मैं संयोगों पर यकीन करता हूं। ये बार बार होते हैं। हर बार होते हैं और मुझे पहले से अधिक आश्चर्यचकित छोड़ जाते हैं। इस बार फिर ऐसे ही संयोग हुए जिन्होंने ने न केवल मुझे सोचने पर मजबूर किया बल्कि कई दूसरे लोग भी इन संयोगों की चपेट में आए। जैसा कि मैं पहले बता चुका हूं कि मैं सक्रामक हो चुका हूं। इस बार तो मैंने संक्रमण के बीच ही बो दिए। या कहूं कि समय ने कुछ ऐसा चक्रव्यूह रचा कि संक्रमण के बीज खुद ब खुद आए और बीकानेर की मानस धरती पर समा गए। बीकानेर में ब्लॉग संगोष्ठी हुई। इसके लिए दो दिन से एक शब्द तलाश रहा हूं। पर घूमफिरकर एक ही सही शब्द दिमाग में आता है वह है…
ब्लॉग आमुखीकरण कार्यशाला
चलिए पहेलिया छोड़कर सीधे मुद्दे पर चलते हैं। अहमदाबाद से वरिष्ठ ब्लॉगर संजय बेगाणीजी सपरिवार बीकानेर आए। मैं बता दूं कि बीकानेर के पास के एक छोटे से गांव बीदासर से निकला बेगाणी परिवार करीब पैंतीस साल से सूरत और अहमदाबाद में स्थापित है। तो जड़ों की ओर लौटने के लिए संजय जी को बहाना मिला अपने साले साहब की शादी का। वे बीकानेर आ रहे थे उन्हीं दिनों उनसे मेरा संवाद स्थापित हुआ। इसी संवाद के दौरान उन्होंने मुझे बताया कि वे 27 नवम्बर को बीकानेर पधार रहे हैं। मैंने ब्लॉगर मीट के सपने देखने शुरू कर दिए। एक भरा हुआ हॉल और एक के बाद एक ब्लॉगर आए और अपने अनुभव दूसरों के साथ बांटता चला जाए। जो पहले से ब्लॉगर हैं वे तालियां बजाएं और जिन लोगों ने अब तक ब्लॉग शुरू नहीं किया है वे मुंह बाएं देखते रहें। खैर, दिन का सपना था सो जल्दी टूट गया। संयज जी के बीकानेर आने से ठीक एक दिन पहले तक बीकानेर में पहले महापैार फिर उपमहापौर के चुनाव सिर पर रहे। मैं शुरूआती एक दो दिन तैयारी के निकालने के बाद ऐसा व्यस्त हुआ कि बेगाणीजी की अगली मेल से तंद्रा टूटी और फिर से ब्लॉग मीट की तैयारी करने लगा। हकीकत तो यह है कि अपने दमघोंटू दिनचर्या में से मैंने कुछ ही घंटे निकाले।
डॉ. कटारिया की स्नेहपूर्ण कृपा
मैं खुद कभी किसी का अच्छा मित्र नहीं रहा हूं लेकिन मुझे हमेशा अच्छे मित्र मिले। इसी कड़ी में एक और नाम है डॉ. प्रताप कटारिया। वे बीकानेर संभाग के सबसे बड़े कॉलेज में प्राणीशास्त्र के व्याख्याता हैं और शौकिया पक्षीविज्ञानी। मैंने उन्हें बताया कि अहमदाबाद से वरिष्ठ ब्लॉगर आ रहे हैं उनके लिए एक संगोष्ठी का आयोजन कराने की कोशिश कर रहा हूं। उन्होंने कहा ठीक है मैं मदद कर दूंगा। बाद में तो यह स्थिति हुई कि शुरू से आखिर तक की सारी व्यवस्थाएं उन्होंने ही कराई। समय कम होने के कारण कॉलेज के तीन एलसीडी प्रोजेक्टर किसी न किसी कारण से हमारी पहुंच से दूर थे। माइक भी ईद की छुट्टी की वजह से अरेंज नहीं हो पाया। इन सबके बावजूद न तो किसी के उत्साह में कमी थी न उत्सुकता में।
मौजूद लोग
इनके बारे में मैं इसलिए जानकारी देना चाहता हूं कि संजयजी का भाषण और उपस्थिति श्रोताओं का तारतम्य समझा जा सके। डॉ. कटारिया के अलावा डॉ। नवदीप बैंस डूंगर कॉलेज के व्याख्याता हैं,
