300 वर्ष प्राचीन शिलामयी श्री यंत्रराज मेरू

Shree Yantra Raj Meru at Vidhyanchal

विंध्याचल तीर्थ मे विंध्यवासिनी वनदूर्गा, अष्टभुजा योगमाया और कालीखोह की चामुंडा के त्रिकोण के अंतर्गत भैरव कुंड जो उन्नीसवीं शताब्दि के महान आगमाचार्य और कौल श्री श्री अक्षोभ्यानंद सरस्वती जी की तपस्थली रहा है, उसी के समीप भावानंद स्माधि स्थल के समीप एक खंडहर मे यह शिलामयी श्री यंत्रराज मेरू रखा है।

1994 में जब हम दसवीं मे थे तब यहां की स्थिती दयनीय थी मतलब मंदिर पूरी तरह खंडहर होचुका था बाद मे सुनते हैं की कुछ लोगो ने मंदिर का जीर्णोद्धार करा दिया।

यह यंत्रराज पूरी तरह अखंडित अवस्था मे हैं पर वर्तमान पुजारी की औकात इतनी ही है की दो लोटा पानी फेंककर इस को धनदायक यंत्र बता कर रूपया दर्शनार्थियो से दस बीस पचास रूपये की जुगाड़ लगाता रहता है किसी किताब से पढ़कर कमला मंत्र पढ़कर काम चला रहा है।

यह यंत्र बहुत विशाल शिला पर बना है कम से कम तीन चार सौ वर्ष पुराना। उस समय का अवशेष जब विंध्य सचमुच मे शाक्तो का गढ़ रहा होगा।


Avinash Bhardwaj Sharma

लेखक : अविनाश भारद्वाज शर्मा