भय बनाम महामारी – मेरा कोरोना वर्ष अनुभव 51

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हम लोग बचपन से ही मम्मी, पापा जी से महामारी के बारे में सुनते आ रहे थे,1920 में जब महामारी आई थीं तब उसमें हमारे परिवार में दादाजी और उनकी बड़ी बहन ही बचें थे, तो एक अनजाना सा डर तो वैसे भी था ही।

जब ये महामारी के रूप में कोरोना वायरस आया तब से बेटे और भाईयों की बहुत चिंता होने लगी क्योंकि बेटा दिसंबर में उसकी कार्यरत कम्पनी की तरफ़ से पहली बार विदेश गया, चिन्ता तो होनी लाज़मी है, हालाँकि रोज़ विडियो कान्फ्रेसिंग से बात करने लगा ताकि हम लोग चिंता ना करें।

वहां भी लॉकडाउन था , वर्क फ़्रोम होम करते हुए, मुश्किल परिस्थितियों में संघर्षरत बेटे ने खाना बनाना सीख ही लिया।
समय अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ता रहा प्रकृति ने हमें भी एक संदेश दिया कि अब उम्र के अगले पड़ाव को बढ़ चले हो।

लॉकडाउन की ही विषम परिस्थितियों में मेरी अनियमित माहवारी सात अप्रैल को शुरू हुई जो लगातार दस दिन तक जारी रही साथ ही अस्पताल जाने से भी डर लगता था।

डाक्टर परिवार हैं तो वाइरस की गंभीरता को समझते हुए विशेषज्ञ डाक्टर को घर पर चेकअप करवाना उचित होगा फोन किया तो पता चला कि वो तो शहर से बाहर है।
मन में एक डर था अब क्या होगा यही विचार आ रहा था तभी हमारे पड़ोस में रहने वाली श्वेता बोहरा जी का किसी काम से फोन आया तब मैंने उनको अपनी समस्या बताई वे बोली भाभीजी मैं इनसे (मनीष बोहरा जी जो कि डाक्टर है) पूछ कर बताती हूं।

पांच मिनट में ही दवाई का नाम भेज दिया। मैंने दवाई लेना शुरू भी कर दिया लेकिन पूरे एक महीने बाद सात मई को माहवारी बंद हुई ।
पीरियड्स के दौरान घर का काम भी किया था, बहुत ही बुरा समय लगता था वो, पर आज मैं उसमें से एक सकारात्मक सोच रखतीं हूं, यदि मैं डाक्टर को दिखाने जाती सोनोग्राफी होती और शायद डाक्टर ऑपरेशन करवाने की सलाह दे देते।

लेखिका – रजनी शर्मा