मेरा कोरोना वर्ष अनुभव – 2

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21 तारीख की रात अचानक ही फ़ोन पर न्यूज़ आयी राजस्थान में 21 से 31तक लॉकडौन घोषित किया गया एकदम से लगा कि अच्छा है बच्चे और पति घर ही है तो चिंता की बात नहीं पर तभी दिमाग घूमने लगा कि घर में समान सब्जी और आवश्यक वस्तुएँ है या नहीं वैसे तो मैं घर में 12 महीने का सामान रखती हूँ पर मार्च का ही महीना होता है काफी समान का स्टॉक करने का फिर भी कोई नहीं बात तो सिर्फ 10 दिन की ही थी।

कुछ दिन तो पता ही नहीं चला निकलते कामवाली की छुट्टी कर दी गयी पति भी घर पर ही थे कमर दर्द की वजह से काम में मुश्किल तो आयी पर कोई नहीं चलते रहे हम भी मार्च 18 को मेरी मम्मी पापा और भैया हरिद्वार गए वैसे साल की दो नवरात्रि पर वो हर बार वहां जाते हैं इस बार हम सभी के मना करने पर भी घर की कार से गये और जाने के बाद लॉकडौन होने पर हम सभी को उनकी बड़ी चिंता हुई वे जहाँ ठहरे थे वो जगह सही थी तो ज्यादा चिंता की बात नहीं थी।

तभी नवरात्रि की भी शुरुआत हुई मैं देवी भक्त हूँ और इस बार तो घर मैं हम सभी ने नवरात्रि के व्रत रखें तभी रामायण सीरियल की शरुआत हुई पर मुझे tv बन्द किये दो साल हो चुके थे तो अब क्या करना रहा आखिर बच्चों ने कहा हम लैपटॉप पर भी इसे देख सकते हैं तो शुरुआत हुई रामायण की जिसे दुबारा परिवार के साथ देखना बड़ा ही सुखद रहा इस बीच घर में समान लाना सब्जी और दूध लाना उन्हें सेनिटाइज करना जिसे हम अभी तक फॉलो कर रहे हैं।

इस बीच इनका कहना गाये सांड और कुत्ते भी सड़क पर भूखे घूम रहे है बन सकी जो उनकी व्यवस्था की हमारे अंदर कहावत है कि किसी को एक हाथ से दो तो दूसरे हाथ को भी पता न चले इसलिए ज्यादा कुछ ना कहूंगी बस हमसे जो बन पड़ा वो किया हालांकि हमारे भी सब काम ठप हो चुके हैं घर बैठे हुए भी कामवालो को पगार देनी पड़ी पर कोई नहीं उनको भी मदद की जरूरत थी।

वैसे सरकार ने गरीबों के लिए काफी सहायता की बचें तो हम जैसे मध्यम वर्गीय जिनको इस कोरोना की वजह से डबल मार पड़ी धंधे बन्द और खर्चे बढ़ गए बच्चों को भी सिखाया की बचत करना कितना जरूरी है मेरे साथ बच्चों को भी लगा जब लॉकडौन में जब सब बन्द था तो कितनी शान्ति का अनुभव हो रहा था प्रकृति भी अपना रूप रंग निखार रही थी बच्चे कहने लगे कि साल में एक बार ऐसा लॉकडौन होना चाहिए जिससे प्रकृति अपने आप ही शुद्ध हो सके इस बीच थाली भी बजायी दिए भी जगाये इन सबके साथ लॉकडौन भी बढ़ता रहा कई बार घर के आगे से मजदूरों के झुंड के झुंड निकलते रहे मन बहुत दुखी होता उन्हें देखकर की किस प्रकार उन्हें बिना साधन के अपने गांव जाना पड़ रहा…

कुछ समय बाद सरकार ने कुछ बसों की व्यवस्था की उस समय लगा कि हमारा जीवन इन सबकी अपेक्षा बेहतर है धीरे धीरे लॉकडौन खुलने लगा एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने की परमिशन मिलने लगी पर फिर भी हम मम्मी और पापा की बीमारी को देखते हुए उन्हें हरिद्वार से बुलाने में झिझक रहे थे लॉकडौन में भैया ने बताया कि किस प्रकार हरिद्वार में गंगा का पानी एकदम निर्मल और स्वच्छ हो गया है आखिर ढाई महीने बाद मम्मी पापा और भाई ने हरिद्वार से जोधपुर वापसी की और सुरक्षित घर पहुँचे।

लॉकडौन के बीच तो हमारे गांव में कोई मामला नहीं आया पर जब बाहर रहने वालों ने घर वापसी की तो केस आने लगे इस समय तो मेरे घर की दोनों और की गलियों में कोरोना केस आ चुके हैं देखते हैं हम कब तक बचते हैं वैसे हम सभी सुरक्षा के मानक अपनाते हैं पर आखिर कब तक प्रकृति हमें अभी भी सुधरने का अवसर दे रही हैं अभी नहीं तो फिर कभी नही

आप सब भी घर में रहे सुरक्षित रहे……

लेखिका – प्रीति बोहरा