पानी पीना : जिंदगी की जरूरत ही नहीं, जीने का सलीका है
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Sidharth joshi: drinking water. Photo Aziz Bhutta |
मेरी तीन शारीरिक समस्याएं ऐसी थी, जो इतने अर्से से है कि अब तो मैं उनके साथ ही जीने का अभ्यस्त होने लगा था। पहली गैस (Gastric), दूसरी कोष्ठबद्धता (Indigestion) और तीसरी धरण (Dharan)। मुझे इन तीनों समस्याओं का समाधान एक साथ एक जगह मिला है। वह भी केवल पानी पीने से…
अभी कुछ दिन पहले की बात है कि मेरे एक वरिष्ठ साथी ज्योतिषी (Astrologer) अपने नए फोन के साथ आए और फोन दिखाते हुए राजीव दीक्षित की वाटर सीरीज चला बैठे। श्री राजीव दीक्षित (Rajiv dixit) की ओजस्वी आवाज एक बार शुरू हुई तो न तो मैंने रोका न उन्होंने। करीब पैंतीस मिनट के ऑडियो में राजीवजी ने बताया कि महर्षि चरक के शिष्य वागभट्टजी ने करीब सात हजार सूत्र लिखे हैं जो हमें स्वस्थ रहने की शिक्षा देते हैं। इसी के तहत जल से चिकित्सा पर जो बातें बताई वे इस ऑडियो में है…
हालांकि ऑडियो में और भी कई बातों का समावेश किया गया है, लेकिन जैसा कि हमारी जीवनचर्या है, हम सभी प्रकार के उपायों को एक साथ नहीं अपना सकते। ऐसे में मैंने दो अनुशासन को अपनाने का तुरंत निर्णय किया।
पहला है खाने के बाद किसी सूरत में पानी नहीं पीना
दूसरा सुबह उठते ही बिना कुल्ला किए करीब सवा लीटर पानी पीना।
पहले पहला प्रयोग खाना खाने के बाद पानी नहीं पीना
इस बाबत राजीवजी ने बताया कि हमारे मुंह में बनने वाले लार (Saliva) का पीएच (Ph) अधिक होता है और अमाशय (Stomach) के भीतर तेज अम्ल (Acid) स्रावित होता है, जिसका पीएच 3 तक भी पहुंच सकता है। ऐसे में लार के साथ पेट में गया भोजन अम्ल के साथ मिलते ही लवण (Salt) और जल बना देता है। इसे कहते हैं पेट का पानी होना। आयुर्वेद (Ayurveda) में भी पेट पानी की तरह होने पर भी स्वस्थ बताया गया है। अब जब हम खाना खाने के बाद भरपेट पानी पी लेते हैं तो अम्ल और क्षार के मिलने की प्रक्रिया को बाधित कर देते हैं और स्वादिष्ट से स्वादिष्ट पकवान भी कीचड़ में तब्दील हो जाता है।
खाने के ठीक बाद पीया गया यह पानी विष के समान (Poisonous) बताया गया है। यह न केवल अम्ल क्षार की अंतर्क्रिया को प्रभावित करता है, बल्कि पूरी पाचन तंत्र (Digestive system) को सुस्त बना देता है। इस कारण जठराग्नि मंद हो जाती है और हमें भूख भी सही तरीके से लगनी बंद हो जाती है। ऐसे में खाने के बाद पानी किसी भी सूरत में पीना ठीक नहीं है।
(एक स्थान पर उन्होंने कहा कि खाने के बीच दो घूंट पानी पीने की अनुमति केवल वहां है जहां हम दो प्रकार का अन्न ग्रहण कर रहे हों तो दोनों अन्न के बीच के समय हम दो घूंट पानी पी सकते हैं।)
दूसरा प्रयोग सुबह उठकर पानी पीना
हमारे मुंह में करीब एक लाख लार ग्रंथियां (Glands) हैं जो लगातार लार का स्राव करती रहती हैं। ये लार केवल भोजन को पचाने का काम नहीं करती, बल्कि शरीर के लिए आवश्यक तत्वों (Essential elements) को भी लार में ही शामिल कर देती है। (यहां मैं अपने समझने वाली प्रक्रिया को भी शामिल करूंगा) मेरे मेडिकल के दोस्त बताते हैं कि हमारी आहार नाल को “गट” (GUT) कहा जाता है। यह गट एक प्रकार का बर्हिचर्म है। यानी जिस प्रकार शरीर के ऊपर की चमड़ी (Skin) शरीर के भीतर के अंगों से विलग रहती है, ठीक उसी प्रकार गट भी शरीर के भीतर के अन्य अंगों से अलग रहती है।
ऐसे में अगर हमारे शरीर को हमारे पाचन तंत्र में किसी प्रकार की घुसपैठ करनी हो तो वह लार अथवा अन्य स्रावी ग्रंथियों के माध्यम से ही शरीर से संपर्क कर सकता है। लाइव टच में नहीं रहता। ऐसे में लार में शरीर के लिए आवश्यक पोषण एवं उपचारात्मक तत्वों का शामिल होना स्वाभाविक है।
पूरी रात लार ग्रंथियां सक्रियता के साथ काम करती हैं और शरीर के लिए जरूरी तत्वों की समीक्षा करके सुबह तक उन्हें हमारे मुंह में पहुंचा देती है। हम केवल इतना ही करते हैं कि सुबह उठते ही कुल्ला करते हैं और उन सभी जरूरी तत्वों को मुंह से बाहर फेंक देते हैं।
