अपनी बात शुरू करने से पहले मैं दो बिंदुओं का जिक्र करना चाहूंगा। इसमें पहली घटना है तो दूसरी व्यवस्था। दोनों ने मिलकर जो व्यापक परिवर्तन हिन्दी लेखन और पठन में किए हैं। उसी पर यह पोस्ट रची गई है। बहाना है किशोर की पुस्तक चौराहे पर सीढि़यां…
करीब चार साल पहले की बात है…
उन दिनों ब्लॉगिंग का बुखार चरम पर था। आज की तरह कोई ऐसी सोशल नेटवर्किंग साइट भी नहीं थी, जो ब्लॉग पोस्टों का मसाला खा जाए। छोटी बात लिखनी हो या बड़ी ब्लॉग ही सर्वसुलभ माध्यम था। जब में अपने ज्योतिष के लेख धुंआधार स्पीड में लिख रहा था, उन्हीं दिनों में मैंने एक लेख रवि रतलामी का पढ़ा। इसमें उन्होंने बताया कि पश्चिम में यह काम शुरू हो चुका है और अब हिन्दी में भी ब्लॉग से प्रिंट तक किताबें आने का सिलसिला शुरू हो चुका है किसी हिन्दी चिट्ठे की विश्व की पहली छपी किताब में उन्होंने अपनी दो पुस्तकों रवि रतलामी के व्यंग्य और रवि रतलामी की गजलें और व्यंजल के लिंक दिए थे। इन दोनों किताबों के लिंक ऊपर दिए गए पोस्ट के लिंक पर मिल जाएंगे।
अभी कुछ समय पहले…
कैश ऑन डिलीवरी का सिस्टम शुरू हुआ। यानी आप किताब ऑर्डर कर दीजिए और घर बैठे छूट के ऑफर्स के साथ आपको किताब मिल जाए तो पेमेंट भी कर दीजिए। ऑनलाइन ठगी की अनंत संभावनाओं को धता बताते हुए पहले फ्लिपकार्ट और बाद में दूसरी कई वेबसाइट ने इस तरह की सुविधा शुरू कर दी। मेरे जैसे आलसी लोगों के लिए यह शानदार मौका था।
ब्लॉग से प्रिंट की किताब आने की घटना सुनकर (पढ़कर) उत्साह जगा और कुछ निराशा भी हुई। उत्साह तो इस बात का कि मैं जो पहले से सोच रहा था, वह सही दिशा थी। निराशा ईर्ष्या की वजह से। सबसे पहली किताब मैं अपनी छापना चाहता था, लेकिन यह सपना किसी और का हो चुका था…
खैर, अच्छी शुरूआत हुई। इसके बाद समीरलाल समीर उर्फ उड़नतश्तरीजी की कविताओं की पुस्तक छपकर आई। मैं फिर पिछड़ गया था। इसके बाद एक लंबा अंतराल आ गया। मैं खुद भी नेट पर कम बैठ रहा था, लेकिन कोई सूचना तो नहीं ही मिली। अब पहली किताब जारी होने के चार साल बाद किशोर की पुस्तक चौराहे पर सीढि़यां आई है। संजय व्यासजी की इस ब्लॉग पोस्ट में उसके बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।
आखिर (एक बार फिर आलसी पीछे रह गया था…) मैंने किशोर की पुस्तक 25 प्रतिशत डिस्काउंट के साथ मंगवा ही ली। अब किताब के बारे में मैं इतनी अच्छी समीक्षा नहीं कर पाउंगा, जितनी संजय व्यासजी ने की है, लेकिन इतना कह सकता हूं अगर आप ब्लॉग लिखते हैं और पढ़ने का शौक रखते हैं, तो आप यह किताब जरूर मंगवाइएगा और पढि़एगा। आने वाले दिनों में ऐसी और कई अच्छी और महत्वपूर्ण पुस्तकें ब्लॉग अथवा अंतरजाल के माध्यमों में अच्छी खासी स्वीकृति पाने के बाद बाजार में आ सकती हैं।
किसी अच्छे से अच्छे लेखक की एक पुस्तक भी एक या दो हजार कॉपी छपती है। कोई पुस्तक लोकप्रिय हो जाए तो उसकी आठ से दस हजार कॉपियां बाजार में आती हैं। ब्लॉग पर एक लेखक के लेखों को एक या दो लाख पाठक तक पढ़ लेते हैं। मैं ठीक ठाक लेखक की बात कर रहा हूं। बहुत अच्छे लेखक को तो शायद हर साल इतने लेखक मिल जाते हैं। ऐसे में अच्छे लेखकों के अच्छे लेख संकलन के रूप में अथवा पूरी पुस्तक एक नए रूप में प्रिंट में आती है तो उसे समाज और पाठकों में सहज स्वीकार्यता मिलती है… अभी शुरूआत है, आगे भविष्य नए आयाम पर भी जा सकता है… हैप्पी राइटिंग…
किशोर चौधरी की पुस्तक चौराहे पर सीढि़यां के साथ… सिद्धार्थ जोशी