ऐसे तो हड्डी टूट सकती है

How to walk Dr Skand Shukla

आपके पैर देखे , इन्हें सँभल कर रखिएगा -कहीं चोट न लग जाए! (मैलापन तो हम धो लेंगे , टूटी हड्डी बहुत दिनों में जुड़ेगी।)

चलता आदमी एड़ियों द्वारा ज़मीन से जा जुड़ता है। चलना और दौड़ना एक नहीं हैं। चलना चलना है , दौड़ना दौड़ना। चलना धीमे है , दौड़ना तेज़। फिर चलने और दौड़ने में एक और भेद भी है। चलते समय आदमी की एड़ियाँ पहले धरती पर पड़ती हैं , तेज़ दौड़ते समय पंजे ( पड़ने चाहिए )।

लेकिन ज़्यादतार साधारण लोग दौड़ने के मामले में नौसिखिए हैं – वे एड़ियों पर दौड़ते हैं। ( उनके पैर जब ज़मीन पर दौड़ते समय पड़ते हैं , तो धम्म-धम्म की आवाज़ आती है। ) फिर कुछ लोग पूरे पैरों पर दौड़ते हैं। उनके पैर भी हलके धम्म से ज़मीन पर आते हैं और फिर उठ जाते हैं। यह दौड़ने का निहायत ग़लत तरीक़ा है। इससे यह सिद्ध होता है कि धावक का पैरों पर न तो पूरा नियन्त्रण है और न ही वह चोट के प्रति सचेत है। पूरा पैर जो ज़मीन से टकरा रहा है , एड़ियों को घायल करेगा।

जानवरों से दौड़ना सीखिए। वे पैर के पंजों पर दौड़ते हैं। कई जानवर पंजों की गद्दियों पर भी धावन करते हैं। हमें भी ऐसा ही करना चाहिए – एड़ियाँ चलने वालों के लिए पहले ज़मीन छुएँ , दौड़ने वाले पंजों पर ही अपना वज़न टिकाएँ।

यह पंजा-दौड़ एकाएक नहीं हो सकेगी। एड़ी एक हड्डी है , जिसपर एक चर्बी की गद्दी है। लोग दौड़ते हैं और नीचे एड़ी बढ़ाकर रख देते हैं। फिर चोट लगने पर उसे पकड़ कर बैठ जाते हैं और डॉक्टर के चक्कर लगाते हैं।

ऐसा न हो , इसलिए पंजों पर दौड़ने का अभ्यास करना होता है। यह धीरे-धीरे आता है। पंजे एड़ियों की तरह एक हड्डी नहीं हैं, उनमें पैर की पाँच उँगलियाँ अलग-अलग हैं। ऊपर से आता शरीर का भार उनपर पड़कर पाँच जगह बँट जाता है।

कभी आपने किसी ऊँचे जल-प्रपात को नीचे गिर कर पाँच धाराओं में बँटते देखा है ? शरीर का वज़न भी यही करता है — ऊपर से वह नीचे को पाँच उँगलियों की धाराओं की ओर चल पड़ता है। यह भार का सही वितरण है ताकि कोई एक ही पूरे भार-तले दब न जाए। यह उँगलियों में चोट रोकता है , जिससे एड़ी कई बार नहीं बच पाती।

चलने में कैलोरी कम खपती हैं , दौड़ने में ज़्यादा। इसके कई कारण हैं। इनमें से एक कारण यह भी है कि पंजों पर दौड़ने के लिए पंजे नीचे की ओर रखने पड़ते हैं , जिसमें ऊर्जा अधिक व्यय होती है।

मानव ने विकास के क्रम में दौड़ना कम कर दिया। हम धावक न रहे , चारक बन गये। चलकर हम अपने गन्तव्य-मन्तव्य पा लेने लगे। घोड़ा-हरिण-ऊँट दौड़ते हैं , तो दौड़ते रहें। हमें नहीं दौड़ना , हमें चलने से मिल जाता है।

