कोरोना का ईलाज लक्षण आधारित

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जब तक वैक्‍सीन नहीं आ जाती, तब तक कोरोना का ईलाज लक्षण आधारित चल रहा है। लक्षण आधारित कहने का अर्थ क्‍या है? यानी आपको बुखार है, खांसी है, ऑक्‍सीजन सेचुरेशन लेवल गिर रहा है या सांस में तकलीफ है, इनमें से एक या एक से अधिक लक्षण कोरोना हो सकता है।

एलोपैथी ट्रीटमेंट सामान्‍य तौर पर लक्षण आधारित नहीं होता। प्रॉपर जांच होती है और संबंधित रोग का सटीक ईलाज होता है। लेकिन अगर लक्षणों को स्‍पष्‍ट रूप से परिलक्षित होने का समय दिया जाए तो बहुत देर हो चुकी होगी और रोगी को अस्‍पताल ले जाने के बाद केवल प्रार्थना ही काम करेंगी।

अगर लक्षण नहीं हो और सभी लोग जांच करवाने लगें तो इतनी अधिक जांचें होंगी कि स्‍वास्‍थ्‍य तंत्र ध्‍वस्‍त हो जाएगा। सभी की ठीक प्रकार जांच नहीं हो पाएगी।

सरकारी संसाधनों की एक सीमा है। अगर सिस्‍टम पर बहुत अधिक दबाव पड़ा तो भी नकारात्‍मक प्रभाव पड़ेगा। हर एक नागरिक की हर सप्‍ताह जांच व्‍यवहारिक रूप से भी संभव नहीं है।

एक बार कोरोना पॉजिटिव होने के बाद चार स्‍तर हैं।

पहला : लक्षण बहुत अधिक प्रभावी न हों, सामान्‍य सर्दी खांसी जैसी समस्‍या हो और रोगी ठीक हो जाए।

दूसरा : बुखार हो, शरीर में टूटन हो, हल्‍की खांसी हो सांस में तकलीफ न हो तो घर में क्‍वारेंटीन रहकर चार दिन में ठीक हुआ जा सकता है।

तीसरा : सांस में तकलीफ हो, खांसी हो, बुखार हो और शरीर में टूटन हो, तब चिकित्‍सक तुरंत आपको अस्‍पताल में भर्ती होने की सलाह देते हैं। वहां चिकित्‍सक निगाह रखते हैं। पहली दो अवस्‍थाओं में जहां एंटीबायोटिक दवाएं, पेन किलर, एंटीहिस्‍टेमिनिक या कहें एंटी एलर्जिक और मल्‍टीविटामिन दिए जाते हैं, तीसरी स्‍टेज में एंटीवायरल दवाएं और जरूरत पड़ने पर प्‍लाजमा थैरेपी देकर रोगी को सपोर्ट करने का प्रयास किया जाता है।

चौथा : फेफड़े सांस खींचने में असमर्थ हो जाते हैं, बुखार, खांसी और सांस में तकलीफ बहुत तेजी से बढ़ती है। ऐसे में इलाज वही रहता है, एंटीवायरल दवाएं, प्‍लाजमा और साथ में फेफड़ों को सपोर्ट करने के लिए वेंटीलेटर…

चारों ही अवस्‍थाओं में रोग का इलाज न होकर, रोगी के शरीर को अतिरिक्‍त बल देने का प्रयास किया जाता है, ताकि रोगी खुद वायरस से लड़ सके। यही आज ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल है और अधिकांश मामलों में सफल है। चौथी अवस्‍था तक आए मरीज को बचाने के लिए अभी कोई ट्रीटमेंट एलोपैथी के पास नहीं है।

अगर समय पर चिकित्‍सकीय जांच और इलाज के तहत चले जाएं तो रोगी के बचने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है। मैंने इस रोग को बहुत करीब से देखा है। मेरे मामाजी सबसे पहले 10 अगस्‍त को इस रोग की चपेट में आए। उन्‍होंने अपने स्‍तर पर इससे लड़ने का प्रयास किया, लेकिन जैसे ही सांस में तकलीफ महसूस हुई तुरंत सुपरस्‍पेशलिटी में भर्ती हो गए।

मेरी नानीजी 13 अगस्‍त को लक्षण दिखाने लगीं और 15 अगस्‍त को इस रोग से हार गई। उनके फेफड़े पहले से हुई बीमारी से 80 प्रतिशत तक डैमेज थे।

