ये विजय दिवस क्‍या ?

आज विजय दिवस है। ये क्‍या है… आओ मंथन करें

आजकल हर दिन का दिवस बना दिया है मीडिया वालों ने। कभी जच्‍चा दिवस, कभी बच्‍चा दिवस, कभी पुराने मित्र दिवस  तो कभी नए मित्र दिवस, कभी पिता दिवस तो कभी माता दिवस। कुल मिलाकर साल के 365 दिन अपने आप में विशिष्‍ट हैं। फिर ये विजय दिवस क्‍या है।
ये दशहरे के आस-पास नहीं आता क्‍या, या उसी दिन आता है। अभी सर्दियों में इसकी बात क्‍यों हो रही है। इसमें तो शस्‍त्र पूजा होती होगी। या फिर करगिल युद्ध जीता उसकी याद में मनाया जाता है।
16 दिसम्‍बर 1971 की याद में सेना द्वारा जाने वाले विजय दिवस के संदर्भ में एक परिचर्चा करने का काम मुझे सौंपा गया। बीस से अधिक बुद्धिजीवियों (बुद्धि बेचकर खाने वालों, श्रमजीवी की तर्ज पर) से बात की। अधिकांश लोग अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञ थे। उनके जवाब कुछ ऐसे ही थे। एक ने तो यहां तक कहा कि जब तक इस सवाल को कंपीटीशन परीक्षाओं में शामिल नहीं किया जाएगा तब तक लोगों को ध्‍यान नहीं आएगा।
करीब तीन घण्‍टे की मशक्‍कत के बाद मैं झल्‍ला गया और अपनी तरफ से कुछ लोगों को विजय दिवस के बारे में जानकारी देकर उनके ‘विचार’ जाने। संदर्भ पता चलने के बाद कुछ ने नेताओं की भाषा में इतना गोलमोल बोला कि फोन रखने के बाद कई देर तक मुझे सोचना पड़ा कि बंदे ने वास्‍तव में जवाब दिया क्‍या है। कुछ ने कहा यार कुछ भी लिख देना। तूं लिखेगा तो गलत थोड़े ही लिखेगा।
मैंने सोचा कि किसी पुराने सैनिक को ये बातें बता देता हूं वो पहले वाले बीस और बाद वाले चार लोगों को अपनी थ्री नॉट थ्री से गोली मार आएगा। दुख से अधिक क्षोभ हुआ कि जिस जीत को मैं आल्‍हादकारी मान रहा था उसकी याद भी लोगों की जेहन से धुमिल होती जा रही है।
खैर कुछ जानकारी जो मुझे है इस बारे में बता देना चाहूंगा।
16 दिसम्‍बर 1971 में भारतीय सेना ने पाकिस्‍तानी को ढाका में उसकी 93000 सैनिकों के साथ झुकने पर मजबूर कर दिया और संधि पर हस्‍ताक्षर कराए। एक अलग देश बना बांग्‍लादेश। यह ऐतिहासिक जीत थी। इसी की याद में सेना द्वारा विजय दिवस मनाया जाता है। आज इस जीत की महज 37वीं वर्षगांठ है और बहुत से युवा इस जीत को भुला चुके हैं। जिन वीरों मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्‍व न्‍यौछावर किया उन्‍हें भूलना खुद की जड़ें भुला देने जैसा है।
मेरी ओर से देश के वीर शहीदों और आज देश की रक्षा कर रहे जवानों को गर्वीला सलाम।