“आप जाति-धर्म-नस्ल के बारे में कुछ कहेंगे , जीव-विकास के सापेक्ष ?”
“वे बातें जो मनुष्य के डीएनए की विविधता में मात्र 0.1 प्रतिशत में सिमटी हैं ?”
“मतलब ?”
“मनुष्य और गोरिल्ला का डीएनए 98 % एक-सा है , मनुष्य और चिम्पैंज़ी का 99 %। संसार के सारे मनुष्यों के डीएनए में 99.9 % साम्य है।”
“मनुष्य के निकटतम जैविक रिश्तेदार ये बन्दर हैं ?”
“आप अब तक नहीं समझ रहे। एप बन्दर को नहीं कहते : इनमें गोरिल्ला , चिम्पैंज़ी , औरांग्युटान व गिब्बॉन आते हैं। ये बन्दरों की उस शाखा से अलग हो चुके हैं ढाई सौ लाख साल पहले , जिसे पुरानी दुनिया के बन्दर कहा जाता है। बन्दर शब्द का इस्तेमाल बन्द करिए , आपकी हँसी उड़ रही है।”
“और ये चारों एप हमसे कब-कब अलग हुए ?”
“सबसे पहले गिब्बॉन की शाखा अलग हुई लगभग 180 लाख साल पहले। वह इन सब में हमसे सबसे दूर है। फिर औरांग्युटान की शाखा फूटी। उसके बाद गोरिल्ला की। और सबसे अन्त में पचास-सत्तर लाख साल पहले चिम्पैंज़ी और मनुष्य की शाखाएँ बनी।”
“चिम्पैंज़ी और मनुष्य का जो पूर्वज था , वह कैसा था ?”
“सबसे पहले यह जानिए और स्वीकारिए कि वह पूर्वज न मनुष्य था और न चिम्पैंज़ी। वह दोनों का पुरखा था। जब तक यह बात नहीं समझेंगे , तब तक बन्दर-बन्दर की रटन्त से बाहर नहीं आ सकेंगे। और हाँ ! एक बात और ! जिस राजनीति को पोसने के लिए संसार-भर में नस्ल-धर्म-जाति का प्रयोग हो रहा है , डीएनए और जीव-विकास को जान लेने से उसकी कलई भी खुल जाएगी।”
स्कन्द शुक्ल
लेखक पेशे से Rheumatologist and Clinical Immunologist हैं।
वर्तमान में लखनऊ में रहते हैं और अब तक दो उपन्यास लिख चुके हैं