सारे जीवों के विकास को छोड़कर अब हम सीधे मनुष्य के विकास पर आते हैं। मनुष्य कैसे बना ? कहाँ से निकला ? उसके पूर्वज कैसे थे ? विज्ञान के पास क्या साक्ष्य हैं ? कौन से जीव उसके निकट के रिश्तेदार हैं और क्यों ?
यह शृंखला अब उस बन्दर को समर्पित है , जिसे कई अज्ञानी मनुष्य का पूर्वज मानते हैं। बन्दर को उनसे शिकायत है कि उन्होंने एक बार भी जीव-विज्ञान का प्राइमेट वर्गीकरण न जाना है और न पढ़ा है। इसलिए बात सीधे प्राइमेट जन्तुओं की।
जीव-विज्ञान की जो शाखा जीव-जन्तुओं का वर्गीकरण बताती है , टैक्सोनॉमी कहलाती है। इसी टैक्सोनॉमी में जब आप जानवरों को वर्गीकृत करते जाते हैं , जो एक क्रम ऑर्डर का आता है। प्राइमेट ऑर्डर का ही एक सदस्य मनुष्य भी है।
प्राइमेट वह पहला समूह है , जिसमें मनुष्य-जैसा कुछ आपको मिलने लगेगा। यानी प्राइमेट सदस्यों को देखने पर आपको एक निकटता स्पष्ट लगेगी। कारण इसके कई हैं। लेकिन अगर उन्हें यहाँ लिखा गया तो लेख और जटिल हो जाएगा
प्राइमेटों के पूर्वज पेड़ों पर रहते थे। ढेरों प्राइमेट आज भी पेड़ों पर रहते हैं। कुछ ने लेकिन पेड़ त्याग कर भूमि पर रहना चुन लिया था। उन्हीं में एक मनुष्य भी था।
अब प्राइमेटों को विज्ञान दो समूहों में बाँटता है :स्ट्रेप्सीरायनी प्राइमेट और हैप्लोरायनी प्राइमेट। जिनकी नाक गीली रहती है , वे स्ट्रेप्सीरायनी में लिये गये और जिनकी सूखी , वे हैप्लोरायनी में।
स्ट्रेप्सीरायनी और हैप्लोरायनी में और भी ढेरों भेद हैं , लेकिन अभी एक ही पकड़िए अन्यथा समझने में मुश्किल होगी।
स्ट्रेप्सीरायनी में लीमर आते हैं , लोरीज़ आते हैं। मनुष्य समेत तमाम वानर हैप्लोरायनी में आते हैं।
स्ट्रेप्सीरायनी की नाक के आसपास का हिस्सा गीला रहता है , ताकि वे बेहतर सूँघ सकें। नाक के इर्दगिर्द का यह गीला हिस्सा राइनेरियम के नाम से जाना जाता है। हैप्लोरायनी के साथ ऐसा नहीं होता।
उँगलियों से अपनी नाक छुएँ। उससे नीचे अपने ऊपरी होठ पर आएँ। बीच के धँसाव को महसूस करें। यह फ़िलट्रम कहलाता है। यह हिस्सा आपका गीला नहीं है और न विकसित है। होता तो शायद आप बेहतर सूँघते। लेकिज आपने देखना सूँघने पर चुना। आप हैप्लोरायनी हुए। आपके पास राइनेरियम नहीं है।
आगे कड़ी-दर-कड़ी हम मनुष्य पर आएँगे। यह बहुत ज़रूरी है कि लोग ‘बन्दर-राग’ से बाहर निकलें।
( चित्र में एक लीमर। हमारे ऑर्डर में हमारा-आपका सबसे दूरस्थ रिश्तेदार। )
स्कन्द शुक्ल
लेखक पेशे से Rheumatologist and Clinical Immunologist हैं।
वर्तमान में लखनऊ में रहते हैं और अब तक दो उपन्यास लिख चुके हैं