हमें जीना है और तुक्के मारने हैं : डार्विन और विकासवाद – 5

Darwin and His Theory of Evolution and conflicts 7 Darwin and kalvin

डार्विन को ग़लत करना सीखने का प्रयास करना हो , तो केल्विन से सीखिए। विज्ञान को परास्त विज्ञान की भाषा में करिए , न कि परम्परा की दुहाई देने लगिए।

SOME OF THE GREAT SCIENTISTS, CAREFULLY CIPHERING THE EVIDENCES FURNISHED BY GEOLOGY, HAVE ARRIVED AT THE CONVICTION THAT OUR WORLD IS PRODIGIOUSLY OLD, AND THEY MAY BE RIGHT BUT LORD KELVIN IS NOT OF THEIR OPINION. HE TAKES THE CAUTIOUS, CONSERVATIVE VIEW, IN ORDER TO BE ON THE SAFE SIDE, AND FEELS SURE IT IS NOT SO OLD AS THEY THINK. AS LORD KELVIN IS THE HIGHEST AUTHORITY IN SCIENCE NOW LIVING, I THINK WE MUST YIELD TO HIM AND ACCEPT HIS VIEWS.

– MARK TWAIN, LETTERS FROM THE EARTH

(तमाम भूगर्भीय प्रमाणों को ध्यानपूर्वक एकत्र करने के पश्चात् हमारे समय के कुछ महान् वैज्ञानिक इस विश्वास पर पहुँचे हैं कि हमारा संसार काफ़ी पुराना है। वे सच हो सकते हैं , लेकिन लॉर्ड केल्विन ऐसा नहीं मानते। वे सुरक्षित रूप में ध्यानपूर्वक परम्परावादी रवैया अपनाते हैं , वे दृढ़ हैं कि पृथ्वी इतनी भी पुरानी नहीं है। चूँकि लॉर्ड केल्विन हमारे समय के महानतम जीवित वैज्ञानिक हैं , इसलिए हमें उनकी बात माननी और स्वीकार कर लेनी चाहिए।)

(मार्क ट्वेन , पत्र पृथ्वी से)

डार्विन ने अपने विकासवाद का सिद्धान्त दिया। उस सिद्धान्त के पीछे एचएमएस बीगल नामक जहाज़ पर की गयी यात्राएँ थीं। उन यात्राओं के दौरान जगह-जगह की चट्टानें-पत्थर-मिट्टी से लेकर पेड़-पौधे-पक्षी-जानवर बहुत ध्यान से देखे गये और फिर वर्गीकृत किये गये। ध्यान रहे उस समय विज्ञान आज-सा उन्नत नहीं था कि वे इन जीव-जन्तुओं और पेड़-पौधों का प्रयोगशाला में सूक्ष्मदर्शी द्वारा ढंग से अध्ययन कर पाते। ऐसे में उनका यह सिद्धान्त और महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

डार्विन ने तमाम जीवों की विकास-दर को देखा-बूझा और यह बताया कि इस रफ़्तार से जीवन को विकसित होने में कई सौ मिलियन साल लगेंगे। उस समय तक लगभग सभी वैज्ञानिक यह मानते थे कि पृथ्वी कई सौ मिलियन साल पुरानी या ‘बूढ़ी’ है। यानी जितनी उम्र समस्त जीवन की है , उससे बूढ़ी तो पृथ्वी माँ है ही।

तो डार्विन ने कहा कि सैकड़ों मिलियन सालों में यह जीव-विकास इस तरह हुआ कि हम एककोशिकीय जीवों से आज वाली स्थिति में आ गये। यानी पृथ्वी और पुरानी हुई। यहाँ तक सब ठीक था। फिर सवाल उठा कि पृथ्वी सूर्य के बाद ही तो हुई होगी, सूर्य से पहले तो वह हो नहीं सकती। तो सूर्य कितने साल से जीवित है ?

यहाँ पर लॉर्ड केल्विन अपना सिद्धान्त प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि सूर्य मात्र 20-40 मिलियन वर्ष पुराना है। अब बताइए डार्विन बाबू ! अगर सूर्य मात्र 20-40 मिलियन साल पुराना है , तो पृथ्वी और उस पर विकसित हुआ जीवन कैसे सैकड़ों मिलियन साल पुराना हो गया? है कोई जवाब ?

(“Thomson’s ( Lord Kelvin`s) views of the recent age of the world have been for some time one of my sorest troubles”.)

डार्विन के पास इसका कोई उत्तर सचमुच नहीं था। कोई संशय नहीं कि डार्विन ने लॉर्ड केल्विन को अपना सबसे बड़ा दुखने वाला ‘घाव’ कहा। यह उनके सिद्धान्त पर एक ज़ोर का प्रहार था। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि केल्विन ग़लत सिद्ध हुए और डार्विन फिर सही साबित हो गये। अब देखिए कैसे।

सूर्य एक तारा है। तारों से प्रकाश निकलता है। बहुधा तारे आकार में बहुत बड़े होते हैं और अपने गुरुत्व के प्रभाव से सिकुड़ते रहते हैं। इस सिकुड़न के कारण उनमें मौजूद हाइड्रोजन नाभिकीय संलयन से हीलियम में बदलती रहती है। इसी प्रक्रिया से हमारे सूर्य से वह ऊर्जा निकलती है , जो हमें यहाँ महसूस होती है।

लेकिन लॉर्ड केल्विन ने सूर्य की उम्र नाभिकीय संलयन से नहीं निकाली थी। उनके समय में इसका पता ही नहीं था। विज्ञान इस क्रिया के बारे में जानता ही नहीं था। केल्विन ने सूर्य की वय निकालने के लिए उसकी गुरुत्वीय ऊर्जा का प्रयोग किया था। सूरज सिकुड़ रहा है , ऊर्जा फेंक रहा है। इसके इस्तेमाल से सूर्य हुआ 20-40 मिलियन साल पुराना।

केल्विन ग़लत निकले। सूर्य की उम्र जब नाभिकीय संलयन को ध्यान में रखकर निकाली गयी , तो वह बिलियनों साल आयी। बिलियनों साल बूढ़ा सूर्य , तो सैकड़ों मिलियन साल बूढ़ी पृथ्वी। उस बूढ़ी पृथ्वी पर फिर उससे कम उम्र का जीव-विकास और उसका विकासवाद।

केल्विन को ग़लत डार्विन ने साबित नहीं किया , उनके परवर्ती भौतिकशास्त्रियों ने किया। विज्ञान में बिरादरियाँ नहीं चलतीं , कि तुम जीवविज्ञान के हो और हम भौतिकी के हैं। विज्ञान में सत्य का नित्य अन्वेषण चलता है।

डार्विन ने केल्विन से पार पा लिया। विज्ञान उनके पक्ष में था।


Dr Skand Shukla

स्‍कन्‍द शुक्‍ल

लेखक पेशे से Rheumatologist and Clinical Immunologist हैं।
वर्तमान में लखनऊ में रहते हैं और अब तक दो उपन्‍यास लिख चुके हैं