मुझे इस टॉपिफ पर लिखने से पहले काफी सोचना पडा। हर बार लगता कि किसी एक विषय की ओर झुक गया तो दूसरा विषय खुद को उपेक्षित महसूस करेगा। बहुत सोचने के बाद लिखने का मानस बना चुका हूं तो लिखूंगा ही
प्रेम और रसायन का आपस में संबंध में यह एक सामान्य जानकारी है। जो लोग विज्ञान में रुचि रखते हैं उन्हें यह जानकारी है कि दो लोग जब प्यार करते हैं तो दिमाग में दो प्रकार के रसायनों की भरमार होती है। करीब आते वक्त ऑक्सीटोसिन और दूर जाते वक्त डोपामिन। इस तरह तो विज्ञान की पुस्तकों में नहीं लिखा है। पुस्तक में तो लिखा है कि रोलर कोस्टर राइट के दौरान ऑक्सीटोसिन लडने की ताकत देता है और इसके स्त्राव के ठीक बाद डोमामिन का सीक्रेशन होता है। डोपामिन के साए में दो प्रेमियों का प्यार पलता है। यह तो हुई विज्ञान की बात।
तो मैं क्या कहना चाह रहा हूं। कुछ दिन पहले वैलेन्टाइन डे आकर गया। यानि आया और चला गया। मैं रुटीन के काम कर रहा था। मेरी पत्नी रूटीन के काम कर रही थी और बाकी मेरे जान-पहचान के लोग भी अपना रूटीन का काम कर रहे थे। संत वेलेन्टाइन की इससे अधिक तौहीन और क्या हो सकती है कि हमने अपना काम काज छोडकर उसके पीछे नहीं भागे। बसंती बयार में सर्दी जुकाम का डर था और बाजार में निकलने पर खर्च का। कुल मिलाकर हमने दोनो जेब और दिमाग दोनों के स्त्राव रोक लिए। इससे क्या….
अब जब मेरे स्त्राव रुके तो ध्यान आया कि प्यार पर सोचा जाए। विद्वजनों मैने कहीं पढा कि आदमी तीन जगह पर सर्वाधिक मूर्खताएं करता है। गोद में बैठे बच्चे के साथ, गोद में रखे शीशे के साथ और गोद में पसरी प्रेमिका के साथ। तीनों अवस्थाओं में आदमी की बुद्धि कुंद हो जाती है। उस समय वह जो हरकतें करता है अगर उनकी वीडियो रिकार्डिंग कराकर उसे वापस दिखाई जाए तो शायद वह जमीन में गढ जाए।
शेक्सपीयर ने भी इसे समझ लिया था। तभी उसने कहा कि प्रेमी मीठी बेवकूफिया करते हैं और उनके अलावा सभी लोगों को ये बेवकूफियां दिखती है।
तो सज्जनों मैंने और आप जैसे बहुत से लोगों ने बुद्धिमानी से पैसे और रसायन बचाए लेकिन जीवन का रस भी इसी के साथ लुप्त हो गया।
अब सोचता हूं कि काश स्त्राव को नहीं रोकता और खुद ही क्यों न बह जाता उसके साथ ही
रस तो बना रहता चाहे रासायनिक ही क्यों न हो…