शंभूनाथ और गुजरात चुनाव परिणाम Election result of gujrat and rise of shambhunath
शंभूनाथ ने लव जिहाद से आक्रोशित होकर एक व्यक्ति की जान ले ली, उसे उसी क्रूर अंदाज में मारा जिस अंदाज में रोहिंग्या बौद्धों को मार रहे थे, ISIS ने सीरिया में मारकाट मचाई और केरल में भाजपा कार्यकर्ताओं को वामपंथी मार रहे हैं। एक आम हिंदू को न तो पहले मारकाट पसंद थी, न ही अब शंभूनाथ ने मारा तब अधिकांश लोग उसका समर्थन कर पाए।
हिंदुओं का एक धड़ा स्पष्ट रूप से शंभूनाथ के साथ था तो दूसरा धड़ा थोड़ी बहुत मुखालफत कर रहा था, बड़े वर्ग ने इस पर मौन साध लिया था। कारण स्पष्ट है कि सरकारों की नीतियां जिस प्रकार गौ तस्करी को नहीं रोक पा रही, लेकिन गौरक्षकों का विरोध करती हैं, उसी प्रकार लव जिहाद को रोकने के लिए सरकार के पास कोई ठोस प्लान नहीं है, लेकिन लव जिहाद के खिलाफ उठे कुल्हाड़े को सजा देने के लिए तत्पर नजर आते हैं।
जो कहता है हिंदू कुछ नहीं सीखता, उन्हें बताता चलूं कि सनातन मान्यता और हिंदू में थोड़ा सा यही भेद है, सनातनी सबकुछ सीखते हुए आगे बढ़ता है, इसी कारण हर धर्म, जाति और वर्ग को अपने भीतर समा लेता है। इस बार भी जब हिंदू निशाना बने हुए थे, तब एक सनातनी आगे आता है, जांत पांत से ऊपर उठकर सनातनी उद्धोष के साथ हिंदू सेंटीमेंट को बचाने की बात करता है। तब भी यह माना जाता है कि कुछ मुठ्ठीभर लोग शंभूनाथ का समर्थन कर रहे हैं और राज्य सरकार और केन्द्र दोनों दम साधे मामले को दूर से देखते रहते हैं।
हाल के समय में देखा गया है कि जब भी दंगा होता है, उसका पूरा लाभ भाजपा को मिला है, सही कहें तो भाजपा भी नहीं मोदीजी को इसका लाभ मिला है। 2002 से लेकर 2014 तक चुनाव पूर्व दंगों ने पोलराइजेशन किया और हिंदू सेंटीमेंट ने कांग्रेस को हाशिए पर धकेल दिया। इसी सेंटीमेंट को दरकिनार कर विकास का ढोल पीट रही भाजपा को ऐन चुनाव से पहले हुए शंभू प्रकरण में एक मौका मिला था, लेकिन मोदी-भाजपा ने उसे गंवा दिया।
इसी का परिणाम है कि जनेऊधारी राहुल और विकासधारी मोदी में एक का चुनाव करने में गुजराती द्वंद्व का शिकार हो गए। शंभूनाथ एक दिन में पैदा नहीं हुआ। संचार क्रांति के 3G दौर में ही इसकी आहट शुरू हो गई थी और अब 4G विस्फोट के बाद तो जो बातें पान की दुकान पर दबी जुबान में और अलाव की बैठकबाजी में नीची आवाज में होती थी, वे व्हाट्सएप्प पर पूरी स्पष्टता के साथ होनी शुरू हो गई। कोई लिहाज नहीं, गलत को गलत और सही को सही…
हिंदू अनप्रोटेक्टेड है, पहले भी था और आज भी है, किताबत संप्रदाय जहां अपने संप्रदाय और राज्य की ताकत को मिलाकर काम करते हैं, वहीं हिंदू अब भी अपने मूल्यों और शुचिता के साथ बंधा हुआ खड़ा है। लव जिहाद तो होता है, लेकिन कभी प्रेम धर्मयुद्ध नहीं होता। जिन लोगों के परिवार इन समस्याओं से अछूते हैं, या सुरक्षित सोसायटी बनाकर रह रहे हैं, उन्हें यह समस्या भी आउट ऑफ द वर्ल्ड महसूस होगी, लेकिन जिन लोगों ने इसे भुगता है, उनसे मिलने पर लगता है कि परिवार से एक कन्या का इस प्रकार चले जाना और बाद में न केवल नैराश्य छोड़ जाता है, बल्कि परिवार के बाकी बच्चों का भविष्य भी सहज नहीं रह जाता।
इस समस्या के दो समाधान संभव हैं। पहला जो सत्ता हिंदुओं के खिलाफ तुष्टिकरण की नीतियां अपनाती है, उसे घसीटकर नीचे ला पटका जाए। 31 प्रतिशत वोटरों ने यह कर भी दिखाया, लेकिन तीन सालों में स्थिति में कोई आमूलचूल परिवर्तन नहीं दिखाई दिए। पक्ष की राजनीति करने वाले पंडित बरगलाते रहे कि अब होगा, तब होगा, थोड़ा धैर्य रखो, लेकिन उस धैर्य की सीमा अब चुकने लगी है। परिणाम देने के बाद भी, सत्ता मिलने के बाद भी आपसे नहीं हो पा रहा है तो यकीन मानिए आप 56 इंची नहीं, पाड़ा और पप्पू के आस पास ही हैं।
ऐसे में दूसरा समाधान है कि सत्ता को दरकिनार कर खुद हिंदू अपने स्तर पर संगठन बनाकर काम करे। इससे अनार्की पैदा होगी, जो कि एक सामान्य हिंदू नहीं चाहता। यह वही दौर चल रहा है, जब हिंदुओं का बड़ा वर्ग चुपचाप यह देखने का प्रयास कर रहा है कि सिस्टम को दुरुस्त होने का समय दिया जाए या अनार्की का रास्ता चुना जाए।
शीघ्र ठोस और सार्थक परिवर्तन नहीं हुए तो बड़े और अनियंत्रित परिवर्तनों की शृंखला शुरू हो जाएगी। शंभू को सहायता पहुंचाने के प्रयास उस समुद्री बर्फ के पहाड़ का छोटा सा हिस्सा है जो पानी के ऊपर दिखाई देना शुरू हुआ है।