शहर से गांव और पश्चिम से भारत की ओर
मार्केटिंग के लोग अपने क्षेत्र के सर्वाधिक जुमले से हमेशा बचने की कोशिश करते हैं। और यह जुमला है कि मार्केट सेचुरेट हो चुका है। यानि वे अपने मालिकों को बताते हैं कि आपका ब्रांडेड बासी माल यहां और नहीं बिक सकता। लेकिन शीर्ष प्रबंधन कभी यह बात सुनना नहीं चाहता, तो पलटवार के लिए एक और सवाल होता है कि जब और माल नहीं बिक सकता तो लाखों रूपए और इंसेटिव डकारने वाले भारी भरकम स्टाफ की क्या जरूरत है।
मार्केटिंग प्रोफेशनल्स को सवाल और सवाल का जवाब दोनों पता है सो वे इस जुमले से पर्याप्त दूरी बनाए रखते हैं और विकल्प के रूप में दूसरा पैंतरा फेंकते हैं वह है नया बाजार। यानि बड़े बाजार से ध्यान हटाकर छोटे बाजारों का रुख किया जाए। अब ब्रांडेड एसी और एडीडास के शो रूम तहसील स्तर पर खुलने लगते हैं। फसल से आया पैसा महंगे ब्रांडों की भेंट चढ़ने लगता है। गांव करै ज्यां गैली करे। यानि एक जैसा करता है वैसा ही दूसरा करता है और अंत में पूरा गांव उसमें लग जाता है। इस तरह मार्केटिंग के लोग शहर से गांव की ओर भागते हैं। नया बाजार ब्रांडेड बासी माल को और कुछ दिन बेच लेता है। मिलें बंद करने का संकट और स्टाफ को हटाने का काम कुछ दिन के लिए टल जाता है।
यह है सामान्य ज्ञान- अब मुझे याद आ रहा है स्लमडॉग का रिंग रिंग रिंगा। यानि भारतीय कन्याओं को बचाने के लिए स्वयं अमरीका ही आ खड़े होने की कोशिश करेगा। भले ही उसकी हालत अभी कटोरा लेकर हमारे दरवाजे पर आने की है लेकिन आएगा मसीहा बनकर।
पश्चिम की मीडिया ने फर्श से अर्श पर पहुंचे लोगों और उनके संबंधियों के साथ पश्चिम में इस तरह के स्टिंग ऑपरेशन्स किए होंगे। लेकिन इस बार भारत आकर इस तरह का स्टिंग ऑपरेशन किया और एक भरे पूरे मुल्क की इज्जत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह उछाल दिया मानो सोमालिया के गृह युद्ध के बाद का दृश्य भारत में बना हुआ हो। कमाल तो तब होगा जब बिके हुए नेतागण देश की समस्याओं का समाधान भी पश्चिम के विशेषज्ञों से कराने लगेंगे। तब उन लोगों की पंचायती बढ़ेगी। और तभी हमें महसूस होगी असली आर्थिक और राजनैतिक परतंत्रता।