ब्‍लॉग साहित्‍य नहीं है। कन्‍फर्म.

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मैंने दो प्रवृत्तियां स्‍पष्‍ट तौर पर देखी हैं। पहली जो परिवर्तन हो रहा है उसे स्‍वीकार नहीं करना और दूसरी कि जो नया है उसे पुराने के भीतर फिट करने का प्रयास करना।

अपनी बात कहने से पहले एक किस्‍सा सुनाना चाहता हूं। कुछ दिन पहले हमारे ग्रुप में बात हो रही थी। कुछ महीने पहले कह सकते हैं। ग्रुप के सभी लोगों के पास ऑरिजिनल विंडो एक्‍स पी सर्विस पैक थ्री था। सभी खुश थे और उसी की बातें कर रहे थे। मैंने बीच में तीर चलाया कि रवि रतलामी ने अपने ब्‍लॉग में बताया है कि माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज सेवन जारी किया है। ग्रुप में सभी लोगों ने ऐसे मुंह बिचकाया जैसे मैंने कोई बचकानी बात कह दी हो। मैंने दोबारा स्‍ट्रेस किया। तो कुछ साथी भड़क गए। बोले अब तक जितना कस्‍टमाइजेशन किया है उसका क्‍या होगा। नई विंडो आएगी तो सबकुछ दोबारा करना पड़ेगा। मोझिला जैसे ब्राउजर को दोबारा टूल करना भी टेढा काम है। बाकी छोटे मोटे सब मिलाकर कम से कम पचास सॉफ्टवेयर दोबारा डालने पड़ेंगे और अपडेट भी लेने पड़ेंगे।

मैं यह बात समझता था लेकिन उम्र के जिस दौर से गुजर रहा हूं हर नई चीज पर जल्‍दी पहुंचने की कोशिश में लगा हूं। सो मैं विंडो सेवन ट्राइ करने के लिए तैयार था। लेकिन अगर ग्रुप में एक भी बंदा मेरे साथ न हुआ तो फंसने पर सहायता मिलने की बजाय लानतें ही मिलती। अब मैंने पैंतरा फेंका। मैंने कहा कि वे लोग कितने बेवकूफ हैं जो अब तक विंडो 98 से चिपके हुए हैं। उन्‍हें न तो ग्राफिक्‍स का आनन्‍द आता है न यूनिकोड के जरिए हिन्‍दी लिखने का कुछ अनुभव है। मेरी इस बात पर सभी लोग प्रसन्‍न हो गए। हम लोग सचमुच आनन्‍द ले रहे थे। माहौल रिलेक्‍स हुआ तो मैंने कहा यदि हमने विंडो सेवन के प्रति रिजिडिटी दिखाई तो थोड़े दिन बाद हमारी हालत भी 98 वालों की तरह हो जाएगी। अब हर किसी का माथा ठनक गया। आधे घण्‍टे तक कैंटीन के बाहर धूप में चाय और सिगरेट चल रही थी। वातावरण नि:शब्‍द हो चुका था। वहां से उठे तो दो साथी सेवन डाउनलोड करने के लिए तैयार हो गए। रात को अनलिमिटेड मिलता है सो अगले दिन सुबह ही कॉल आ गई कि डाउनलोड कर लिया है ले जाना। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। अब इसे इस्‍तेमाल कर रहा हूं तो अपने निर्णय पर गर्व होता है।

अब आता हूं मुद्दे पर ब्‍लॉग को साहित्‍य कहने वाले लोगों की भी कमोबेश यही स्थिति है। दरअसल किसी ने घर में एसी लगाया है तो वह साहित्‍य का हिस्‍सा कैसे हुआ। कोई पुराने ग्रंथ की बातों का अनुवाद पेश कर रहा है तो वह साहित्‍य कैसे हुआ। कोई किसी मुद्दे को लेकर चिंतन कर रहा है, कोई खबर की जुगाली कर रहा है, कोई भाषा को दुरुस्‍त करने की बात कर रहा है, कोई घर परिवार के सदस्‍यों की बात कर रहा है, कोई सुंदर तस्‍वीरें पेश कर रहा है, किसी को देश की चिंता है, किसी को गलत भाषा के उपयोग की, कोई अपने पुराने साथियों को याद कर रहा है तो कोई तकनीक के बारे में जानकारी दे रहा है। इन सबमें साहित्‍य का भी एक भाग शामिल है लेकिन सबकुछ साहित्‍य नहीं है। और न ही इसे होना चाहिए। हम लोगों को प्रकाशन का एक नया माध्‍यम मिला है। अपनी बात, अपनी भावनाएं और अपनी समझ दूसरे लोगों तक पहंचाने का जरिया मिला है। इसे किसी एक शब्‍द या विधा से जोड़ देना वैसा ही है जैसे किसी नए ईजाद किए गए उपकरण पर बल्‍ब या बाइसाइकिल जैसा टैग लगा देना।

एक पत्रकार होने के नाते मैं कह सकता हूं कि ब्‍लॉग का सबसे महत्‍वपूर्ण बिंदु यह है कि आपके विचारों और प्रकाशन के बीच कोई माध्‍यम नहीं है। यह बहुत बड़ी बात होती है। जिन लोगों ने पहले अपनी रचनाएं प्रकाशित कराई है उनसे पूछिए कि एक रचना को प्रकाशन के प्रोसेस में कितना इंतजार और मॉडरेशन झेलना पड़ता था। जो लोग आकाशवाणी में बोले हैं वे जानते हैं कि शब्‍द और समय की सीमाएं कई बार विषय का ही गला घोंट देती हैं। टीवी से जुड़े लोगों को पता है कि विचार और उसके संप्रेषण के बीच हमेशा बाजार खड़ा मिलता है। ऐसे में हर दृष्टि से सृजकों को स्‍वतंत्र कर देने वाले माध्‍यम को मैं साहित्‍य नहीं मान सकता। साहित्‍य तो इसका एक बहुत छोटा अंश है।

मेरा निजी अनुभव बताता है कि इंटरनेट पर जहां सैक्‍स सबसे ज्‍यादा बिक रहा है वहां मनोरंजन पाठक, दर्शक या श्रोता की पहली शर्त है। उसे आनन्‍द आएगा तो वह रुकेगा। वरना आगे बढ़ चलेगा। यह टीवी तो नहीं है जो आधे घण्‍टे के सीरियल में बीस मिनट तक कमर्शियल झेलना ही पड़ेगा। इस माध्‍यम ने जिनता सर्जकों को आजाद किया है उतना ही पाठकों, श्रोताओं और दर्शकों को भी।

आगे समय है इस आजाद वैश्विक गांव में अपनी पहचान बनाने का। अधिक से अधिक लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए हमें इतनी सशक्‍त और प्रभावी बात करनी होगी कि पढ़ने वाला रुक जाए, सुनने वाला थम जाए और देखने वाला ठगा सा रह जाए। खुद के खर्च पर रचनाएं छापने वाले लोगों से यह माध्‍यम बहुत आगे निकल चुका है।