सोमनाथ केे दरवाजों पर विवाद

gates of somnath

सोशल मीडिया पर किसी ने आगरा किले रखे उन दरवाजो की तस्‍वीर पोस्ट की जिनको अंग्रेज 1844 के अफगान युद्ध में गजनी की टूटी गढ़ी से लेकर आये थे। इनको सोमनाथ देवालय के महाद्वार घोषित किया था। इनको महमूद गजनी उखाड़ कर ले गया था। इसमें लिखा है कि जब अंग्रेज इन्हे लाये तो सोमनाथ देवालय के पंडे पुजारियो ने इनको अपवित्र कहके मंदिर मे लगाने से मना कर दिया था।

अब हम इतिहास की नजर से देखें की क्या सत्य है?

पहला विवरण महमूद गजनी के साथ आये यात्री लेखक अलबरूनी का है। जो “अल फिरिश्ता” नाम से है उसने गजनी द्वारा महाद्वार उखाड़े जाने का उल्लेख किया है और ये लिखा की “वे द्वारा चंदन सेबने थे। उनमे शीशे की जगह पन्नो के जड़ाव थे।”

बाद मे जब मराठो के नेतृत्व मे राघोबा भरारी ने अटक किला जीता तब मराठो ने अफगानों पर हमले करके लूटना शुरू किया इसी श्रृंखला मे महादजी सिंधिया ने गजनी और उसके इलाकों को जीत कर वहां से वे पन्ने के झड़ो से जड़े द्वार वापस पाये जो महमूद गजनी ले गया था।

समय की मार से वे द्वार बहुत भग्न हो गये थे और छोटे भी, पर उनका महत्व समझ कर महादजी उनको विजय चिन्ह के रूप मे अपने साथ ले आए।

अब सोमनाथ मंदिर मे उन्होंने क्यों नही लगवाए, दोबारा क्यों नही लगवाये? इसका एक कारण तो उस समय भारत की दुरावस्था थी। क्योंकी वो सीमांत काल था मुगल शक्ति खत्म थी। मराठे आपसी लड़ाई मे उलझे थे, सो अगर वे कहीं लगाये जाते तो चोरों का निशाना बन जाते।

दूसरा कारण आखिर मे बतायेंगे लेख के…

उनके पन्ने के जड़े द्वारो के अवशेषो को स्वर्ण मंडित करा कर बाद मे महादजी के दत्तकपुत्र आलीजाह दौलतराव शिंदे की महारानी बायजा बाई ने जब उज्जैन मे गोपाल मंदिर का निर्माण कराया तो उसके गर्भगृह मे जड़वा दिया। जो अद्यतन वहीं हैं प्रमाण चाहने वाले जाकर देख सकते हैं।

दूसरी बात सोमनाथ देवालय के महाद्वार चंदन काष्ठ से निर्मित थे। जिसका उल्लेख इलबरूनी के अलावा समकालीन कई कवियों , चारणों ने किया है। परंतु अंग्रेजो द्वारा लाये गये द्वार, जो आगरा किले मे रखे हैं, वे पहाड़ी देवदार लकड़ी के हैं। जो गजनी चूंकी पर्वतीय प्रदेश है वहीं के आसपास की लकड़ी से निर्मित हैं।

तीसरी सबसे बड़ी बात : सोमनाथ देवालय कई बार भग्न हुआ और अंत मे वैसा ही रह गया। उसके खंडहरो को देख कर ही सरदार वल्लभ भाई पटेल नेलगभग 1950 में सोमनाथ के नवनिर्माण का संकल्प किया जिसमे उनके सहयोगी बने तत्कालीन शिक्षामंत्री कन्हैया लाल माणकचंदमुंशी और जामनगर के पूर्व महाराज दिग्विजय सिंह जी जिनके नाम से बना दिग्विजय महाद्वार और उनकी अश्वारूढ़ प्रतिमा आज भी सोमनाथ देवालय की शोभा है।

वहां पर ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठा के मुख्य यजमान बने महामहिम डॉ राजेन्द्र प्रसाद जिसका विरोध नेहरू नाम के कुलांगार ने किया था। उससे पहले वेरावल मे सोमनाथ देवालय था ही नहीं। सोमनाथ के वंशानुगत पुरोहित और वहां का समस्त लोक समाज बहुत से छोटे बड़े देवालयो मे स्थित लिंगो मे भगवान सोमनाथ के देवत्व को पूजित करके देवार्चन की परंपरा को बनाये रखे।

अब जब सोमनाथ देवालय बचा ही नही था वेरावल में, तो अंग्रेजो ने कौन से सोमनाथ देवालय मे ये दरवाजे लगाने दिए और कहां के पुजारियों ने उनको अपवित्र कह के उन द्वारों को लगाने से मना कर दिया। और सबसे मजे की बात जिस शिलापट्ट पर लिखे लेख से कई लोग बाम्हनो को गरिया रहे हैं। वह लेख खुद भी अंग्रेजो के इस दावे को कि यह द्वारा सोमनाथ देवालय के हैं, इसे झूठा कह रहे हैं।

इन बातो पर गौर ना करके कुछ ने ब्राह्मणो को गरियाना शुरू कर दिया “बाम्हन लुच्चे, साले पिटते रहेतब भी ऐंठे, धर्म का नास बाम्हनो ने कर दिया” किसीने उपरोक्त तथ्यो पर ध्यान ना दिया।


Avinash Bhardwaj Sharma

लेखक : अविनाश भारद्वाज शर्मा