जो युद्ध सीबीआई का आंतरिक युद्ध दिखाई दे रहा है, वह वास्तव में विपक्ष के संभावित प्रधानमंत्री उम्मीदवार चंद्रबाबू नायडू और भाजपा मोदी के बीच की पर्सनल इंटेलिजेंस वार का परिणाम हो सकता है।
दोनों ही पार्टियों के पास अपना निजी ताकतवर इंटेलिजेंस है, जिसे वे एक दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल कर रहे हैं, दिल्ली से दक्षिण के बीच यह शीत युद्ध टीडीपी के अलग होने के बाद तेज हो चुका है, भले ही पानी के ऊपर शांत बत्तख दिखाई दे रही है, लेकिन पानी के नीचे बहुत तेज हलचल है। विपक्ष के अधिकांश नेता चुक चुके हैं, उत्तर के शून्य को भरने का प्रयास दक्षिण से किया जाना है, यहीं पर महत्वाकांक्षी नायडू उठ खड़े होते हैं।
मोदी समर्थकों को भले ही लग रहा हो कि लड़ाई भाजपा और कांग्रेस के बीच है, लेकिन सालों तक क्षेत्रीय क्षत्रपों को पाल पोसकर बड़ा कर चुकी कांग्रेस के पास खुद का जनाधार इस बार ऐसा नहीं है कि वे चुनाव लीड कर सकें, हद तक यह है कि किसी भी चुनाव में दिल्ली से पैसा नहीं निकला है, खुद को दीवालिया दिखा रही पार्टी से शेष विपक्ष उम्मीद छोड़ चुका है, ऐसे में नायडू इस क्षण के प्रति नायक बनकर उभर सकते हैं। सारा विपक्ष मिलकर अगर नायडू का अभिषेक कर देता है, तो मोदी के लिए कठिन चुनौती खड़ी होगी… पिछली बार 31 प्रतिशत वोट थे, बाकी बिखरे हुए, इस बार विपक्ष एकजुट होता है और बंदरबांट का समीकरण सही बैठ जाता है, तो दक्षिण से आया प्रधानमंत्री फिर दिख सकता है।
इंटेलिजेंस वार में सीबीआई की इस आग में टीडीपी अगर जरा सी भी झुलसती है और कुरैशी के साथ उसके संबंध स्पष्ट होकर सामने आते हैं, तो मोदी भाजपा को तगड़ी लीड मिलेगी, वरना शाह और मोदी अधिक कठिन दौर में पहुंचेंगे।
राज्यों के चुनाव सिर पर हैं,
देखते हैं यह इंटेलिजेंस वार किधर का रुख करती है…