न्यूनतम अंक लाने वाला जीनियस rahul gandhi political genius
एक बार एक परीक्षा में यह नियम था कि तीन सवाल गलत करने पर एक सवाल जितने अंक कट जाएंगे। एक छात्र ने उसी परीक्षा में -33 प्रतिशत अंक हासिल किए। परीक्षा नियंत्रक ने संस्थान को सूचना दी और संस्थान ने तीन परीक्षकों की पैनल बनाकर उस छात्र के अभिभावक को बुला लिया और बताया कि छात्र जीनियस है। परीक्षा परिणाम जारी होने के बाद बच्चे को जी भर कोस चुके अभिभावकों के लिए यह आश्चर्य वाली बात थी। वास्तव में परीक्षा में केवल वही विद्यार्थी सभी सवालों के गलत जवाब दे सकता है, जिसे सभी सवालों के सही जवाब पता हों। यानी छात्र को सभी सवालों के सही जवाब पता थे, लेकिन वह परीक्षा उत्तीर्ण नहीं करना चाहता था, या कहें कि वह परीक्षकों को अपना लोहा नकारात्मक तरीके से बताना चाहता था। जो भी है, परीक्षकों ने छात्र को पहचान लिया।
अगर आपको राहुल गांधी मूर्ख लगते हैं तो आप शायद एक जीनियस का बहुत गलत आकलन भी कर रहे हो सकते हैं, पिछले कुछ समय में राहुल गांधी ने बिना फेल हुए लगातार इतनी मूर्खताएं की हैं कि मुझे शक होने लगा है कि यह अधिकतम नकारात्मक अंक लाने वाला जीनियस तो नहीं।
गौर करेंगे तो पता चलेगा कि अब तक राहुल गांधी ने जो भी मूर्खताएं की, वे सभी सधी हुई मूर्खताएं थी, कभी उसने अपने परिवार की अंदरूनी स्थिति के बारे में नहीं बोला, कभी उसने अपने फॉरेन अफेयर्स के बारे में नहीं बोला, कभी उसने इंटरनल स्ट्रेटर्जीज का खुलासा नहीं किया, केवल भाषणों और अपने फौरी व्यवहार में ही मूर्खताएं पेश करता रहा है।
कभी उसने अपनी मूर्खता में वाड्रा पर निशाना नहीं साधा, जबकि मनमोहन सिंह और पार्टी लाइन तक को धता बता चुका यह युवराज परिवार के बारे में नहीं बोलता। अपनी मां की बीमारी और अपने पिता के विदेशी संबंधों के बारे में कभी नहीं बोला। ऐसा कैसे हो सकता है, अगर एक इंसान एक जगह मूर्ख होगा तो वह सभी जगह मूर्ख होगा, यह मूर्खता सलेक्टिव मूर्खता है तो सावधान होने की जरूरत है कि यह मूर्ख कहीं डार्क नाइट का जोकर तो नहीं है।
मैंने अब तक तीन लोगों से बात की है, जिन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि राहुल गांधी आमने सामने की बातचीत में ऐसी मूर्खता पेश नहीं करते। एक सज्जन ने कुछ साल पहले, करीब 6 साल पहले मुझे राहुल गांधी के विदेशी एक्सेंट और समझ के बारे में कहा था कि यह बहुत तेज तर्रार बंदा है और एक जगह टिककर नहीं बैठता, दूसरे सज्जन ने अभी कुछ दिन पहले मुझे अपनी करीब सत्रह अठारह साल पुरानी मुलाकात का हवाला देते हुए बताया कि करीब दस पंद्रह मिनट की बातचीत में वह बंदा किसी कोण से मूर्ख नहीं लग रहा था, बल्कि बहुत शार्प तरीके से बात कर रहा था।
अब पिछले चार साल में ऐसी भी कोई घटना की सूचना नहीं है कि राहुल पर किसी दिमागी चोट का असर हो या कोई भूत प्रेत का साया हो, फिर कारण क्या हो सकते हैं??
घटनाओं का सिलसिलेवार विश्लेषण करने पर मैं पाता हूं कि देश की आजादी से लेकर 2014 तक किसी न किसी रूप में देश के अधिकांश हिस्से को प्रभावित करने वाले इस परिवार के लिए सबकुछ छोड़ना बहुत आसान नहीं है, हजारों या लाखों करोड़ की संपत्ति को ले ये लोग सीधे सीधे भाग भी नहीं सकते, क्योंकि सत्ता पर कब्जा जमाए रखने के लिए इस परिवार ने पार्टी की पूरी प्रतिबद्धता और पूरी निर्भरता अपने ऊपर ही बनाए रखी है। अब अगर इन लोगों को इन सबसे पिंड छुड़ाना है तो यह स्टेप बाइ स्टेप ही हो सकता है।
यूपीए की लीडिंग पार्टी से चालीस सीटों तक सिमटी कांग्रेस के अधिकांश क्षेत्रीय कद्दावर नेताओं ने या तो भाजपा का दामन थाम लिया है या स्थानीय पार्टियों से जुड़ गए हैं, बाकी लोगों को भी परिवार से या तो उपेक्षा मिलती है या निराशा, ऐसे में कांग्रेस का कुनबा लगातार घटता जा रहा है। अब अधिकांश बचे हुए लोग वही हैं जो कांग्रेस राज में या तो बहुत शक्तिशाली पदों पर रहे हैं या केन्द्र में जमे हुए हैं। वर्ष 2019 में अगर इस परिवार के भाग्य से भारत पूरी तरह कांग्रेस मुक्त हो गया, तो हो सकता है 2020 के बाद नेहर गांधी परिवार का यह आखिरी वारिस बहादुरशाह जफर की तर्ज पर सिंगापुर या ऐसे ही किसी छोटे देश में शिफ्ट हो जाए। बाकी परिवार भी आसानी से खिसक पाएगा। अगर आज यह परिवार सबकुछ छोड़कर निकल जाता है तो इन पर निर्भर लोग इन्हें किसी भी देश में सुकून से जीने नहीं देंगे। ऐसे में कांग्रेस के पूरी तरह खत्म होने तक तो इन्हें जगह जगह मूर्खताएं करते हुए समय व्यतीत करना ही होगा, ताकि लोग परिवार का पिंड पूरी तरह छोड़ दें।