(रिंग, रिंग रिंगा भाग तीन)
मैं आजादी के बाद की बात कर रहा हूं। उससे पहले भले ही गांधीजी का जीवंत करिश्मा रहा होगा लेकिन इसके बाद कैश कराने की प्रवृत्ति के चलते सबकुछ गांधीमय हो चुका है। गांधी टोपी पहनी तो इसलिए कि गांधीजी ने कहा है और उतारकर रख दी तो इसलिए कि गांधीजी खुद नंगे सिर रहते थे। एक तरफ दलितों के उत्थान का विचार है तो दूसरी तरफ दलितों से बराबरी की शुद्ध भावना।
देश में एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बन चुकी है। इस कारण नहीं कि मनमोहन सिंह की सरकार ने नरेगा में रोजगार दिया और किसानों के कर्जे माफ किए। या अमरीका से संधि की। बल्कि युवा गांधी के अथक प्रयासों से बुढ़ाती कांग्रेस में नई जान आ गई। युवा नेता ने मंत्री बनने के बजाय संगठन में काम करने की सोची है। अब युवाओं के सामने एक ही लक्ष्य है, संगठन को मजबूत करना। परीक्षा दो और सफल हो जाओ। इससे कतार में आखिरी खड़े आदमी को भी लाभ होगा। यही तो गांधीजी चाहते थे।
ठीक है देश का नेतृत्व जवान लोग करेंगे। स्थानीय प्रतिनिधि से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर युवा ही देश की बागडोर को थामे रहेंगे। तो बूढ़े क्या करेंगे?
बूढे चिंतन करेंगे। आज की समस्याएं और गांधी। आज की समस्याओं पर चिंतन उन्हें मुख्यधारा का अहसास कराएगा और गांधी युवाओं की समुद्री आंधी से बचाए रखेगा। तो आइए चिंतन करते हैं आज की कुछ समस्याओं पर।
आतंकवाद– आप कहेंगे वाह क्या विषय चुना है। आतंकवाद की जड़ असंतोष में है। गांधीजी ने संतोषी प्रवृत्ति का पाठ पढ़ाया था। आतंकवादियों को संतोषी होना चाहिए और सुरक्षा बलों को अहिंसक। बाकी रघुपति राघव राजा राम तो हैं ही। कहीं गए थोड़े ना ही हैं। गांधी हमारे दिल में है और राम सर्वव्यापी हैं।
दूसरा मुद्दा बेरोजगारी– (कृपया आरक्षण शब्द का इस्तेमाल कर इसे राजनीतिक रूप देने की कोशिश न करें।) गांधी ने ग्राम स्वराज्य का मॉडल दिया था। हर गांव आत्मनिर्भर हो तो बेरोजगारी की समस्या स्वत: ही दूर हो जाएगी। इसके लिए केन्द्र की ओर मुंह ताकने की जरूरत नहीं है। संयम और ईमानदारी से ग्राम स्वराज्य भी बन जाएगा और रामराज्य भी आ जाएगा।
सांप्रदायिकता: गांधीजी ने कहा था कि सब मनुष्य समान हैं। बस अंग्रेजों को भगा दो। बाकी लोग अपने ही हैं। उनके लिए तो पाकिस्तान बनना भी एक सदमा था। गांधीजी ने सर्वजन हिताय की बात की थी। इसमें क्या हिन्दु, क्या मुसलमान, क्या सिक्ख और क्या इसाई। उनकी नजर में तो सब बराबर थे। हमें उनसे सीख लेनी चाहिए।
ऐसे हजारों मुद्दे हैं जिन पर वरिष्ठ नेता पद और लाभ का मोह छोड़कर चिंतन कर सकते हैं। अब देश की बागडोर युवा कंधों पर है तो उन्हें देखें और सराहें। जब सलाह की जरूरत होगी तो मांग ली जाएगी। तब तक वे चिंतन करें।
वास्तव में गांधी ऐसी चीज है जो हर जगह फिट होती है। किसी भी बिंदु पर चिंतन करो। घुमा फिराकर घुसा दो गांधी में। दलित उद्धारक की छवि से लेकर हजार रुपए के नोट तक गांधी एक जैसे हैं। समस्याओं के पैदा होने से लेकर उनके समाधान तक गांधी वैसे ही मुस्कुराते हुए मिलते हैं। चलिए अगले करिश्मे तक यही सही…
रिंग रिंग रिंगा है आभासी आशावाद। फिल्म ने पैदा किया। गरीबी दिखाई। घनघोर दिखाई, विद्रुपताओं की पराकाष्ठा दिखाई और अंत में भाग्य की जीत दिखाई। भारत भाग्य विधाता है और गांधी राष्ट्रपिता। स्वागत कीजिए पांचवी पीढ़ी के युवा नेता का।