सैनिटरी बनी समस्या- मेरा कोरोना वर्ष अनुभव37

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वैसे तो कोरोना जब से आया है लगभग सभी लोग परेशान है। पर कुछ सब अपने अपने तरीके से मदद कर रहे है पर मेरे साथ जो हुआ उससे मै सोचने पर विवश हो गई। एक हप्ता हो चुका था लाॅकडाउन का और सभी दूकानें और बाजार बंद थी। कहीं भी कुछ भी नहीं था और हम ग्रामीण क्षेत्र में रहते हैं। एक रात 10 बजे के लगभग मेरे ही पडोस में रहने वाली सीमा का फोन आया कहने लगी। दीदी आपके पास सैनिट्री नैपकिन है मेरी बेटियों का टाइम आ गया है और कुछ नहीं है। आजकल बच्चों को हम कपड़े नहीं यूज करने देते। वो बहुत परेशान हो रही है मैने बोला तुम परेशान मत हो मेरे पास रखे है। उनको मैने दे दिये पर ये सोचा की अभी तो बेटियों का काम चल जाऐगा पर मेरा नहीं चल पायेगा मेरी बेटी भीहै उसको भी कुछ दिनों में जरूरत पड़ेगी। पर ये सोचकर दे दी की जब तक कुछ खुलेगा। अब मैंने उनका काम बना दी थी। उनकी मां बार बार धन्यावाद दे रही थी। अब सुबह मैंने मेरे पति को सब बताया और लाने को कहा जिससे मेरा भी काम चल जाएं मेरे पति पशु चिकित्सक है उनकी ड्यूटी भी लगी हुई थी कोरोना योद्धा के रूप में।
पर उस समय कोई मेडिकल भी नहीं खुलती थी। फिर यहां वहां से पूछकर एक मेडिकल से कुछ पैकैट लेकर आये। ये सोचकर की मोहल्ले में और भी बेटियां है जो गरीब है कब किसको जरूरत पड जाएं। अब मेरे मन में ये सवाल लगातार घूम रहा था हमारे कितने मजदूर भाई बहन पैदल चल रहे है। और कितनी महिलाएं और बेटियां भी कभी किसी का रास्ते में आ जाएं तो वो कैसे कर रहे होंगे। जिनका चल रहा होगा वो कैसे कर रहें होंगे। खाने को तो मिल रहा था कितने लोग मदद कर रहे थे पर इस विषय पर किसी का ध्यान नहीं गया। अब मैं चाह रही थी क्या हम कुछ कर सकते है कहा से ये बात सोशल मीडिया में डाले पर अफसोस मैं नहीं कर पाई पर जो हो सका यहां पर करी। उन महिलाओं के बारे में सोच कर मुझे बहुत दुख हो रहा था एक तो ये विषय ही ऐसा है की कोई भी खुलकर बात नहीं करता पर जो उन बहनों और बेटियों ने सहा होगा वो तो हम सोच भी नहीं सकते खाना पानी पर तो ध्यान गया पर इस नहीं आप सभी बड़ी सीटियों में थी कुछ तो समाज की सेवा भी कर रही थीं आप लोगों ने किया होगा इस विषय पर ध्यान। एक अनुभव और है। सरकार जब गरीब वर्ग के लोगों को आनाज बाट रही थीं तब मैंने आसपास के लोगों को देखा की वो आनाज को कई जगह से लाकर उसको दुगनी कीमत में बेच रहे थे। मैंने उनको वोला की आप लोग ऐसा क्यूँ कर रहे है तो वो बोले की हम चावल बस का क्या करेंगे अभी तो सरकार और दे रही एक तरफ हम इनकी मदद में लगे थे और इनका ये सोचना था फिर मैंने भी सोचा की चावल के साथ साथ तेल नमक मिर्च भी लगता है फिर कुछ चावल उनसे खरीद कर पैसे दिये जिससे वो अपने और जरूरत का समान खरीद सकें।
आज जो हम सब कोरोना की मार झेल रहे हैं वो मनुष्य का ही किया धरा है। पहले मनुष्य ने प्राकृतिक के साथ बहुत खिलवाड़ किया है अब प्राकृतिक की बारी है।
कुछ लोगों को तो बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा है। पर हम लोग भी यहां पर सुरक्षित है यहां पर ज्यादा नहीं है पर सावधानी पूरी है। आप सब साखियों को मेरा अनुभव अच्छा लगा हो तो जरूर बताएं।।

लेखिका- तारकेश्वरी बुनकर