राजतंत्र बनाम लोकतंत्र

vipaksh ram mandir

जिस देश में अभिव्‍यक्ति की आजादी है, उस देश में राजतंत्र की तारीफ करना एक बौद्धिक अपराध बना दिया गया है। द्वितीय विश्‍व युद्ध के बाद तेजी से दुनिया के अधिकांश देशों से राजतंत्र तेजी से खत्‍म हुआ और लोकतंत्र आया। इस लोकतंत्र का अधिकांश लाभ किसने लिया?

जितने सिर होंगे, उतने ही शक्तिशाली होंगे, इन सिरों को गिनने और उन्‍हें अपने पक्ष में करने की जिम्‍मेदारी शुरू से ही बाहुबलियों और किताबत संप्रदायों की ही रही है।

भारत में आए लोकतंत्र ने छोटे छोटे राजाओं से मिलकर बनने वाले गणतंत्र को पूरी तरह खत्‍म कर दिया, लेकिन लोकतंत्र के इस जामे के भीतर पुराना राजतंत्र छिपे रूप में ही शासन करता रहा है।

यही कारण है कि जिसे एक बार राजा मान लिया गया, उस परिवार की चौथी पीढ़ी के समक्ष आज भी सिर नवाने वालों की कमी नहीं है।

यही कारण है कि अधिकांश मोदी विरोधी घृणा के साथ मोदीजी को चायवाला बोलते हैं।

एक तरफ यह ढोंग कि लोकतंत्र में राजा लोक में से चुनकर आएगा और दूसरी तरफ चुनकर आए सत्‍ताधारी को चायवाला कहकर उपहास करना, यह कैसा दोगलापन है?

अगर यह माना जाए कि राज हमेशा राजतंत्र ही करेगा, राजा बदलते रहेंगे, चाहे उससे लोकतंत्र नाम दिया जाए या मोनार्की। निर्णय लेने वाले हमेशा कुछ थोड़े से लोग ही रहेंगे, तो यह भी उतना ही सत्‍य है कि आजादी के बाद अर्से तक राजा वामपंथ और किताबत संप्रदायों के समर्थकों के रूप में राज करते रहे।

अब दक्षिणपंथ के उदय के साथ परिपाटियां बदल रही हैं, अब बात होगी तो अतीत के गौरव को लेकर आगे बढ़ने और परंपराओं के साथ खुद को स्‍थापित करने की।

बहुत समय हुआ कि खुद को हीन समझकर निकृष्‍ट लोगों की चाकरी करते रहे और आत्‍मसम्‍मान के बगैर आ‍ज्ञाकारिता में उलझे रहे, अब पुनरुत्थान का समय है, देश की चेतना मुखर हो रही है, हीनता का बोध समाप्‍त हो रहा है।

रीढ़विहीन नपुंसकों के लिए यह कष्‍टदायक हो सकता है, लेकिन अपने बूते पर खुद को और देश को आगे बढ़ाने का सपना पाले लोगों के लिए यही सबसे अनुकूल वातावरण है।