रुत आई रे पपैय्या थारै बोलण री रुत आई रे…
महज दस दिन में सर्द हवाएं जैसे गायब हो गई हैं। दिन की तल्ख धूप के बाद रेत के धोरों से ठण्डी होकर आई हवाएं माहौल में मद घोल देती हैं। ऐसी ही शीतल बयार और शांत वातावरण के बीच चंग की आवाज दूर तक सुनाई देती है और बोल ऐसे कि कदम खुद रुक जाएं। चंग के साथ छमछमों की आवाज थिरकने को मजबूर कर देते हैं। इस बीच बीकानेर में इन दिनों चल रही है होली के धमाल की तैयारी। एक ओर होली की छेड़छाड़ की तैयारियां चल रही हैं वहीं रम्मतों और स्वांग ने शहर की रंगत ही बदलकर रख दी है। दिन में मानों शहर सोया रहता है और रात ढलते ही गली मोहल्ले जीवंत हो उठते हैं।
पहले बात रम्मतों की
जहां तक मेरी जानकारी है रम्मत का रिवाज केवल बीकानेर में ही है। यहां होली से करीब सात दिन पहले रम्मतें शुरू हो जाती है। इनमें प्रमुख हैं हड़ाऊ मैरी, फक्कड़ दाता और अमर सिंह राठौड़ की रम्मत। रम्मत वास्तव में एक प्रकार का लोकनाट्य है। इसमें मोहल्ले के बीचों बीच स्थित पाटे जिनका उल्लेख मैं पहले कर चुका हूं, पर एक नाटक का मंचन किया जाता है। इसमें कलाकार बाहर से नहीं बुलाए जाते बल्कि गली मोहल्लों के ही कलाकार पाटे पर पहुंचते हैं और पूरी रात नाटक का मंचन चलता है। लेकिन पाटे पर चढ़ने की राह इतनी आसान भी नहीं होती। पहले सर्वसम्मति से कलाकार तय होते हैं। हफ्तों और महीनों पहले इसका अभ्यास शुरू हो जाता है। और जब कलाकार मंच पर होते हैं तो एक एक पेज तक के डॉयलॉग एक सांस में बोल जाते हैं। ऐसा बहुत कम ही हुआ है कि कोई कलाकार स्टेज पर अपना डॉयलॉग भूला हो।
हड़ाऊ मैरी की रम्मत जहां प्रेम कहानी है वहीं अमर सिंह राठौड़ की रम्मत वीर रस से ओतप्रोत होती है। इन नाटकों को लिखा भी स्थानीय लोगों ने ही है। रम्मत के दौरान ही ख्याल भी गाए जाते हैं। ख्याल एक प्रकार से तत्तकालीन सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्थ पर कटाक्ष होते हैं। स्थानीय नेता और जनप्रतिनिधि भी कई बार इन समारोहों में मौजूद रहते हैं और ख्याल के दौरान हुए कटाक्ष को हंसते हुए झेलते हैं। उनके पास सिवाय बड़े बूढ़ों के पैर छूने के और कोई ईलाज नहीं होता।
फागणिया फुटबॉल और स्वांग
यह भी बीकानेर की अनूठी परम्परा है। यहां के पुष्करणा स्टेडियम में होली से पहले एक दिन फागणिया फुटबॉल भी खेली जाएगी। जिसमें बराक ओबामा से ओबामा बिन लादेन तक सभी शिरकत करेंगे। अस्पताल का रोगी और कुंवारी कन्या के पीछे भागता साधू भी नजर आ जाएगा। हां जी यह है फागणिया फुटबॉल और जिन लोगों को आप देखेंगे वे होंगे स्वांग। यानि बहूरूपिए। बीकानेर के गली मोहल्लों में ये स्वांग अभी दे दिखाई देने लगे हैं। कई बार तो अजीब स्थिति तब होती है जब अपने काम से जा रहे आदमी को अचानक पीछे से एक युवती आकर दबोच लेती है। आदमी सचेत हुआ तो उसे पता चल जाएगा कि यह युवती का स्वांग किए लड़का है तो वापस सहज हो जाएगा वरना बुरी तरह झेंपेगा। कई आदमी तो इतना अच्छा स्वांग रचाते हैं कि भेद करना मुश्किल हो जाता है कि आदमी है कि औरत। अच्छी तरह साफ की गई दाड़ी और गहनों से लदे आदमी की मर्दानगी वेषभूषा में पूरी तरह छिप जाती है।
होली के गीतों और गेवर पर बात अगली पोस्ट में ….