कल अजीत फाउण्डेशन की लाइब्रेरी गया था। वहां जयप्रकाश नारायण की जेल डायरी मिली। किताबों को खांमखां उलटने पलटने की प्रवृत्ति ने यहां भी जोर मारा। डायरी का पहला ड्राफ्ट पढ़ा तो लगा कि जैसे आज की ही बात की जा रही है। आज से 36 साल पहले कमोबेश यही परिस्थितियां और इन्हीं मांगों के साथ बिहार में शुरू हुआ छात्र आंदोलन जेपी के नेतृत्व में इतना उग्र हो गया कि केन्द्र सरकार के गिरने की नौबत आ गई। आज फिर उन्हीं मुद्दों पर एक बार फिर केन्द्र सरकार घिरी हुई है। हालांकि इस बार कोई जननेता नहीं बन पा रहा है और न ही फिलहाल आपातकाल लागू करने की स्थिति बनी है, लेकिन आंदोलन के दमन का कांग्रेस का वही रवैया है। मैं यहां डायरी के कुछ अंश दे रहा हूं।
वर्ष 1975 में राजपाल एण्ड संस द्वारा प्रकाशित इस डायरी के अंश साभार…
जेल डायरी
21 जुलाई 1975
“लोकतंत्र की प्रक्रिया में मैं पूरी तरह जनता को निरन्तर साथ लेकर चलने का यत्न करता रहा हूं। इसके दो तरीके हैं। एक, हमें किसी ऐसे तंत्र की व्यवस्था करनी चाहिए जिसके माध्यम से उम्मीदवारों को चुनते समय हम जनता से परामर्श प्राप्त कर सकें। दूसरे, पहले तरीकों की भांति तंत्र की व्यवस्था करके जिसके माध्यम से जनता अपने प्रतिनिधियों पर निगरानी रख सके और उनके ईमानदारी के साथ काम करने की मांग कर सके। यही वे दो मूल तत्व थे जो मैं बिहार के इस संघर्षपूर्ण आंदोलन से प्राप्त करना चाहता था और आज यहां (वे चण्डीगढ़ के एक अस्पताल में कैद थे) मैं लोकतंत्र के हनन के साथ अपनी कल्पना का हनन होते देख रहा हूं।”
“प्रधानमंत्री (पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी) ने लोकतंत्र की हत्या करने और अपने तानाशाही शासन के शिकंजे में कसने के लिए क्या कदम उठाए हैं, उन्हें फिर से गिनाने की आवश्यकता नहीं है। यही वही प्रधानमंत्री है जो बार बार हम पर लोकतंत्र को तबाह करने और फासिस्टवाद स्थापित करने का आरोप लगाती रही हैं और हम देखते हैं कि वही प्रधानमंत्री लोकतंत्र को तबाह कर रही है (देश में आपातकाल लागू हो चुका था) और उसी लोकतंत्र के नाम पर स्वयं फासिस्टवाद स्थापित कर रही हैं। अपने हाथों से लोकतंत्र का गला घोंटकर ओर लोकतंत्र की लाश को नीचे गहरी कब्र में दफनाकर वह लोकतंत्र की रक्षा कर रही है।”
6 अगस्त 1975
जिसकी संभावना (आशंका) थी वही हुआ। उच्च न्यायालय द्वारा संभवत: विपरीत निर्णय लिए जाने के विरुद्ध श्रीमती गांधी ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन कराकर अपने आपको सुरक्षित कर लिया है। भारी संवैधानिक संशोधन होने की संभावना है। यह सब-कुछ स्वयं नियुक्त देश उद्धारक के लिए तानाशाही पूरा करने के लिए है। और यह कहा जा सकता है कि यह सब कुछ संविधान के अनुरूप किया जा रहा है। हिटलर ने भी अपनी निर्णायक तानाशाही को कायम करने के लिए लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाया था। क्या भारत को भी नरक में इसी तरह जाना है और फिर अंधकार से निकलना होगा? अब यह निश्चित दिखाई देता है किंतु भारत को इसके लिए जो मूल्य चुकाना होगा, वह बहुत महंगा होगा। ईश्वर इसकी सहायता करे।
7 अगस्त 1975
सम्पूर्ण क्रांति के बजाय हम विपरीत क्रांति के काले बादलों को देखते हैं। चारों ओर जिन उल्लू और गीदड़ों के चिल्लाने और गुर्राने की आवाजें हम सुनते हैं, उनके लिए यह दावत का दिन है। चाहे रात कितनी भी गहरी क्यों न हो, सुबह अवश्य होगी।
डायरी के बाकी हिस्से आगामी पोस्टों में देने की कोशिश करूंगा…
सर्च रिजल्ट
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परिणाम – देश को इससे मतलब नहीं है कि विदेशी बैंकों में पड़ा काला धन किसका है, या कांग्रेस की इसमें क्या भूमिका है। इसके बजाय काले धन को देश में वापस लाने पर सभी एक राय है। दूसरी बात केवल काला धन वापस देश में लाना ही काफी नहीं होगा, भ्रष्टाचार खत्म करने की मंशा आम भारतीय और मीडिया में अधिक बलवती है।
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