भोजन बनाना भी एक कला है – S B Mutha

jodhpur ki galiyan facebook group

फेसबुक पर एक बहुत ही सक्रिय समूह है जोधपुर की गलियां। जैसा कि नाम से लगता है कि यह समूह किसी क्षेत्र विशेष यानी जोधपुर के संबंध में बातें करता होगा, तो आप गलत हैं, यह समूह खाने पर आधारित है। यहां हर प्रकार के भोजन की बात होती है। केवल जोधपुर ही नहीं बल्कि पूरे राजस्‍थान और कुछ मामलों में देश के दूसरे कोनों में बनते रहे और वर्तमान में बन रहे पकवानों पर चर्चा होती है।

s b mutha Electrical, Energy and Automation Consultant and service providerसभी प्रमुख सदस्‍य रोजाना किसी न किसी स्‍वादिष्‍ट पकवान की रेसिपी लेकर आते हैं, केवल पकाने की विधि भर नहीं बल्कि कई मामलों में पकवान से जुड़ी परंपराओं और इतिहास पर भी चर्चा होती है। इस समूह के मॉडरेटर एसबी मूथा का भोजन से बेहद लगाव है। इतना कि जेब में डायरी पेन रखते हैं और किसी जीमण में कोई पकवान भा जाए तो बाकायदा रसोईए के पास जाकर पकाने की विधि नोट करके लाते हैं। आ सखी चुगली करें समूह की प्रवीणा जोशी ने फेसबुक चैट में ही एसबी मूथाजी का इंटरव्‍यू किया है। देखिएगा…


आपका स्वाद का सफर कैसे शुरू हुआ , क्या खुद भी खाना बनाते है?

ब्राह्मण परिवार की शुद्धता और शुचिता की परंपरा का निर्वहन करते हुए महीने के चार या पांच दिन तक खाना बनाने का काम पिताजी और हम भाई बहनों पर आता था… सब मिलजुल कर अपनी अपनी समझ और दक्षता से काम करते थे. मेरा 1968 से नम्बर आया.. 🙂 तब से लगाकर स्कूल कॉलेज और सर्विसेज के दौरान भी अक्षरशः खाना बनाने और नित नए प्रयोग करते रहना बहुत ही अच्छा लगता है. आज भी बेटी व बहुओं के साथ ये बदस्तूर जारी है..।

आपके स्पेशल डिशेज कौनसी है, कहाँ का खाना आपको सर्वश्रेष्ठ लगता है?

मेरी स्पेशल डिशेज राजस्थान के पारंपरिक व्यंजन जैसे दाल बाटी चूरमा, पचकुटा की सब्जी (कैर कुमटिया सांगरी गूंदा अमचूर), कैर दाख की सब्जी, मारवाड़ की मिठाइयां, पुष्करणा स्पेशल सोळीया..आदि और गुजराती खाना.. कामकाज के सिलसिले में भारत के विभिन्न स्थानों पर रहने व खाने पीने का मौका मिलता हैं और सभी जगह के शाकाहारी भोजन का भरपूर आनंद लेते हैं…उत्तर व पश्चिम भारत का खानपान सर्वाधिक पसंद है, वैसे दक्षिण भारत का खानपान भी पसंद है..।

भोजन की नई पुरानी आदतों में आप क्या अंतर महसूस करते है?

भोजन की पुरानी आदतों में शुद्धता सात्विकता और पोषण का ज़्यादा ध्यान रखा जाता था, ऋतुनुसार क्षेत्रीय खानपान रहता था.. आजकल तुरंत बनने वाले केवल जीभ के स्वाद वाले व्यंजनों का बोलबाला है.. उसी के अनुरूप स्वास्थ्य पर भी असर दिखाई पड़ता है।

आम भारतीय रसोई में कौनसे मसाले लुप्त होने लगे है?

आम भारतीय रसोई से परंपरागत छौंक तड़का बघार के लिए काम आने वाले मसालों की अहमियत नही जानने के कारण उनका प्रयोग प्रायः लुप्त होता जा रहा है. उसके स्थान पर केवल जीभ के स्वाद के लिए तेज़ मिर्च मसाला और भोजन को ज्यादा खट्टा पसंद किया जा रहा है.. ज्यादा तली हुई चीजें और जंक फूड पसंद किया जा रहा है.. अचार आदि में भी परंपरागत मसालों से प्राकृतिक रूप से गलाने के स्थान पर सिरका व एसिड आदि का प्रयोग किया जा रहा है।

गृहणियों के लिए सलाह?

भोजन बनाना भी एक कला है, इस कला को बड़े सलीके व संयम से ही सीखा जा सकता है. भोजन बनाने वाला खाने वाले के लिए अन्नपूर्णा का दर्जा रखता है.. इसलिए जो भी पकायें, परोसें या खायें उसमें शुद्धता, शुचिता और श्रद्धा का विशेष महत्व है. तभी वो भोजन शरीर रूपी मंदिर के अंदर बिराजने वाले देवता के लिए भोग बन जाता है. सामग्री, स्थान और सलीका पकाने और खाने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं. केवल जिव्हा के स्वाद के लिए नही परन्तु व्यजनों के गुणधर्म मौसमानुसार आहार का प्रयोग करना चाहिए।

भोजन विधियों का आप कलेक्शन कैसे करते है और कब से कर रहे?

भोजन विधियों का ज्ञान स्वयं पकाकर या पढ़कर या घर परिवार या सामाजिक आयोजनों में प्रायोगिक तौर पर बनते हुए देखकर मिल जाता है. ये शौक करीब 40 साल से हैं..।

क्षेत्र या जाति वार भोजन तैयारी में क्या अंतर देखते है?

क्षेत्र या जाति वार भोजन में ज्यादातर स्थानीय तौर पर बनाये जाने वाले प्रचलित व्यंजनों को ही प्राथमिकता दी जाती है, हरेक जाति का अपना एक अलग खानपान का तरीका है ज्यादातर लोग उसी को फॉलो करते हैं. हाँ, अब सूचना और तकनीक के साथ अंयत्र बनने वाले व्यंजनों की जानकारी प्राप्त हो जाने के कारण उनको भी स्थानीय स्तर पर बनाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन जलवायु और सामग्री असर जरूर दिखाई देता है।

– प्रवीणा जोशी