आज जहाँ पूरा विश्व कोरोना नामक स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है वहाँ शायद ही कोई व्यक्ति हो जो इससे अछूता हो। यह बीमारी शारिरीक तौर पर तो हानि पहुंचा ही रही , साथ ही लोगों पर आर्थिक और मानसिक रूप से भी आघात कर रही है। इससे होने वाली क्षति का आकलन कर पाना असंभव है।
बीमारी नयी है इसलिए लोगों में इसके लिए जानकारी और जागरूकता दोनों का अभाव है। यही इसके विस्तार का कारण भी है। मेरे हिसाब से इस बीमारी ने शारीरिक रूप से कम और आर्थिक रूप से अधिक तबाही मचाई है किन्तु ये कुछ अच्छे परिणाम लेकर भी आया है। मसलन लोग अपनी जड़ों की और वापसी कर रहे। आयुर्वेद पर लोगों का विश्वास फिर से दृढता ले रहा। घर के लोग जो दो चार पैसों की नौकरियों के लिए अपनों से कटे कटे रहना पसंद करते थे वे साथ में रहने का महत्व समझ रहें हैं । ऐसा मेरा मानना है।
इस संकट की स्थिति में मेरा व्यक्तिगत अनुभव मिला जुला रहा है। जिसकी शुरुआत एक यात्रा को बीच में छोड़कर आने से हुई । दरअसल हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी कहीं घुमने का निश्चित हुआ। हम कोरोना सम्बंधित सभी सावधानियों संग उत्तराखंड की यात्रा पर गए भी किन्तु इस बीमारी की आहट ने इतना डरा दिया कि बीच यात्रा से मार्च12 को वापस आ गयी। एयरपोर्ट पर समय भय और उलझन में बीता । घर पहुंच कर दूसरे दिन सबसे पहले सभी आवश्यक सामग्रियाँ और दवाईयाँ लेकर आयी। साथ ही घर के हैल्पर्स को अग्रिम भुगतान कर छुट्टी दे दी। तब से पूरे परिवार पूरी तरह घर में हैं
काम की भागमभाग में जहाँ मुश्किल से एक टाइम का भोजन साथ में कर पाते थे , वहीं आज सब साथ में भोजन का आनंद ले रहे। बच्चे पिता का सानिध्य प्राप्त कर रहे। मैं स्वयं जो पाककला में लास्टबेंचर थी , आज स्वयं को इस क्षेत्र में भी सफल होते देख रहीं हूँ।
घर के कामों में पति पूर्व में साथ देते थे , इसलिए ये अनुभव नया नहीं रहा । किन्तु मुझे साहित्य में डूबा देख पहली बार उनकी भी इस विषय में रूचि जगी ।
आर्थिक रूप से थोड़ी परेशानी रही किन्तु अपनों का साथ रहा तो यह मानसिक परेशानी नहीं बन पायी।
कोरोना से मन अभी भी आक्रांत है लेकिन तसल्ली है कि सब साथ हैं तो जो भी परिस्थिति होगी , उसका सामना कर लेगें।
एक जरूरी बात जो अभी हमें स्वयं को समझानी चाहिए वो ये कि यह बीमारी आज नहीं तो कल हम सबको होगी इसलिए डरें नहीं , स्वयं को दृढता से तैयार करें इसका सामना करने हेतु ।
लेखिका – स्वेता झा