#कोरोना #अनुभव
कोरोना काल मै बाक़ी सब तो चलता रहा पर हमारे साथ तो ये हुआ की मेरी दो बुआ सासुजी इस दुनिया से हमें छोड़ कर चली गयी और हम पीहर पक्ष वाले होते हुवे भी उन्हें विदा करने नही जा सके जबकी पीहर वालो के बग़ैर दाह संस्कार भी नही हो सकता क्याकरते जोभी रस्म थी वो किसी और से करवाई हमारा एरिया तो सील हो रखा तो वो समय बहुत ख़राब निकला
अब चिंता के पल भी साथ ही गुज़र रहै थे पुरा परिवार तो घर मे ही था मगर छोटा बेटा अहमदाबाद मे था उसकी चिन्ता हर पल बनी रहती क्या खायेगा कैसे बनायेगा क्योंकि कामवालीभी बन्द थीइधर टीवी पे अहमदाबाद का हाल देख कर चिन्ता और बढ़ जाती जब१ मई को आवागमन चालू किया तो गाड़ी भेज उसको बुलाया तोचैन आया
फिर आयेखुशी के पल मेरे भतीजे के बेटा हुआ १७ मई को मै उसे देखने नही जा पाई कोरोना काल की वजह से मेरेपापा मम्मी को सौने की सीढ़ी चढ़ाने का उत्सव हुवा मे नागौर नही जा पाई क्योकीघर मै सासुजी ससुर जी बुज़ुर्ग है पोतापोती छोटे बच्चे और ईन दोनों का कोरोना काल मे विशेष ध्यान रखने का कहते है ससुर जी तो वैसे भी ब्रेनहेमरेज से पीड़ित है साढ़े तीनसाल से और मे ५८ साल की हो गयी हूँ तो कोरोना काल बाहर नही निकलती
अब आया समय पास करने व अपना शौक़ पुरा करने का सवाल मुझे सिलाई नहीआती वसीखने की प्रबल ईच्छा है कैसे सिखी जाये तो मैंने मॉबाईल का सहारा लिया और यूट्यूब पे जाकर कैसेनाप लेते कटिंग्स करते सिलते है काफ़ी हद तक बेबी फ्राक सीख गयी हू सबसे पहलेमास्क बनाना सीखा क्योंकि
लोकडाउन मेकंहा से लातेउसकी ज़रूरत ज़्यादा थी ख़ाली समय मेसीखने के लिये यू ट्यूब बहुत अच्छा माध्यम है तो सखियों मेरे कोरोना काल के पल जोकि धूपछाँव की तरह बीते व बीत रहे हैयेमेरा अनुभव हेै।
लेखिका – बसंती पुरोहित