14 अगस्‍त को मेरे दूसरे मामाजी पॉजिटिव हो गए थे, उनके लक्षण बहुत तीव्र नहीं थे, लेकिन 16 अगस्‍त को वे भी भर्ती हो गए, साथ ही मामीजी भी भर्ती हो गई। चूंकि लक्षण अधिक नहीं थे, तो शुरूआती ट्रीटमेंट हल्‍का रहा, लेकिन चार दिन में ही लक्षणों में तीव्रता आने लगी। वही प्रोटोकॉल फॉलो किया गया, एंटीवायरल, प्‍लाजमा और संभवत: स्‍टीरॉयड भी। 14 दिन अस्‍पताल में दोनों रोग से लड़ते रहे, फेफड़े 40 प्रतिशत तक डैमेज हुए, लेकिन मामाजी-मामीजी जीत गए।

छोटे मामाजी जो सबसे पहले संक्रमित हुए थे, उनके फेफड़े 60 प्रतिशत तक डैमेज हुए, वे आज दो महीने बाद भी ऑक्‍सीजन पर हैं, हालांकि अब उनकी स्थिति बहुत बेहतर है। कोरोना नेगेटिव होने के बाद भी क्षतिग्रस्‍त फेफड़ों को लिए रोग से उनकी जंग जारी है।

परिवार के कुल आठ लोग संक्रमित हुए और नानीजी जो कि पहले से बीमार थी, वे ही हारीं, बाकी सभी ने कोरोना से लड़ाई में विजय प्राप्‍त कर ली। चूंकि यह ओपन बैटल फील्‍ड था, किसी के फेफड़़ों पर प्रहार हुआ तो किसी के शारीरिक कमजोरी। मेरा अनुज, मामाजी के तीनों बेटे हल्‍के लक्षणों के बाद ठीक हो गए।

यहां तक हम एलोपैथी के साथ कोरोना की जंग में थे। जैसा एलोपै‍थिक चिकित्‍सकों ने कहा और निर्देश दिए, उनका अक्षरश: पालन किया। अपनी जान दांव पर लगाकर रोगियों की सेवा कर रहे देवदूतों की बात टाल भी कैसे सकते थे।

जैसे ही प्राथमिक लड़ाई पूरी हुई, अगली लड़ाई के लिए हमने बाकी सभी हथियार भी संभाल लिए, जो संक्रमित हुए वे भी और जो बचे हुए हैं वे भी, सभी कमर कस के तैयार हैं।

बाकी हथियारों के रूप में हमने होम्‍योपैथी और आयुर्वेद दोनों को लिया है। होम्‍योपैथी में तुरंत राहत देने वाली दवा आर्सेनिक एल्‍बम 200 है। जैसे ही सांस में तकलीफ महसूस हो तुरंत लेने की दवा है, यह इम्‍युन सिस्‍टम को भी सपोर्ट करती है, और श्‍वसन तंत्र को भी जीवनदान देती है।

आयुर्वेद में तीन जड़ी बूटियां हैं जो शरीर के इम्‍युन सिस्‍टम को बहुत सहारा देती हैं। गिलोय, अश्‍वगंधा और तुलसी। अगर आप संक्रमित हो चुके हैं तो जैसा एलोपैथी चिकित्‍सक कहे, वैसा ही कीजिए, लेकिन साथ में इनका उपयोग भी शुरू करें। बाबा रामदेव ने इन तीनों बूटियों से रसायनिक वटी बनाई है। जिसे कोरोनिल नाम दिया है। अगर आप संक्रमित नहीं हुए हैं तो इस दवा का सेवन जरूर करें, अगर संक्रमित हो चुके हैं तो एलोपैथिक ट्रीटमेंट के साथ साथ इसका सेवन शुरू कर दें अगर आप संक्रमित होकर ठीक हो चुके हैं तो यह शरीर को फिर से नॉर्मल करने में आपकी मदद करेगी।

जब इलाज लक्षण से ही होना है तो एलोपैथी, होम्‍योपैथी और आयुर्वेद तीनों का समुचित उपयोग कर, रोग से लड़ा जाना चाहिए। इसके अलावा बैच फ्लावर थैरेपी की भी मदद ली जा सकती है। इस रोग में प्रमुख रूप से ऑलिव, स्‍टार ऑफ बैथहेलम, क्रैब एप्‍पल प्रभावी दवाएं सिद्ध हुई हैं।

चारों प्रकार की चिकित्‍सा अपने स्‍तर पर करने के बजाय संबंधित विशेषज्ञों की राय से ही कोई स्‍टैप उठाना समझदारी है। अपने स्‍तर पर इस रोग से लड़ने की कोशिश करते हुए मैं दो ऐसे लोगों को हारते हुए देख चुका हूं, जिनके इस उम्र (45 से 50 के बीच) में जाने की कोई आशंका नहीं थी।