हमें जीना है और तुक्के मारने हैं : डार्विन और विकासवाद – 21

Darwin and His Theory of Evolution and conflicts 26

जाड़ा जा रहा है और उसके साथ ताज़ी मटर का मौसम भी। हरी मुलायम मिठास लिये दानेदार फलियाँ , जिन्होंने मनुष्य को अपने-आप से और कुदरत से मिलवाने में बहुत बड़ी भूमिका अदा की।

हम डार्विन की बात करते आ रहे हैं। उन्होंने विकासवाद का अपना मत दिया था। लेकिन उनके जीवन-काल तक यह मत ही अधिक था। इसके विरोधी बहुत से थे , जिन्हें इंसान का क्रमिक विकास कई कारणों से अखरता था। पहले थे वे पादरी और धर्मजीवी , जिनकी धर्म से रोटी और सत्ता चलती थी। वे क्यों चाहते कि बाइबिल के सिद्धान्तों से इतर कोई प्रकृतिविद् जानवरों और पेड़-पौधों को देखकर क्रमिक विकास की बात सामने रखे। धर्म लोगों से कहता है कि चमत्कार होते हैं , इसलिए उनपर विश्वास करो। वह उन्हें जादू पर भरोसा दिलाकर आजीवन बच्चा बनाये रखना चाहता है।

जो बच्चे बड़े हो जाते हैं , मात्र वे जानते हैं कि जादू केवल हाथ की सफ़ाई है। और हाथों को सफ़ाई से इस्तेमाल करना सिर्फ़ आदमी जानता है। वह विकसित आदमी है , क्योंकि उसके पास हाथ हैं जो सफ़ाई कर सकते हैं। यह वह सफ़ाई है जो कुत्ते के पंजे , गधे के खुर और यहाँ तक कि गोरिल्ला के हाथ में भी ढंग से पनप नहीं पायी है।

ख़ैर , डार्विन पर आइए। उनके मत को दो तरह के वैज्ञानिकों ने बड़ा झटका मुख्य रूप से दिया था। पहले वे जो धरती की उम्र डार्विन द्वारा बताये विकासवाद से कम या बराबर बताते थे। अब जानवर-पेड़-पौधे धरती से पहले कैसे हो जाएँगे ! पहले धरती होगी , तब तो जीवन पनपेगा न ! लेकिन इसका डार्विन के पास कोई जवाब नहीं था।

डार्विन को इस ढंग से खारिज करने वाले भौतिकशास्त्री थे। फिर आगे जाकर भौतिकी ने ही डार्विन को सही ठहराया , जब धरती की उम्र जीवन के पनपने की उम्र से बहुत ज़्यादा आयी। लेकिन फिर एक दूसरी समस्या भी थी। कई वैज्ञानिक जीव-विकास में पर्यावरण के अनुसार ढलने और न ढलने की बेहतर समझ की माँग करने लगे। एक ढलेगा , दूसरा नहीं। दोनों अगर प्रजनन कर गये तो उनके गुण औसत हो जाएँगे। तो फिर जीव का विकास कहाँ हुआ ! एक समय बाद सारे जीव एक-से औसत हो गये ! न कोई बेहतर और न कोई बदतर !

यहाँ पर चेक पादरी ग्रेगर योहान मेण्डल की परदे पर एंट्री होती है। यों वे डार्विन के लगभग समकालीन थे। लेकिन फिर भी उन्होंने जो शोध किये , वे उनकी मृत्यु के बहुत बाद तक अँधेरे में पड़े रहे। यह वही समय था जब डार्विन का मत भी सर्वाधिक अन्धकार में रहा और लगभग खारिज कर दिया गया। लेकिन फिर बीसवीं सदी ज्यों-ज्यों आगे बढ़ने लगी , मेण्डल पर से धूल छँटने लगी और आनुवंशिकी का सूर्य चमकने लगा।

जो लोग सोचते हैं कि डार्विन के सिद्धान्त को डार्विन ने स्थापित किया , वे नासमझ हैं। वे विज्ञान को इतिहास और राजनीति की तरह पढ़ते हैं। विज्ञान में आप आये और अपना मत स्थापित कर गये , ऐसा हमेशा नहीं हो पाता। आप तर्कपूर्ण प्रयोगात्मक ढंग से अपनी बात कहते हैं , लेकिन आपकी काट ढूँढ़ने के लिए समाज तैयार है। कई बार लेकिन कोई दूसरा वैज्ञानिक ही आपके पक्ष में कोई ऐसा शोध कर जाता है कि वह आपकी विज्ञान में हमेशा के लिए स्थापना होती है।

डार्विन से मेण्डल कभी नहीं मिले। डार्विन ने मेण्डल को कभी नहीं पढ़ा। मेण्डल ने डार्विन को अलबत्ता ज़रूर पढ़ा। वे कैथोलिक पादरी थे , प्रभावित शायद न हुए हों। लेकिन उन्होंने अपने बगीचे में मटर के पौधे उगाये और उनकी फलियों-बीजों-फूलों सभी के गुणधर्म , पीढ़ी-दर-पीढ़ी ध्यान से समझे।

मेण्डल ने जो काम किया वह डार्विन के लिये नहीं था। वह विज्ञान की समझ थी। लेकिन उस समझ ने डार्विन के मत को स्थापित करने में भूमिका निभायी। वैज्ञानिक एक-दूसरे के लिए काम नहीं करते , लेकिन विज्ञान करता है। वह ब्रिटेन और चेक गणराज्य का भेद नहीं मानता। वह आदमी और मटर को भी एक ही कुल का बताता है। मनुष्य और मटर के पौधे में भी ढेरों जीन एक-से होते हैं।

मैं मटर खाते हुए मटर के बारे में सोचता हूँ कि किस तरह वह मेरे परिवार का पौधा है। डार्विन मेरे परिवार के पुरखे हैं , मेण्डल भी मेरे परिवार के पूर्वज। मेरी-आपकी डार्विन-मेण्डल से आनुवंशिक दूरी कम है , मटर से कहीं ज़्यादा। हमारा कोई पूर्वज ऐसा भी रहा होगा , जो पौधेपने की ओर न बढ़कर पहली बार जानवर होने की तरफ चला होगा।

मैं उसके बारे में सोचता हूँ और जीव-विकास की मिठास मेरे मन में उतर जाती है। जो बच्चे बड़े हो जाते हैं , केवल वे इस संस्कृत-सूत्र को गहनता से समझते हैं। बाक़ी शिशुओं और शुकों-से रटते हुए जीवन बिता डालते हैं।

वसुधैव कुटुम्बकम्!

खाली कहने के लिए नहीं , सचमुच सत्यमत!


Dr Skand Shukla पेशे से Rheumatologist and Clinical Immunologist हैं। वर्तमान में लखनऊ में रहते हैं और अब तक दो उपन्‍यास लिख चुके हैं

स्‍कन्‍द शुक्‍ल

लेखक पेशे से Rheumatologist and Clinical Immunologist हैं।
वर्तमान में लखनऊ में रहते हैं और अब तक दो उपन्‍यास लिख चुके हैं