दौड़ना चलने की तुलना में पैरों के लिए ख़र्चीला है। अतिरिक्त ऊर्जा का व्यय। दौड़ हम लेंगे , लेकिन पंजों पर दौड़ने के लिए अभ्यास करना होगा। पुरानी जंगली आदत छूट गयी है।

एड़ियों पर चलने के कई लाभ और हैं। सन्तुलन बेहतर होने के कारण आप किसी से लड़ सकते हैं , पंजों पर डगमगा जाएँगे। यह मनुष्यों की आक्रामक क्षमता के लिए सहायक है। दौड़ने की जगह रुको , थमो , टिको। अब एड़ियों पर रहकर प्रतिद्वन्द्वी से जूझो

पंजों पर रहते तो कैसे लड़ते ? डगमगाते और गिर पड़ते। यानी जब-जब पंजा पैर का भार लेगा , गिरने की आशंका बढ़ेगी। यानी गिरने की आशंका जिनमें अधिक हो , उनके पंजे मज़बूत करने ज़रूरी हैं। उनसे धोखा मिलेगा और शरीर धड़ाम से नीचे आ जाएगा।

बुज़ुर्ग ख़ूब गिरते हैं। हड्डियाँ टूटती हैं। कई बार यह सिलसिला जान तक ले जाता है। ऐसे में कई उपाय लाभप्रद हैं। उनमें से एक व्यायाम भी है। अब पहला व्यायाम पंजों-एड़ियों से शुरू कीजिए।

कोई भारी कुर्सी या मेज़ पकड़ कर एकदम सीधे खड़े होइए। पंजों पर उठिए और सेकेण्ड-भर को खड़े रहिए। फिर नीचे जाइए। इस उठने-नीचे जाने के क्रम को कई-कई बार दिन में दोहराइए। यह पंजों को मज़बूत करेगा और उनकी धरती से दोस्ती कराएगा। पहचान लो हमें। हम भी आ सकते हैं मिलने। हर बार एड़ियाँ ही थोड़ी आएँगी !

फिर इसी काम को एड़ियों से दोहराइए। एड़ियों पर खड़े रहिए , पूरे पैरों पर नहीं। आहिस्ता-आहिस्ता ऐसा करिएगा , बिना डगमगाए। यह आपकी एड़ियों पर आपके शरीर का सन्तुलन बनाएगा।

जो लोग कुर्सी-मेज़ पकड़ कर ये व्यायाम न कर सकें , वे शुरू में बैठकर कर सकते हैं। फिर जब अभ्यास हो जाए , तो खड़े होकर इनकी पुनरावृत्ति की जाए।

पंजों पर उठना और नीचे आना केवल पंजों को ही नहीं , पिण्डलियों-जाँघों-पुट्ठों तक को कसता और मज़बूत करता है। यह व्यायाम डगमगाते-गिरते समय आपको बचाएगा। कैसे ? कई बार आप तब गिरेंगे , जब अपना पंजा नीचे लाकर कहीं चल रहे होंगे या सीढ़ियाँ उतर रहे होंगे। पंजों पर भार लेने की आदत अगर आपकी नहीं है , तो हादसा हो जाएगा। हड्डी टूट सकती है।

ध्यान रहे : कुर्सी-मेज़ का भारी होना ज़रूरी है। प्लास्टिक के वे कतई न हों। अन्यथा जब पूरा भार उन पर डालकर आप पंजों-एड़ियों पर आएँगे तो वे फिसल जाएँगी और आप गिर सकते हैं।और हाँ , अगर आपको चक्कर आते हैं तो इन व्यायामों को न करें। पहले डॉक्टर से राय ले लेना , हर व्यायाम के लिए ज़रूरी और श्रेयस्कर है।


Dr Skand Shukla

स्‍कन्‍द शुक्‍ल

लेखक पेशे से Rheumatologist and Clinical Immunologist हैं।
वर्तमान में लखनऊ में रहते हैं और अब तक दो उपन्‍यास लिख चुके हैं