डिफेंस रिसर्च डवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन के पूर्व निदेशक डॉ. हनुमानप्रसाद व्यास जो कि महात्मा गांधी और विवेकानन्द पर राष्ट्रीय स्तर की कई कांफ्रेंस में भाषण देते रहे हैं, और अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ समझे जाते हैं इन्होंने अपने जिंदगी के बीस साल अमरीका में गैलियम आर्सेनाइड पर रिसर्च में लगाए और भारत में आकर तकनीक विकसित करने पर पाथ ब्रेकिंग अवार्ड लिया,
शंकर लाल हर्ष भी मौजूद थे, हर्ष जी एशियन शतरंज संघ के उपाध्यक्ष रहे हैं और बीकानेर में शतरंज की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं करवा चुके हैं। अब भी हर साल दुनिया के कई देशों की यात्राएं करते हैं शतरंज टूर्नामेंटों को लेकर क्योंकि वे इंटरनेशनल ऑर्बिटर हैं,
विनय कौड़ा जो कि देश के प्रमुख आठ अखबारों के एडीटोरियल में नियमित रूप से छपते हैं, इनमें अमर उजाला, प्रभात खबर, राजस्थान पत्रिका जैसे नाम शामिल हैं, ये अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ माने जाते हैं,
पुखराज चोपड़ा जी अंतरराष्ट्रीय ट्रेड पर गहरी नजर रखते हैं और इनकी सलाह देश के सभी प्रमुख चैनल और अखबार सुनते हैं। इनके ब्लॉग की हर नई पोस्ट को ऑन लाइन ट्रेडिंग से जुड़े लोग तुरंत पढ़ते हैं।
इनके अलावा इन्हीं लोगों से संबंधित कुछ और लोग थे।
मेरी सीमाएं
कार्यक्रम के लिए मैंने भरसक प्रयत्न किया कि कम से कम पचास लोग तो आएं ही, लेकिन पूरी कोशिश करने के बावजूद भी शादियों का दिन, ईद की छुट्टी और अन्य कई कारणों से कई लोग चाहकर भी पहंच नहीं पाए। अगली कांफ्रेंस तक मैं कोशिश करूंगा कि कम से कम सौ लोग तो शामिल हों ही। वैसे मैं सोचता हूं कि खाने का प्रबंध किया जाएगा तो भोजनप्रिय बीकानेर के लोग अवश्य पहुंच जाएंगे। यह व्यवस्था कैसे होगी आगे बताउंगा।
तो शुरू हुआ कार्यक्रम
मेरी पंचायती में यह पहला कार्यक्रम था। सो ऑफीशियली कैसे शुरू करते हैं मुझे पता नहीं था। मैंने सबसे पहले कॉल किया संजय बेगाणीजी को, बेगाणी जी बस तैयार हो ही रहे थे कि डूंगर कॉलेज के प्राचार्य डॉ. पी.आर. ओझा ने घड़ी देखते हुए कहा कि पहले मैं बोलूंगा। अब डॉ. ओझा ब्लॉग तो लिखते नहीं हैं लेकिन हिन्दी पढ़े हुए हैं। उनके पिताजी भी हिन्दी के विद्वान थे। उन्होंने जो कुछ भी बोला उसका संबंध ब्लॉगिंग से कतई नहीं था। सो आपका समय भी मैं खराब नहीं करूंगा।
अब बारी थी संजय जी की…
उन्होंने जो कहा उसका मंतव्य था कि इंटरनेट पर भाषाओं की जंग छिड़ी हुई है। इसमें अंग्रेजी भाषा के बाद अब चीन अपना वर्चस्व स्थापित करने में लगा हुआ है। सन 2020 तक इंटरनेट की प्रथम भाषा चीनी होगी और दूसरे स्थान पर हिंदी होगी। भले ही हम इससे खुश हो जाएं लेकिन ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि हम पहले स्थान पर रहें। इसके लिए हर प्रबुद्ध व्यक्ति को ब्लॉग लिखना चाहिए। अब ब्लॉग पर