भयभीत है जिंदगी – मेरा कोरोना वर्ष अनुभव 35

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#कोरोना# अनुभव with प्रवीणा जोशी
कोरोना वायरस का अनुभव
कोरोना वायरस के बारे पहले केवल न्युज में देखते थे की देश, विदेश में कोरोना के कारण यह हालात हो रहे है। पर जब अपने देश कोरोना का कहर शुरु होने लगा था। तब थोड़ा भय सा होने लगा।पर जब अपने ही शहर होने लगा एकदम से घबराने लगे।फिर भी सोचती थी की कंट्रोल हो जाएगा। पर मेरा सोचना गलत था। बीकानेर में सब से कोरोना का अटैक हमारे मौहल्ले में हुआ।वह भी मेरे घर की एक ही दिवार घर था। वह परिवार बाहर से आया हुआ था ।जिस दिन वह लोग आये तब सब ठीक ठाक था। पर दुसरे दिन उस परिवार के दो लोग कोरोना पॉजिटिव आ गये। उन्होंने यह समझदारी दिखाई की वह अपनी बीमारी की सूचना प्रशासन को दे दी। और वहां से अधिकारी आये और उन्हें लेकर चले गए। इस बात पर हम उन गर्व करते है की उन्होंने कोरोना की बात छुपाई नही । जब की प्रशासन का साथ दिया। पर इधर सारे मौहल्ले की हालत खराब सब घरों के अन्दर जाकर बैठ गये ।कोई किसी से बात नही कर रहा था।कोई भी दिखाई नही दे रहा था। हमारे घर में हम दो पति, पत्नी और कोई नही। मेरी बेटी ननिहाल में थी।उस दिन हम दोनों के फोन बीजी थे।सब के फोन आ रहे थे।फिर शाम को कर्फ्यू लग गया।एक महिने का अब समझ नही आ रहा था कि क्या करें क्या न करें घर के अंदर ही बैठे रहे।जब दुध की गाड़ी आती तब एक प्रशासन अधिकारी आता और माइक पर बोल जाता की दुध ले लो, सब्जी,राशन की कभी कभी गाड़ी आती वह आवाज देकर जाते।जिस को सामान लेना था। एक व्यक्ति जाकर सामान लाता था ।कई बार गाड़ी आती नही थी। तो बगैरह सब्जी सात दिन रहे । फिर हमारी जांच करने आये।तब डर लगता था की कोई जांच खराब ना आ जाए।पर माता रानी की कृपा थी। की ऐसा कुछ नही हुआ।मेरे मम्मी पापा का फोन आते थे। दिन में चार बार मेरी बेटी फोन पर कहती थी की मम्मी आप का व पापा का ध्यान रखना। मैं कहती थी की बेटा घबरा मत सब ठीक है।दुसरी तरफ बिजनेस में नुकसान पर क्या कर सकते थे।यह महामारी पूरे विश्व में है। मैं अपनी बेटी से दो महीने के बाद मिली थी। मेरे को सब से अच्छा सहयोग प्रवीणा जी का मिला उन्होंने मुझे प्रोजेक्ट बनाने में लगाए रखा। उन्हें दिल से धन्यवाद की उस मुश्किल समय में साथ दिया। मेरा अनुभव यह था।

पूरे बीकानेर वासीयों से यह ही प्रार्थना है की अपनी सुरक्षा अपने हाथ में है घरों में रहो, सुरक्षित रहो
लेखिका – चिन्दू बोहरा