# कोरोना वर्ष पर मेरा अनुभव #:-
कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए सरकार ने देश को 21 दिन के लिए लॉकडाउन कर दिया था और लोगों को घरों में रहने की सलाह दी गई थी। इस दौरान मुझे बहुत अच्छी और बुरी बातों का सामना करना पड़ा ।अच्छी बात यह हुई कि पतिदेव के साथ बहुत वक्त मिला बहुत अच्छी और मीठी यादें ताज़ा हो गई थी हमारी। बुरी बात यह हुई कि मेरी बेटी पूरे 4 महिने के लिए दूर हो गई ।वो छुटिटया बिताने अपने दादा दादी के पास गई थी और फिर वही रह गई ।हालांकि वह वहां बहुत खुश थी पर हमारा उसके बिना रहना मुश्किल हो गया था ।जैसे जैसे उसे लेकर आए 4 महिनेमें। पर अब सब कुछ ठीक हो गया ।
बस एक कसक रह गई मन में कि मैं अपने मायके नहि जा पाईं ।इसलिए पापा मम्मी भाई भाभी दीदी सबको बहुत याद कर रही हूँ ।आशा है कि जल्दी ही सबसे मिलूं ।
स्कूल बंद पड़े हैं ताकि छात्रों को इस वायरस से बचाया जा सके. बच्चों की छुट्टियां हो गई हैं और उन्हें घर पर ही रहना पड़ रहा है. ऐसे में इस वक्त का इस्तेमाल बच्चों को कुकिंग और नए क्राफ्ट सिखाने में कर रही हू वहीं बच्चे भी नई चीजें सीख रहे हैं और परिवार के साथ ज्यादा वक्त बिता रहे हैं.।
ये छुट्टियां बच्चों के लिए गर्मियों के पहले शुरू हुए मॉनसून जैसी हैं।
इस लॉकडाउन का इस्तेमाल परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताने और आपसी रिश्ते मजबूत करने में कर रहे हैं.।
“इस बार समर कैंप्स नहीं हैऔर ऐसे में घर ही लर्निंग ग्राउंड बन गया है.”।
“हां, घर तितर-बितर पड़ा हुआ है, लेकिन मैं घर को ज्यादा वक्त तक साफ करने के लिए तैयार हूं. मुझे बच्चों के घर पर रहने में कोई शिकायत नहीं है.”
बड़े बच्चों के मुकाबले टीनेज और छोटे बच्चों को संभालने में कहीं ज्यादा दिक्कत होती है.।और मेरे दोनों बच्चे छोटे हैं एक 9 साल की लड़की और 4 साल का बेटा ।
इस बात से खुश हैं कि उनके बच्चे इस दौरान हाइजीन के बारे में जागरुक हो रहे हैं और ज्यादा अनुशासित बन रहे हैं.
अपने बच्चों के साथ अब ज्यादा वक्त बिताती हू और उन्हें कहानियां सुनाती हैं, सामान्य वक्त में बिजी शेड्यूल के चलते बच्चों को इतना वक्त नहीं दे पाती थीं.।
“मेरे बच्चे अब हाइजीन पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं और वे अपने स्नैक्स बनाने और क्राफ्ट्स को सीखने में वक्त लगा रहे हैं.”।
खुश हैं कि बच्चे अपने दादा-दादी और अन्य रिश्तेदारों से हर रोज़ बात कर पाते हैं क्योंकि सभी के पास अब पर्याप्त वक्त है.। हम अब वो सब कुछ कर रहे हैं जिसे हम इतने वक्त से मिस कर रहे थे.”
आमतौर पर बड़े-बुजुर्ग अपने बच्चों या पोते-पोतियों से बात करने के लिए तरस जाते हैं.।
घर के बने खाने की अहमियत समझ रहे है अब बच्चे भी ।अब न तो बाहर निकलनेकी जिद करते हैं और नहि बाहर के खाने की ।
9 साल की बेटी अनुरा अपनी बार्बी डॉल्स के लिए खुद कपड़े बनाना सीख रही है । सोशल डिस्टेंसिंग ने असलियत में परिवारों को एकसाथ जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है ।”
मैंने भी आज एक और नयी चीज सीखी “इस गुप के माध्यम से “पहली बार हिंदी में इतना बड़ा लेख लिखा ।इसलिए कोई गलती हो तो शमा किजीये ।
धन्यवाद
लेखिका-
उषा फरकिया