क्या लिखा जा रहा है और क्या लिखा जा सकता है। इस बारे में उन्होंने कहा कि साहित्यिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो ब्लॉग कचरे से अधिक कुछ नहीं हैं। क्योंकि यहां लिखने वाले लोग साहित्यकार नहीं हैं। अधिकांश लोगों को तो हिन्दी भी सही लिखनी नहीं आती। लेकिन इससे ब्लॉग का महत्व कम नहीं हो जाता। दुनिया में ऐसे कई प्रकरण हुए हैं जहां देशों की सरकारों के दमनचक्र को ब्लॉग के माध्यम से पूरी दुनिया ने जाना। यही कारण है कि तानाशाह देशों की सरकारें ब्लॉग से डरती हैं और इस पर अंकुश लगाने का प्रयास कर रही हैं। बेगाणीजी ने इसे आम आदमी की आवाज की ताकत बताते हुए कहा कि चाहे कुछ भी लिखिए लेकिन लिखिए जरूर। अन्य किसी माध्यम से लिखेंगे तो उस प्रकाशित रचना का जीवनकाल अधिक से अधिक एक दिन या एक महीना होगा लेकिन इंटरनेट पर आप जो कुछ लिखेंगे वह शाश्वत होगा। इससे आप अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए भी कुछ छोड़ जाएंगे। अब कौन क्या लिखे के बिंदू पर उन्होंने कहा कि जो अपने विषय के विशेषज्ञ हैं वे अपने विषय के बारे में लिखें वरना यह भी लिख सकते हैं कि आज दिन कैसा रहा। आज कैसे लोग मिले। उन्होंने एक चायवाले का उदाहरण देते हुए बताया कि एक चायवाला भी ब्लॉग लिख सकता है। उसमें वह लिखेगा कि आज तो ऐसे ऐसे अजीब लोग मिले।
कुछ सीखने की बातें
यहां तक पहुंचने के बाद लोगों में उत्सुकता थी कि ब्लॉग कैसे बनता है और हम कैसे इस जमात में शामिल हो सकते हैं। इस पर कुछ लोगों का मत था कि मैं खुद उन लोगों के पास जाउं और उनके ब्लॉग बनाकर लिखने की विधि समझा दूं लेकिन बाद में उपस्थित लोगों के आग्रह पर गोष्ठी को औपचारिक की बजाय अनौपचारिक बना दिया गया। तस्वीरों में जो सिटिंग दिखाई गई है उसे क्रम को तोड़कर सभी आगे आकर एकत्रित हो गए और बेगाणीजी भी मंच से नीचे उतर आए। यहां उन्होंने अपने लेपटॉप पर अपने मोबाइल से चल रहे इंटरनेट से लोगों को ब्लॉगर डॉट कॉम के दर्शन कराए और ब्लॉग बनाने के तीन आसान चरणों की जानकारी दी। इसके बाद उन्होंने ऑन लाइन हिन्दी टूल और वर्तनी शुद्धि वाले सॉफ्टवेयर्स की जानकारी भी दी।
एक बार भी ताली नहीं बजी
संजय जी के भाषण के दौरान एक बार भी ताली नहीं बजी। पूरे सदन में केवल मैं ही था जो उपस्थित श्रोताओं को बेगाणीजी को पर्सनली जानता था। इसलिए मैं देख सकता था कि हिन्दी और हिन्दुस्तान के वर्चस्व के संबंध, अंतरराष्ट्रीय मामलों पर बेगाणीजी के बोलने के साथ ही प्रमुख श्रोता अपनी तलवारें निकाल चुके थे। वे यह सुनने को तैयार ही नहीं थे कि चीन हमसे आगे है। डॉ. व्यास ने अपने शोध से चीन को धूल चटाई थी, कौड़ाजी जानते थे कि चीन हमसे किन मामलों में पिछड़ रहा है, पुखराज जी भारत की मजबूत अर्थव्यवस्था के बारे में सोच रहे थे और हर्षजी विश्वनाथन आनन्द और अन्य भारतीय शतरंज मास्टरों के बारे में सोचने लगे थे। यानि भाषण की शुरूआत ही कुछ ऐसी थी कि बेगाणीजी ने श्रोताओं को एक्टिवेट कर दिया था। इसलिए बाकी के भाषण के दौरान श्रोता उनके शुरूआती कथन के विश्लेषण में ही उलझे रहे। इसलिए एक बार भी तालियां नहीं बजी।
