बुद्धिजीवियों की एक जमात का मानना है कि केजरीवाल का उदय एक प्रकार का प्रतिक्रियावाद या अराजकतावाद है। मौजूद व्यवस्था से आहत लोग इस व्यवस्था को चुनौती देने वालों के पक्ष में आ खड़े हुए हैं। लेकिन जमीन देखने के लिए हमारे बीकानेर में पान की दुकान से बेहतर स्थान और कोई हो नहीं सकता। सभी बौद्धिक, परा बौद्धिक, अधि भौतिक और अबौद्धिक तक की चर्चाएं इन्हीं पान (betel) की दुकानों पर होती हैं।
इन्हीं पान की दुकानों में से एक पर बीती शाम मैं भी उलझ गया। मैं खुद को बद्धि जीवी मानकर वहां उतरा था, लेकिन चर्चा के अंत में लोगों ने स्पष्ट कर दिया कि न तो मेरे अंदर इतनी बुद्धि है कि केजरीवाल को समझ सकूं न इतना सामर्थ्य। मेरे अपने तर्क थे और उन लोगों के अपने। चर्चा कुछ इस प्रकार हुई।
मैंने कहा – केजरीवाल आम आदमी (Aam Aadmi) का स्वांग भरकर मीडिया के जरिए लोगों के सेंटिमेंट भुनाने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए मैंने उदाहरण दिया कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में गैले गूंगे चैनल को भी प्रति एक सैकण्ड का पांच से दस हजार रुपए वसूलना होता है। ऐसे में पूरे पूरे दिन केजरीवाल के गीत गाने वाले न्यूज चैनल्स का खर्चा का मुफ्त में चलता होगा। या कोई दैवीय सहायता प्राप्त होती है।
जवाब मिला : मीडिया को भी टीआरपी (TRP) चाहिए। आज हर कोई केजरीवाल को देखना चाहता है। ऐसे में मीडिया की मजबूरी है कि वह केजरीवाल और उसके आंदोलन को दिखाए। अगर चैनलों को खुद को दिखाना है तो केजरीवाल को दिखाना ही पड़ेगा। वरना उस चैनल की टीआरपी धड़ाम से नीचे आ गिरेगी।
मैंने कहा : केजरीवाल ने आम आदमी के नाम पर जितने आंदोलन किए हैं सभी विफल रहे हैं। केवल जबानी लप्पा लप्पी (verbal jiggaling) की मुद्रा ही रही है।
जवाब मिला: अब तक किसने आम आदमी की आवाज उठाई है। भाजपा (BJP) और कांग्रेस (CONGRESS) तो एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। बाकी दल भी अपनी ही रोटियां सेंकने का काम कर रहे हैं। पहली बार कोई आदमी ऐसा आया है, जिसने आम आदमी की बात की है और उसकी ओर से लड़ाई लड़ी है। उसके प्रयास ही काफी हैं। सफलता और विफलता तो ऊपर वाले की देन है।
मैंने कहा : केजरीवाल कांग्रेस से मिला हुआ है। यह उनकी बी टीम (B Team) है।
जवाब मिला : कांग्रेस और बीजेपी वाले अपनी रांडी रोणा करते रहेंगे। एक कहेगा दूसरे की बी टीम है और दूसरा कहेगा पहले की बी टीम है। आज केजरीवाल दोनों के भूस भर रहा है। जनता इन भ्रष्ट (Currupt) नेताओं की ऐसी तैसी कर देगा।
मैंने कहा : एक साल पहले आए इस नए नेता के पास न तो देश के लिए वीजन (Vision) है न ही इसका कोई पॉलिटिकल बैकग्राउंड (Political background) है। ऐसे में हम कैसे कह सकते हैं कि यह आम आदमी को राहत दिलाने का काम करेगा।
जवाब मिला: जो पहले से अनुभवी लोग हैं उन्होंने कौनसे काम करवा दिए। सब अपना घर भरने में लगे हैं। यह बदलाव की बयार लेकर आया है तो जरूर काम करेगा। कम से कम एक नए आदमी को मौका तो दे रहे हैं।
मैंने कहा : केजरीवाल बहुत अधिक अकल लगाकर काम कर रहा है। केवल दिल्ली (Delhi) में आंदोलन करता है और पूरे देश पर छा जाता है। केवल मैट्रो सिटी (Metro city) के लोगों की भावनाएं ही भुना रहा है। देश के अन्य हिस्सों में इसका कोई खास असर नहीं है।
अब लोग तैश में आ गए, बोले: भो##** के गांव गांव तक जाकर केजरीवाल का नाम सुन ले। (एक ने खाजूवाला जो कि सीमा से सटा हुआ कस्बा है, दूसरे ने श्रीकोलायत, तीसरे ने लूणकरनसर में चल रही हवा के बारे में जानकारी दी।)
जब मेरे तर्क और क्षमता जवाब दे गए तो पान की दुकान पर मेरी जमकर मलामत की गई। मुझे नेताओं का पिठ्ठू करार दिया गया और बताया गया कि मैं जमीनी हकीकत (Ground realities) से कोसों दूर हूं। अब देश में तेजी से बदलाव आ रहा है और इस बदलाव के रथ को केजरीवाल चला रहा है। जल्द ही लोकसभा और ग्राम सरपंच तक के चुनावों में आम आदमी पार्टी ही राज करेगी। हर घर में आज टीवी चैनल है और सब देख रहे हैं कि देश में क्या हो रहा है।
मैंने रूंआसा होकर पूछा मोदी (Modi) ?
जवाब आया: मोदी ने किया होगा गुजरात में काम, लेकिन आज देश को अगर जरूरत है तो केजरीवाल की है। वही देश की लय को सुधार सकता है। वही है आने वाले जमाने की ताजी बयार। वहीं से परिवर्तन की शुरूआत होगी। भाजपा और कांग्रेस तो एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं।
अब मैं सोच रहा हूं कि अगर पान की दुकान से लेकर गांवों (Gaanv) तक अगर केजरीवाल फैल चुका है तो क्या मोदी केवल अपनी सोशल मीडिया फौज पर ही राज कर रहा है। सोशल मीडिया पर भी देख रहा हूं कि बुद्धिजीवियों का एक बड़ा तबका केजरीवाल को हृदय से स्वीकार कर चुका है और जिस प्रकार अमिताभ बच्चन की छोटी मोटी भूलों को भी पर्दे पर उनकी स्टाइल में शामिल कर देखा जाता रहा है, उसी प्रकार केजरीवाल के प्रयासों में रही कमियों को इसी प्रकार नजरअंदाज करने का दौर चल रहा है।
आपको क्या लगता है ?