#कोरोना # 2020 का मार्च महीना इसी समय से सुनने मे आई यह बीमारी। मेरा अनुभव इस समय मेरे छोटेबेटे की परीक्षा चल रही थी ।अचानक सब कुछ थम सा गया। कुछ था जो चल रहा था वो थी हर घर की महीलाये,सब कुछ ना कुछ बनाने म लगी थी में बी शुरु हुई इस दौड में देखते ही देखते मेने बहुत से व्यंजन बना लिए ।
कोरोना किसी के लिए खुशी तो किसी के लिए गम में बदला ।लाकडाऊन में पति देव लम्बे समय के बाद दिन रात साथ रहे ।काम दिन भर रहता मगर अच्छा लगता ।
सब की फरमाइश पूरी करना भी एक कला है और मेने इस कला को पूरी तरह से सिखा।
थोडी रियायत मिलने पर करीब डेढ़ महिने के बाद पीहर गयी तो माँ को देख कर आंखे भर आयी,तब सच में लगा की कितना मुसकिल होता होगा उन महिलाओं के लीये जिनका पीहर(मायका) एक शहर में नही होता ।हालांकि
अब मोबाईल फोन से वीडियो फोन हो जाता हैं पर फिर भी ससुराल का सुख एक तरफ़ और माँ का घर …….फिर क्या 2 दिन मे इतनी मस्ती की मानो सालो बाद पीहर आई हु ।लाकडाऊन और कर्फ़्यू वाले क्षेत्र में भी भाई ने खूब आवभगत की।
अब करीब 2 महिने हो गये तब चिंता सताने लगी,साहब के काम की क्योकिं इनका काम लाईट डेकोरेशन और लाईट फिटींग का है और अब शादी में केवल 50 आदमी की रियायत मिली।आखिरकार जब काम शुरु हुआ तो शुगर भी ठीक आ गयी ।
अनुभव यही कहता है कि आदमी हो या औरत चिंता सच में चिता के समान है ।
लेखिका- सुनीता व्यास