वास्तव में ब्राह्मणों पर यह आक्षेप लगातार लगता रहा है और भविष्य में भी लगता रहेगा कि ब्राह्मणों ने दूसरी जातियों का शोषण किया।
यह शोषण क्या था, किस प्रकार शोषण किया जाता था, इस शोषण से ब्राह्मण को क्या लाभ मिलता था। पिछले दिनों एक कन्या से इसी मुद्दे पर लंबी बहस हो गई थी। कांन्वेंट में पढ़ी और बाद में दिल्ली में किसी अंतरराष्ट्रीय स्तर के संस्थान में दो साल प्रोफेशनल डिग्री चुकी उस कन्या के मन में ब्राह्मणों के प्रति इतनी नफरत थी कि मुझसे शोषण के बारे में बताते हुए इतनी भावुक हो गई कि उसका गला रुंध गया…
एकबारगी तो मैं भी मेरे द्वारा हजारों सालों से किए जा रहे शोषण को लेकर ग्लानि से भर उठा, लेकिन तभी ख्याल आया कि मैंने शोषण किया किसलिए, यानी कोई एक व्यक्ति, समूह अथवा संगठन किसी दूसरे व्यक्ति, संस्था अथवा टेरीटरी का शोषण करता है तो बदले में कुछ पाता है, और खोने वाला कुछ खोता है। ब्राह्मणों ने पांच हजार साल तक शोषण करके क्या पाया, उसके हिस्से क्या आया…
क्या ब्राह्मणों के घर सोने से लदे हुए होते हैं, क्या ब्राह्मण सौ सौ बेगारों को अपने नीचे काम करवाकर आराम की जिंदगी जीते हैं, क्या ब्राह्मण अय्याश होते हैं, क्या ब्राह्मणों ने दूसरों के आगे बढ़ने के रास्ते बंद किए.., अगर किए तो उन रास्तों पर आगे बढ़कर ब्राह्मणों को क्या मिला??
मैंने कन्या से पूछ लिया कि ब्राह्मणों को शोषण के बदले क्या मिला… अब कन्या बिल्कुल रोने की कगार पर अचकचा गई, कई देर तक कई कुतर्क देने के बाद उसने बताया कि जिस अंतरराष्ट्रीय स्तर के संस्थान में वह पढ़ रही थी, वहां ब्राह्मण कन्याएं पहले से इतनी अधिक ट्रेंड थीं, उन्हें इतनी अधिक जानकारियां थी, उन्हें इतने अधिक मामलों में दक्षता थी कि वह दलित कन्या खुद को वहां गंवार महसूस करने लगी…
अब समझ में आया कि ब्राह्मणों ने क्या हासिल किया है??
ब्राह्मणों के घर पैदा होकर गलीज रह गए निकृष्ट लोगों को छोड़ दिया जाए, जो मुर्दे उठाने की सरकारी नौकरी में आवेदन करने तक से नहीं चूकते, शेष सभी ब्राह्मणों में एक खासियत आपको हमेशा मिलेगी,
वे मिनिमलिस्ट होते हैं, इसका हिंदी अनुवाद ठीक ठीक किस प्रकार होगा कह नहीं सकता, लेकिन अपने शब्दों में बताने का प्रयास करूं तो श्रेष्ठ ब्राह्मण कम से कम संसाधनों का उपयोग करते हुए खुद को किसी भी विषय में अधिक से अधिक दक्ष बनाने का प्रयास करते हैं, बजाय संसाधनों पर निर्भर रहने के वे खुद को समाज, देश और व्यवस्था का शक्तिशाली टूल बना लेते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वे कहीं भी रहे, किसी भी स्थिति में रहे हमेशा श्रेष्ठ ही रहेंगे, क्योंकि उनके कार्य और दक्षता की लगातार मांग बनी रहेगी। जो अधिक दक्ष ब्राह्मण हैं उनमें यह प्रवृत्ति अधिक और जो कम दक्ष ब्राह्मण हैं उनमें कुछ भटकाव होगा, वे संसाधनों के कुछ हद तक पीछे भागते मिलेंगे।
इस बहस से कुछ समय पहले ही मैं जयपुर में एक चिकित्सक के घर ठहरा हुआ था। दंपत्ति दोनों चिकित्सक हैं और करीब तीन से पांच लाख रुपए महीने का कमाते हैं। उन दोनों के बीच एक कार है, पत्नी पति को उसकी अस्पताल छोड़ते हुए अपनी अस्पताल जाती है और पति या तो पैदल लौट आता है या किसी साधन से लौट आता है। घर में सामान उतना ही है जितना जीने के लिए जरूरी है। अधिकांश तनख्वाह बैंक में जमा होती है, उन दोनों को इस बात की अधिक परवाह है कि मरीज का ईलाज कैसे हो, बजाय कि सुविधा के संसाधन कैसे जुटाए जाएं। दोनों के पास मोबाइल है, लेकिन केवल फोन सुनने और जवाब देने के लिए, लेपटॉप है, रविवार के दिन अथवा कुछ देर खाली हुए समय में यूट्यूब के गाने सुनने के लिए, घी खाना बंद कर चुके हैं, सुबह नाश्ता करके जाते हैं, अपराह्न लौटने पर खाना खाते हैं, रात को कुछ खाया तो ठीक, न खाया तो ठीक। घर की सबसे महत्वपूर्ण कमोडिटी दोनों के लिए पुस्तके हैं, हर विषय की…
