तितली मेरे हाथ पर साहस के साथ आ बैठती है। मैं उसे फूँकता नहीं , फूल बनने का अभिनय करने लगता हूँ। वह अपने घुमावदार एन्टीनों से मेरी जबरन ओढ़ी निष्क्रियता को चिढ़ाती है , फिर उड़ जाती है। शायद तितिलिया हँसी हँस कर कि बावले आदमियों को फूल बनने की क्या पड़ी है।
चार बिलियन सालों से हम धरती पर हैं। आठ मिलियन प्रजातियों का नन्हा परिवार। आप हैरान हो गये हों , तो जानिए कि धरती पर जन्म ले चुकने वाली वाली निन्यानवे प्रतिशत जीव-जातियाँ अब इस दुनिया में नहीं हैं।
मैं मनुष्य हूँ , मेरी मनुष्यता साथी-जीवों से होड़ लगाती है। मैं दौड़ने में घोड़ों को पिछाड़ चुका हूँ , उड़ने में परिन्दे मेरे मुक़ाबले उन्नीस हो चुके हैं। हर काम जो जीवन दुनिया में करता है , मैं मशीन से उससे बेहतर कर दिखाता हूँ। मैंने इस नीली कुदरत को किसी माट्साहब का क्लास-रूम बना छोड़ा है।
जीवन कक्षा है , लेकिन केवल कक्षा नहीं है। जीवन नौकरी है , लेकिन केवल नौकरी नहीं है। जीवन मौज है , लेकिन केवल मौज भी नहीं है। क्या कहा : प्रेम ? हाँ , जीवन केवल प्रेम है , अगर वह आठ मिलियन प्रकार के साथियों से हो सके तो।
‘नेचर एकॉलजी एण्ड एवॉल्यूशन’ के अंक में वैज्ञानिक जन्तुओं के जीवन की आगे बढ़ने की सम्भावना पर बात कर रहे हैं। हाथी-बनाम-चींटी , बरगद-बनाम-कुकुरमुत्ता , स्कन्द-बनाम-जीवाणु में आगे तक कौन चल पाएगा और क्यों ?
क्या प्रकृति पक्षपाती है ? वह जीवन को आगे बढ़ाने की कोशिश करते सभी जीवों में बड़ों या छोटों में आकार-आकृति में किन्हीं को चुनती है ? वह कैसे तय करती है कि अस्तित्व के संघर्ष में कौन सी प्रजाति ज़्यादा या कम दक्ष है ?
सत्य यह है कि महासागर की अतल गहराइयों में गोते लगाने वाली नीली ह्वेल हो या फिर घने जंगलों में टहनियों को अपनी चिंघाड़ के साथ मरोड़कर तोड़ देता गजराज , चीनी के आयत को पूरे मनोयोग से उठाने वाली चींटी हो या फिर आसमान से घास में लुकते-छिपते चूहे पर घात लगाने वाली चील — सभी अपने माताओं-पिताओं की बराबर ऊर्जा / ग्राम पाते हैं और आगे वाली अपनी पीढ़ियों को देते हैं।
अब इसके लिए जीव-द्रव्यमान् को समझना होगा। सभी जीवों में कुछ-न-कुछ द्रव्यमान् है : छोटे जीवों में कम और बड़े जीवों में ज़्यादा। बड़े जीव धीमे विकास करते हैं , छोटे जीव जल्दी विकसित हो जाते हैं। चूहा हाथी की तुलना में प्रजनन के लिए जल्दी तैयार होता है और जल्दी मर भी जाता है। फिर एक जीवन-काल और प्रजनन का सम्बन्ध जीव के तापमान से भी है। गर्म रक्त वाले जीव जल्दी परिपक्व होते और प्रजनन करते हैं , ठण्डे रक्त वाले जीव देर में।
शोध यह कहता है कि छोटे गर्म जीव अपने जीवन-काल में तेज़ प्रजनन के कारण ज़्यादा जीव-द्रव्यमान् बनाते हैं लेकिन प्रति ग्राम में निहित ऊर्जा सभी जीवों में बराबर होती है। यही वह ऊर्जा है जो एक अभिभावक माता-पिता अपनी सन्तति में स्थानान्तरित करता है।
आप विज्ञान की जटिल परिभाषाओं में उलझ रहे हों , तो जाने दे सकते हैं। बस इतना महत्त्वपूर्ण है कि जीवन की हर नस्ल के भीतर जिजीविषा की दक्षता प्रकृति ने बराबर तय ही है। बाहर से रोग-दुर्घटना के कारण मौत आ जाए , तो बात अलग है।
प्रकृति किसी बच्चे को दूसरे पर चुन नहीं रही। उसके लिए स्कन्द के जीवन का महत्त्व अमीबा के जीवन के बराबर है।
मैं अपने-आप को विशिष्ट मानता हूँ , तो यह आत्ममोह की मेरी समस्या है। मेरे मनुष्य होने के कारण श्रेष्ठता-दम्भ से उपजा एक नित्य बढ़ता रोग , जिसका उपचार मुझी को ढूँढ़ना है।
स्कन्द शुक्ल
लेखक पेशे से Rheumatologist and Clinical Immunologist हैं।
वर्तमान में लखनऊ में रहते हैं और अब तक दो उपन्यास लिख चुके हैं