आज जैसे ही कोई योग, आसन या प्राणायाम की बात करता है तो तुरंत दिमाग में मंच पर नौली क्रिया करते अथवा नाचते रामदेव बाबा दिखाई देते हैं। यह एक ओर बाबा की सफलता है तो दूसरी ओर हमारी गलती। हमने हमारे योग को सही तरीके से समझा नहीं और लगे कसरत करने। आज की तारीख में योग कर रहे सौ लोगों को पूछा जाए कि आप योग क्यों करते हैं तो पचानवे प्रतिशत लोगों के संभावित जवाबों में फिट रहना, बीमारी से लड़ना या तनाव को दूर करने का प्रयास करना जैसे जवाब शामिल होंगे। क्या योग फिजिकल फिटनेस का काम करता है। क्या यह कसरत का एक रूप है।
कम से कम मुझे तो नहीं लगता। ऋषि पातंजलि ने अपने पहले श्लोक में स्पष्ट किया है कि योग चित्त की वृत्तियों का निरोध करता है। कुछ लोगों ने योग को जोड़ से भी जोड़ा है। इसमें अच्छी और खराब एनर्जी के मिलन से लेकर शरीर और आत्मा तक के मिलन को जोड़ दिया है। पर चित्त की वृत्तियों के निरोध के लिए किया जा रहा योग, शरीर को वहां कैसे लेकर जा रहा है। यह समझ में नहीं आता।
योग पर कुछ बात करने से पहले क्यों न बाबा की कुछ तारीफ कर ली जाए। बाबा रामदेव ने “आधुनिकता” की रौ में बह रहे भारतीय समाज को बेहतर तरीके से पकड़ा और प्रचार के जोर को भी समझा। स्टेज पर मुंहफट अंदाज में बोलना और रिसर्च पेपर लेकर अपनी बात सिद्ध करने के लिए चिकित्सकों तक की मदद लेने के अंदाज ने भारतीय जनमानस को जोरदार तरीके से प्रभावित किया। उन्होंने योग को आध्यात्मिक उत्थान के बजाय शारीरिक सौष्ठव और सुंदरता से जोड़ दिया। हालांकि इसे भी प्राथमिकता पर नहीं रखा और इससे एक कदम आगे जाकर उन्होंने कहा कि इससे भीषण होती जा रही बीमारियों और बुढ़ाते शरीर को भी दुरुस्त किया जा सकता है। बीकानेर के छोटा शहर है। इसके बावजूद मैंने साठ पार के पचासों लोगों को सार्वजनिक पार्कों में सुबह सुबह बैठकर योग और प्राणायाम करते हुए देखा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बाबा रामदेव ने लोगों में एक नई जान फूंक दी। पश्चिम के मार्केटिंग हथियारों से ही पश्चिम की कंपनियों को चित्त करते हुए उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया कि प्राचीन भारतीय पद्धतियां ही तुम्हारी रक्षा कर सकती है। लोग भी उतर गए मैदान में। बस, यही बाबा की कमाई का आधार है, एक तरफ योग (आसन और प्राणायाम) सिखाते हैं और दूसरी तरफ स्वस्थ्य बने रहने के लिए दवाएं बेचते हैं। मेरे निजी सूत्रों के अनुसार बाबा रामदेव की दिव्य फार्मेसी सहित तीन दवा कंपनियां 2400 करोड़ से अधिक कीमत की हैं। बाबा ने उपेक्षित ग्वारपाठे और लौकी को प्रचलन में ला दिया है। भारतीय योग शिक्षा के लिए मैं बाबा रामेदव के प्रयास की जितनी सराहना करूं, उतनी कम है।
अब इसके दूसरे पक्ष को देखने की कोशिश करें तो पता चलेगा कि बाबा ने कितना बड़ा नुकसान किया है। पश्चिम के लोगों ने योग को जिस तरीके से समझा, वह उनकी भौतिक सोच का नतीजा था, लेकिन भारत में योग की एक सतत धारा बह रही थी, उसे बाबा रामदेव ने बुरी तरह झकझोर दिया है।
योग जीवन के हर हिस्से में है। कहीं यह प्रेमयोग है तो कहीं कर्मयोग, भक्तियोग, क्रियायोग, ज्ञानयोग या हठ योग। योग के शारीरिक कसरत के रूप में पेश कर बाबा रामदेव ने हठ योग को ही योग का पर्याय बना दिया। चित्त की वृत्तियों के निरोध का दर्शन कहीं पीछे दबकर रह गया है। योग के नाम पर अब कसरत बाकी रही है…
सिर्फ हठ योग के रूप में योग को पेश करने का एक दुष्परिणाम यह भी हुआ कि केन्द्र सरकार ने योग और हैल्थ क्लब को एक ही श्रेणी में डाल दिया।
…और तो और इस पर दस प्रतिशत कर भी लगा दिया है।
हो सकता है बाबा रामदेव खुशी से यह टैक्स चुका रहे हों, क्योंकि किसी भी मंच पर आजतक उन्होंने इस कर का विरोध नहीं किया है, लेकिन श्रीश्री रविशंकर का आर्ट ऑफ लिविंग भी इसकी जद में आ गया है। वे अपने तीन से सात दिनों के शिविरों में क्रियायोग का अभ्यास कराते हैं। केन्द्र सरकार के अनुसार यह क्रिया योग भी हैल्थ क्लब एक्टिविटी है और इस कारण शिविर में ली जाने वाली फीस पर दस प्रतिशत कर लगने लगा है। करीब सालभर पहले बीकानेर में श्री श्री रविशंकर का कार्यक्रम हुआ था। इससे पहले आर्ट ऑफ लिविंग की एज्युकेशन विंग के निदेशक मुरलीधर कोटेश्वर बीकानेर आए थे। सामान्य इंटरव्यू के बाद सामान्य बातचीत में उन्होंने इस कर के बारे में जानकारी दी। आप भी इस कर के बारे में देख सकते हैं।
(ऊपर दिए गए चित्र पर क्लिक करें। केन्द्र सरकार की वेबसाइट पर पूरी जानकारी मिल जाएगी)
सरकार आमतौर पर ऐसे साधनों पर कर की प्रताड़ना जारी करती है, जिन कामों को वह रोकना चाहती है। जैसे शराब, सिगरेट या विदेशों से लाई जाने वाले उत्पाद। ऐसे मेंयोग पर टैक्स किस कोण से लगाया गया है, यह समझना अभी बाकी है। दुनिया के अधिकांश देशों में जहां योग को प्रमुख रूप से अपनाया जा रहा है, वहां की सरकारों ने न केवल योग को करमुक्त रखा है, बल्कि इसके विकास और शोध के लिए अच्छा खासा धन भी व्यय कर रही है। विदेशों में चल रहे प्रयासों की एक बानगी यहां, यहां और यहां सहित इंटरनेट के कई ठिकानों पर देख सकते हैं। केवल सरकार के ही प्रयास नहीं, कई बड़े संस्थान भी अपने स्तर पर जी तोड़ प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में भारत सरकार टैक्स लगाकर योग को दबाने की जुगत लगा रही है। है ना मूर्खतापूर्ण, लोकसभा में एक विशेष कक्षा सभी सांसदों के लिए लगनी चाहिए – योग की…
… योग के पातंजलि पक्ष और अनुलोम विलोम पर अगली किसी पोस्ट में चर्चा करेंगे।