञान आपको सबसे जोड़कर भी निस्संगता देता है। वह आपमें स्वार्थ की वृत्ति पोसता है। लेकिन यही काम धर्म भी करता था, बस वह आपको आपके कामों की ज़िम्मेदारी भी याद दिलाता रहता था। लेकिन साइंस कर्म को किसी नीति से नहीं जोड़ती, वह बस आपको आपकी सुविधाएँ बताती-दिला देती है। अब यह आप पर है कि टीके बनाएँ या जैविक हथियार ! धर्म के युग में अँधेरा अलग मेल का था, आज उसका प्रकार दूसरा है।
जब सुविधा सर्वाधिक स्वार्थी होती है, तो वह सुविधाभोगी को सबसे कमज़ोर करती है। आप मौज की मौजों में ऊपर-नीचे तो होते हैं, लेकिन तैर नहीं रहे होते। आपको लहरें ऊपर-नीचे फेंक रही होती हैं। आपने अपने आप को लेट लूज़ नहीं किया, आपने अपने आप को हर तरह से यूज़ किया।
यह अकेलापन अभी और बढ़ेगा। दुनिया अभी जवान है, पार्टी अभी शुरू हुई है। अगले बीस साल के भीतर इस प्रोसेस्ड जीवन के आपको दुष्प्रभाव हर ओर भरपूर दिखेंगे। नशा हर नियम तोड़ेगा, लोग रिक्रिएशन को साइंस से जोड़कर उसे सही ठहराएँगे। दो-तीन पीढ़ियाँ इसमें तबाह हो जाएँगी।
तब हमारे गत रिक्रिएशनल जीवन की गलन को देखकर कोई नया बच्चा हमसे पूछेगा :
आपने क्रिएट क्या किया अपने जीवन में, रिक्रिएट तो बहुत किया?
स्कन्द शुक्ल
लेखक पेशे से Rheumatologist and Clinical Immunologist हैं।
वर्तमान में लखनऊ में रहते हैं और अब तक दो उपन्यास लिख चुके हैं