इनमें से एक ब्राह्मण है और दूसरा बणिया… कर्म से दोनों ब्राह्मण हैं। अपने क्षेत्र के श्रेष्ठ दक्ष कर्मी। समाज, देश, व्यवस्था को इनकी जरूरत है। ऐसे में इनकी न्यूनतम जरूरतें इनके आस पास के लोग सहर्ष पूरी करते हैं। चाहे किसी सरकारी विभाग में कोई का हो, लाइन में लगकर बिजली का बिल जमा कराना हो या कोई भी ऐसा काम जो इनका समय बर्बाद करता हो, इनके लिए सहायक लोग तुरंत कर देते हैं।
वास्तव में इसे ही शोषण बताया जाता है, जब तक इस स्थिति को आंखों से नहीं देख लिया जाए, ऐसा माना जाएगा कि चिकित्सक दंपत्ति कुछ लोगों को अपने यहां दास बनाकर रखे हुए हैं और उनका शोषण कर रहे हैं, जबकि हकीकत यह है कि उन दोनों के पास खोने के लिए कुछ है ही नहीं। यहां तक कि उन लोगों का सीए ही यह तय करता है कि कितनी कमाई हुई है और कितना टैक्स भरना है, वे इस मामले में भी निश्चिंत हैं।
ऐसे दक्ष लोगों को दूसरी सभी उलझनों से मुक्त रखने के लिए समाज भी अपनी ओर से प्रयास करता है, क्योंकि उनकी दक्षता की समाज में जरूरत है। दूसरी तरफ ऐसे लोग भी अन्य विषयों से खुद को तोड़ते हुए मुक्त हुए तेजी से गति करते हैं। एक सीमा के बाद दक्ष व्यक्ति सामान्य दुनियावी समस्याओं से ऊपर उठ चुका होता है।
यहीं पर दिखाई देता है कि इन दक्ष लोगों और अन्य सामान्य लोगों में भेद है। यहां स्पष्ट कर दूं कि मेरे इस ब्राह्मणत्व का अर्थ कर्म से है, न कि पैदा हुई जाति से…
इसीलिए जहां कहीं ब्राह्मण का विचार आता है, तो हमें दिखाई देता है कि धोती और जनेऊ धारण किए एक व्यक्ति जिसके हाथ में पुस्तक है। यह ब्राह्मण बताता है कि सही क्या है और गलत क्या है, क्योंकि उसने इसी काम में दक्षता हासिल की है।
अब देश को तोड़ने वालों ने पश्चिमी मॉडल पर श्रेष्ठिजन और दलितों को तोड़ने का प्रयास शुरू किया तो उन्होंने यहां भी पश्चिमी मॉडल लागू करने का प्रयास किया। पश्चिम में जहां श्रेष्ठ लोग संसाधनों पर पूर्ण अधिकार कर, दलितों से गुलामी करवाते हैं, वहीं भारत में सदियों से यह अभ्यास रहा है कि दक्ष लोगों को न्यूनतम संसाधन उपलब्ध कराकर उनसे अधिकतम वसूला जाए। परिणाम यह हुआ कि यहां दलित के नाम पर जब पश्चिम ने भारत में अपना काम शुरू किया तो पहले सामाजिक और बाद में राजनीति विभेद पैदा करने के प्रोसेस में बुरी तरह से ट्रोल होते जो रहे हैं। दक्ष लोगों के पास जुड़े दलित उन बातों को समझ ही नहीं पा रहे हैं जो पश्चिम उन्हें समझाने का प्रयास कर रहा है।
दलितों के नाम पर सबसे अधिक स्यापा वे लोग मचा रहे हैं जो राजनीतिक और सामाजिक रूप से निचली जातियों से आते हैं और भारत के मुक्त आकाश में उन्हें बढ़ने का अवसर मिला, इसके बावजूद महत्वकांक्षा समाप्त नहीं हुई। यहां केवल महत्वकांक्षा कहना भी गलत होगा, वे दबाव समूहों के सामने डर से झुक गए, समूह से निकाल दिए जाने के भय से दब गए, पीयर प्रेशर को झेल नहीं पाए। बाकी काम फैशन ने पूरा किया, ब्राह्मणों को गाली देना फैशन का पर्याय है।
गालियां खा रहे ब्राह्मणों में दो प्रकार के लोग हैं। दक्ष को इन गालियों की परवाह नहीं है और कम दक्ष या दक्षताविहीन ब्राह्मण श्रेष्ठता का लाभ भी नहीं उठा पा रहे हैं और गालियां भी पड़ रही हैं, चूंकि अधिक दक्ष नहीं हैं सो माकूल जवाब भी नहीं दे पा रहे।
इस देश की श्रेष्ठता को बचाए रखने की जिम्मेदारी हर जाति के श्रेष्ठ दक्ष ब्राह्मणों की ही है, वास्तव में उन्हें लेकर अधिक चिंता करने की भी जरूरत नहीं है, क्योंकि वे लोग शांति के साथ अपना काम किए जा रहे हैं। पहले नेहरू थे, तब भी काम कर रहे थे, अब मोदीजी हैं, तब भी काम किए जा रहे हैं। ये देश यों ही चलेगा…
हर जाति के मिनिमलिस्ट श्रेष्ठ दक्ष ब्राह्मणों के तेज से…