होली से पहले सोचा था कि इस बार खूब लिखूंगा होली के बारे में लेकिन फाग की तरंग ऐसी चढ़ी कि लिखना ही भूल गया। आज होली की हुडदंग खत्म हुई तो दो बातें लिखनी जरूरी समझी। पहली इलोजी का रूदन और दूसरी रम्मत या तमाशा।
होलिका दहन के बारे में दोबारा बताने के बजाय मैं बताना चाहूंगा इलोजी के प्रेम के बारे में। साधिका होली का विवाह इलोजी से हो चुका था लेकिन गौना नहीं हुआ था। भक्त प्रहलाद को मारने की गरज से होलिका ने अपने नियमित अग्निस्नान के दौरान प्रहलाद को साथ लिया लेकिन संतों और साधुओं के नग्न नृत्य ने होलिका का ध्यान बंटा दिया और वे जलकर खाक हो गई। होलिका के राख हो जाने के बाद र्इलोजी घटनास्थल पर पहुंचते हैं और शरीर के राख लपेटकर रूदन करते हैं। बाद में इसी होली की राख से कुंवारी कन्याएं गौरी पूजन करती हैं। आखिर में गौरी और ईसर का मिलन होता है। ऐसा माना जाता है कि गौरी और ईसर पूर्व जन्म में होलिका और ईलोजी थे। बीकानेर में एक मोहल्ला है जिसका नाम है साले की होली। यहां बीकानेर की सबसे बड़ा होलिका दहन होता है। इसकी आग की लपटें करीब अस्सी फीट ऊपर तक जाती हैं। शहर के करीब हर हिस्से के लोग इस होली को देखने आते हैं। इसके अलावा इस होली की एक खास बात और है वह यह है कि इस होलिका के दहन को ईलोजी सामने बैठकर देखते हैं। यहां के मोहतों के चौक से ईलोजी को पूरे ठाठ बाट से लाया जाता है। ईलोजी के पहुंचने के बाद ही होलिका दहन शुरू होता है।
अब बात रम्मतों की। मेरी रम्मतों वाली पोस्ट पढ़ने के बाद जालौर के श्रीमधुसूदनजी व्यास का फोन आया मेरे पास। उन्होंने बताया कि बीकानेर और जैसलमेर में जिस लोकनाट्य को रम्मत कहा जाता है राजस्थान के अन्य शहरों में उसी रम्मत को तमाशा कहा जाता है। राज्य के अन्य हिस्सों में होली के दूसरे दिन से हाडी रानी, अमरसिंह राठौड़ और फक्कड़दाता की रम्मतें शुरु हो जाती हैं। जबकि बीकानेर में होली से सात दिन पहले ये लोकनाट्य शुरू होते हैं और होलिका दहन से एक दिन पहले तक चलते हैं। धुलण्डी के दूसरे दिन तो सबकुछ शांत हो जाता है। जीवन फिर से पहले जैसा हो जाता है। हां, ठीक अगले दिन कुछ लोग राम राम के लिए निकलते हैं। बच्चों को पगेलागणा के बदले आशीर्वाद और पैसे मिलते हैं और बड़ों को आशीर्वाद और मिठाई।
कल पोस्ट करूंगा होली से संबंधित कुछ फोटो…