राजीव दीक्षित कहते हैं यहीं पर सबसे बड़ी भूल होती है। अगर सुबह उठते ही बिना कुल्ला किए करीब सवा लीटर पानी स्वस्थ युवा और पौन लीटर पानी वृद्ध अथवा बच्चे पीएं तो वे अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ रह सकेंगे। वे तो यहां तक उदाहरण देते हैं कि लार का औषधीय महत्व इंसानों से अधिक जानवर समझते हैं जो कहीं भी चोट लग जाने पर उसे लगातार चाटते रहते हैं। इससे घाव जल्दी भर जाता है।
इन दोनों बातों में एक बात आवश्यक रूप से शामिल है कि कभी भी न तो ठण्डा पानी पीओ न गर्म। हमेशा ऐसा पानी पीना (Drinking water) चाहिए जिसका तापमान शरीर के तापमान के बराबर (Body temperature) हो।
देखने में यह प्रयोग आसान लगता है, लेकिन प्रण लेने के तीसरे ही दिन मुझे जीमण (विवाह समारोह) में जाना था और वहां पर खाने के बाद आइसक्रीम परोसी जा रही थी। मेरा जी जानता है कि मैंने कितनी मुश्किल से खुद को रोककर रखा। लेकिन खुद को रोक पाया क्योंकि इसका फायदा मैं अगले ही दिन ले चुका था।
अब लाभ की बात
जिस दिन ऑडियो सुना उसी रात खाना खाने के बाद मैंने पानी नहीं पिया। रात को डटकर खाया गया खाना हर पांच मिनट में पानी मांग रहा था और आदत के अनुसार मैं बार-बार चरू (स्टील की मटकी) तक पहुंच रहा था, लेकिन किसी प्रकार खुद को रोके रहा। रात साढ़े ग्यारह बजे आखिर मैंने पानी पीया। यह बॉडी टैंपरेचर तक गर्म नहीं था, ठण्डा पानी था। यह पानी गर्म हुए पेट में पहुंचा तो पहली बार खाना खाने के बाद पानी की ठण्डक को पेट में महसूस किया और उसी समय गलती समझ में आ गई।
मैंने धर्मपत्नीजी को सारी कथा आदि से अंत तक कह सुनाई। अगले दिन सुबह उठते ही मुझे गुनगुना पानी मिल गया। मैंने सवा लीटर कहा था सो एक आधा लीटर का लोट पेश था और बाकी पानी टोपिए में मेरा इंतजार कर रहा था। कहना आसान है सवा लीटर गुनगुना पानी। अभी पहला लोटा खत्म ही किया था कि इंतजार कर रही चाय की ओर भी नहीं देख पाया और सीधा शौच के लिए भागा। पेट आम दिनों के मुकाबले अच्छा साफ हुआ। काफी देर तक तो गैस निकलती रही (आप भले ही नाक भौं सिकोड़ें मुझे जो आराम मिला वही बता रहा हूं।) पूरा शरीर हल्का हुआ जान पड़ा। अब तो सवाल ही पैदा नहीं होता कि मैं खाने के बाद पानी पी लूं।
पिछले 22 या 23 दिन से यह प्रयोग जारी है। शुरूआती दिनों में पहले कोष्ठबद्धता का निवारण हुआ, फिर पेट में भरी गैस का, फिर शरीर में जगह जगह जमा चर्बी की परतें पिघलने लगी। कुछ पेंटें जिनके बटन जवाब देने लगे थे, फिर से सहज हो गई। और तीन चार दिन से तो दूसरे लोग भी अब कहने लगे हैं कि पतला कैसे हो रहा है, कोई चिंता तो नहीं।
यह तो हुए प्रत्यक्ष लाभ और एक लाभ ऐसा है जिसे कम लोग समझ पाएंगे। हमारे यहां इसे “धरण” कहते हैं। हर महीने सवा महीने बाद मेरी धरण खिसक जाती थी। ऐसे में पीठ और गर्दन में दर्द की लहरें चलती। गैस के कारण सिरदर्द मेरे लिए आम है, लेकिन धरण का दर्द बर्दाश्त के बाहर है। धरण वापस चढ़ाने के लिए मैंने दो लोगों को पकड़ा हुआ है। वे भी मुझसे आजिज आए हुए थे। उनमें से एक कल रात को मिला तो उसे मैंने पूरी कथा बताई। अब मेरी धरण भी बिल्कुल सही है। स्पष्ट तो नहीं कहा जा सकता कि गैस के कारण धरण उतरती है, लेकिन गैस और कोष्ठबद्धता के निवारण के साथ मेरी धरण की समस्या का भी अब तक तो समाधान हो चुका है।
पेट हल्का है, दिमाग खुला है, प्रसन्नता हिलोरें ले रही है। अगर कोई राजीव दीक्षित की सीडी सुने और कहे कि आप भी करें तो आप चाहें मान या ना मानें, लेकिन मैंने सुनी है, प्रयोग किए हैं और लाभ प्राप्त किए हैं। अब मैं कहता हूं कि कम से कम यह दो प्रयोग करके देखें। आमूलचूल परिवर्ततन आता है।
यहां मैं लिंक दे रहा हूं जिसमें राजीव दीक्षितजी के वे ऑडियो दिए गए हैं
उन्हें हृदय से नमन। जब वे जीवित थे, तभी इन बातों को सुनना और अपनाना शुरू कर चुका होता तो… खैर।