चाय और कचौरियां
कार्यक्रम करीब आधे घण्टे देरी से शुरू हुआ। भाषण के पहले भाग के अंत तक डॉ. कटारिया के आज्ञाकारी शिष्य चाय और गर्मागरम कचौरिया लेकर पहुंच चुके थे। हॉल के पीछे से खुशबू आनी शुरू हो गई। मैं सुबह से बिना नाश्ता किए निकला हुआ था। दोपहर एक बजे तक तो पेट जवाब दे गया। मैंने गुजारिश की कि चलिए चाय पी लेते हैं। बाकी लोगों के पीछे पहुंचने से पहले मैं दो कचौरिया निगल चुका था। चाय के ब्रेक के दौरान ब्लॉग, इसकी ताकत, बनाने के तरीके और चीन के वर्चस्व को लेकर लगातार होती रहीं। मेरा ध्यान पूरी तरह से कचौरियों की तरफ था।
श्रोताओं के विचार
जैसा कि मैंने पहले से सोच रखा था, मैंने कुछ श्रोताओं को बोलने के लिए आमंत्रित किया। सबसे पहले आए डॉ. व्यास उन्होंने अपने डीआरडीओ के अनुभव के आधार पर बताया कि केवल हिंदी की बात करने से अन्य भाषाओं वाले लोग चिढ़ सकते हैं। उत्तर भारत में तो ठीक है लेकिन दक्षिण भारतियों के समक्ष तो हिन्दी तो प्रमुखता की बजाय कनेक्टिंग लैंग्वेज के रूप में परोसना ही उचित रहेगा। इससे हिन्दी का भी विकास होगा और दूसरी भाषाओं को भी उचित सम्मान मिलेगा। शंकरलाल हर्ष ब्लॉग में लिखे गए किसी भी अंट शंट के लिटिगेशन के बारे में पूछना चाह रहे थे। उनका सवाल था कि इसके लिए जुरिस्डिक्शन जोन कौनसा होगा। मैं बीकानेर से कुछ लिखता हूं और एक आदमी आपत्ति करके मुझे बैंगलोर की अदालत में हाजिर करवा लेगा तो ब्लॉगिंग तो पीछे रह जाएगी, नौकरी धंधे का भी संकट हो जाएगा। हालांकि उनका सवाल अनुत्तरित रहा लेकिन संगोष्ठी जारी रही। चाय के दौरान डॉ. व्यास ने रजनीश परिहार जी से पूछा था कि आप क्या लिखते हैं ब्लॉग में… मैंने दोबारा यही सवाल उठाते हुए उन्हें बोलने के लिए आमंत्रित किया। परिहारजी ने बताया कि वे जो कुछ रोजाना की जिंदगी में देखते हैं। उसे ही लिखते हैं। पिछले दिनों उन्होंने अंधी मां के दो बच्चों की कहानी लिखी थी, जिस पर देशभर में पढ़ा गया और कई लोगों ने मदद के लिए हाथ बढ़ाए। इस पर तालियां बजी
अगली संगोष्ठी का प्रपोजल
बीकानेर में अगली संगोष्ठी के लिए मुझे दो प्रपोजल मिले हैं। एक तो यहां के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सेमिनार हॉल का और दूसरा बीकानेर के उपनगर गंगाशहर स्थित तेरापंथ भवन का। पुखराज जी ने तो दो लाख रुपए तक के खर्च की सीमा भी पेश की है। अगर सबकुछ सही रहा तो छह महीने बाद ही अलगी संगोष्ठी आयोजित करने का प्रयास करूंगा। जिसमें देश के अन्य क्षेत्रों से प्रमुख ब्लॉगरों को बुलाने की कोशिश रहेगी। और प्रमुख वक्ताओं में संजय बेगाणीजी तो होंगे ही…
संगोष्ठी के दौरान मैं अपना कैमरा लेकर पहुंचा नहीं, सो मीडिया द्वारा लिए गए फोटो से ही काम चलाना होगा। ये वही फोटो हैं जो संयजजी ने अपने ब्लॉग जोगलिखी पर लगाए हैं…